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जानिए सूरह कौसर को पढ़ने के फायदे और इसके वज़ीफ़े के बारे में

जानिए सूरह कौसर को पढ़ने के फायदे और इसके वज़ीफ़े के बारे में

सूरह कौसर क़ुरान की 108 वीं सूरह हैं। यह क़ुरान के 30 वे पारे में मौजूद हैं। ये क़ुरान की सबसे छोटी सूरह हैं। कुछ लोग इसे मक्की सूरह कहते हैं और कुछ लोग इसे मदनी सूरह कहते हैं। ये सूरह हैं बहुत छोटी लेकिन इसको पढ़ने के बेशुमार फायदे हैं।

सूरह कौसर कब नाज़िल हुई थी?

ये सूरह तब नाज़िल हुआ था जब हमारे प्यारे नबी हज़रत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम बहुत बुरे दौर से गुज़र रहे थे। उस वक़्त मुसलमानो पर बहुत ज़ुल्म हो रहे थे और मुसलमानो की तादाद भी बहुत कम हो गयी थी। उसके अलावा जब हमारे प्यारे नबी की दोनों औलादों की मौत हो गयी थी तब किसी दुश्मन ने प्यारे नबी को कहा था की अब तुम्हारे कोई औलाद नहीं बचेगी। दुश्मनो ने हज़रत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम को कहा था की इस्लाम को आगे बढ़ाने के लिए तुम्हारी नस्लें खत्म हो चुकी हैं अब तुम्हारा कोई वंश नहीं बचा हैं क्यूंकि प्यारे नबी के दोनों बेटों की मौत हो चुकी थी। उस वक़्त हमारे प्यारे नबी की 2 से 3 बेटियां भी थी लेकिन उस वक़्त बेटों को ही वंश चलाने वाला माना जाता था। दुश्मनो ने आपका बहुत मज़ाक बनाया ऐसे बुरे और मुश्किल वक़्त में अल्लाह ने सूरह कौसर को नाज़िल किया।

सूरह कौसर में किन बातों का ज़िक्र हैं?

सबसे पहले जो सबसे ज़रूरी बात इसमें बताई गयी हैं की जब किसी को अपनी ज़िन्दगी से खो देते हैं तब अल्लाह उसे किसी और चीज़ में बदल देता हैं उसके अलावा सूरह कौसर में तीन बहुत ज़रूरी आयतें शामिल हैं जिनमे तीन बातें बताई गयी हैं जो इस प्रकार हैं,

पहली आयत में ये बताया गया हैं की जन्नत में कौसर नाम की एक नदी हैं। जो जन्नती लोगो के लिए बनायीं गयी हैं जिसके किनारे सोने के होंगे और ये नदी मोती के ऊपर बहेगी जिसका पानी दूध से भी ज़्यादा सफ़ेद होगा और शहद से भी ज़्यादा मीठा होगा। ये नदी का पानी सभी जन्नती लोगो के लिए होगी जो हर रोज़ इसका पानी पी सकेंगे। 

दूसरी आयत में ये बताया गया है की हमें हमेशा अल्लाह से दुआ करना करना चाहिए और उसी के लिए हमें अपनी सारी चीज़े क़ुर्बान कर देना चाहिए चाहे वो वक़्त हो या दौलत। सब कुछ अल्लाह के लिए ही करना चाहिए। इससे ये मतलब है की जब आप आपकी हर चीज़ अल्लाह पर क़ुर्बान करते हो तब अल्लाह आपको और ज़्यादा देता हैं। इस आयत में अल्लाह ने प्यारे नबी को ऊंट की क़ुरबानी करने का भी हुक्म दिया था। उस वक़्त ऊंट की क़ुरबानी अपनी दौलत क़ुर्बान करने जैसा था। 

तीसरी आयत में या बताया गया है की प्यारे नबी के सारे दुश्मनो को काट दिया गया गया हैं। कहने का मतलब अल्लाह इस सूरह में ये बताता हैं प्यारे नबी के सारे दुश्मन काट दिए गए हैं।

सूरह कौसर पढ़ने के क्या फायदे हैं?

  • जिन लोगो की कमाई कम हैं या उनके पास कमाई के ज़्यादा साधन नहीं हैं उनको सूरह कौसर पाबन्दी से पाबन्दी से पढ़ना चाहिए इंशाअल्लाह इसकी बरकत से कमाई से रास्ते खुल जायेंगे। 
  • जिनकी औलादें जन्म के बाद ही मर जाती हैं या ज़्यादा वक़्त तक ज़िंदा नहीं रहती उन्हें सूरह कौसर पढ़ना चाहिए। जिसकी फ़ज़ीलत से अल्लाह उन्हें लम्बी ज़िन्दगी अता फरमाएगा। 
  • जो शख्स पाबन्दी से इस सूरह को पढ़ेगा उसे क़यामत के दिन जन्नत की कौसर नहर का पानी पीने को मिलेगा।  
  • अपने दुश्मनों से हर वक़्त हिफाज़त के लिए सूरह कौसर पढ़ना चाहिए। जिससे दुश्मनों से हर वक़्त हिफाज़त रहेगी और आप महफूज़ रहेंगे। 
  • सूरह कौसर की बरकत से आप हर तरह की बीमारी से महफूज़ रहेंगे। अगर पहले से कोई बीमारी होगी वो भी इस सूरह की बरकत से खत्म हो जाएगी। 
  • सूरह कौसर पाबन्दी से पढ़ने वाले शख्स की हर मुराद पूरी होती हैं। इसलिए हर मुराद को पूरी करने के लिए सूरह कौसर पढ़े।
  • अगर किसी की शादी में रुकावट आ रही है या रिश्ता होते होते टूट हो रहे हैं तो चाहिए की सूरह कौसर हर ईशा की नमाज़ के बाद पाबन्दी से पढ़े जिससे रिश्तों में आ रही रुकावट से छुटकारा मिलेगा। 
  • अगर किसी की याद्दाश्त कमज़ोर हैं यानि उसे कुछ याद नहीं रहता तो उसे इस सूरह को ज़रूर पढ़ना चाहिए जिससे उसकी दिमागी हालत में सुधार होगा और याददाश्त मज़बूत होगी। 
  • सूरह कौसर गरीबी कम करने और अपने माल की हिफाज़त के लिए पढ़ते रहना चाहिए। 
  • अगर किसी का व्यापर या बिज़नेस बहुत अच्छा चल रहा हैं और वो चाहता हैं की ये व्यापर ऐसा ही चलता रहे तो उसे पाबन्दी से सूरह कौसर हर दिन पढ़ना चाहिए जिसकी फ़ज़ीलत से बिज़नेस में बहुत मुनाफा होगा। 
  • इसके अलावा भी इस सूरह को पढ़ने के बेशुमार फायदे हैं हमें चाहिए की हम क़ुरान की हर सूरह को पाबन्दी से पढ़े और उसमे बताये गए रास्तों पर अमल करने की कोशिश करे ताकि हम अल्लाह की अज़ाब से बच सके और एक बेहतर ज़िन्दगी गुज़र सके।

सूरह कौसर कब पढ़ना चाहिए?

बहुत से लोग सोचते हैं की इस सूरह को पढ़ने का सबसे अच्छा वक़्त कौनसा हैं? बहुत से लोग ऐसा कहते हैं की इस सूरह को इतनी मर्तबा पढ़ने से ऐसा होगा यानि कोई 33 मर्तबा पढ़ेगा तो ऐसा होगा कोई 21 मर्तबा पढ़ेगा तो वैसा होगा। ऐसा करने या कहने से फर्क नहीं पड़ता। फर्क ये पड़ता हैं की आप सूरह कौसर को कितनी मोहब्बत से पढ़ रहे हैं? कितना दिल लगा कर कर पढ़ रहे हैं कितना ख़ुशी से पढ़ रहे हैं? अगर आप सिर्फ किसी के कहने पर सूरह कौसर को 21 या 33 मर्तबा पढ़ कर इस काम से निपटने का सोचते हैं तो वो गलत हैं। आप सूरह कौसर को जितना दिल से पढ़ेंगे और अल्लाह से दुआ मांगोगे तो अल्लाह आपकी दुआ को ज़रूर सुनेगा। फिर भी हम आपको बता देते है की इस सूरह को पढ़ने का सबसे बेहतर वक़्त कौनसा हैं? 

सूरह कौसर को आप कोशिश करें की फज्र की नमाज़ के बाद पाबन्दी से जितना मर्तबा आप पढ़ना चाहे पढ़े क्यूंकि इस वक़्त पर आपका दिल और दिमाग बहुत शांत रहता हैं और आपका ध्यान सिर्फ अल्लाह की इबादत की तरफ ही रहता हैं। बाकि आप ईशा की नमाज़ के बाद भी इसे पढ़ सकते हैं क्यूंकि ईशा के वक़्त भी आप हर काम से फ्री हो जाते हैं और सोने से पहले अल्लाह की इबादत करके सोते हैं। फिर भी आपको जब वक़्त मिले आप ये सूरह का ज़िक्र करते रहे ताकि आपको इस सूरह को पढ़ने से फायदे मिलते रहे।

सूरह कौसर का वज़ीफ़ा क्या हैं?

सूरह कौसर का इस्तेमाल आप वज़ीफ़े के तौर पर भी कर सकते हैं। बहुत से लोग अलग अलग परेशानियों का वज़ीफ़ा इंटरनेट पर देखते हैं। सूरह कौसर में वो ताकत हैं जो आपको हर परेशानी से निकाल सकती हैं। सूरह कौसर का वज़ीफ़ा करके आप अलग अलग मुसीबतों या परेशानियों से निकाल सकते हैं। हमने देखा हैं की इंटरनेट पर सूरह कौसर के लेकर अलग अलग वज़ीफ़े बताये गए हैं। बेहतर हैं आप इन अपने हिसाब से दिल से इस सूरह को पढ़े जिससे आप हर परेशानी से निकाल सके बाकि अल्लाह से दुआ करते रहे इंशाअल्लाह आपकी हर दुआ क़बूल होगी।

अल्लाह हम सबको क़ुरान की तिलावत करने दीन पर चलने और पांच वक़्त का नमाज़ी बनने की तौफीक अता फरमाए आमीन। 

जानिए सूरह कहफ़ की 4 कहानियां और उसे पढ़ने के फायदे

surah kahf in hindi

सूरह अल कहफ़ पवित्र क़ुरान की 18 वीं सूरह हैं। ये क़ुरान के 15 और 16 पारे में मौजूद हैं। यानि के इस सूरह को आप क़ुरान के 15 वे और 16 वे  पारे में पढ़ सकते हैं। सूरह कहफ़ का मतलब होता है गुफा इस सूरह में कुल 110 आयतें, 1583 शब्द और 6425 अक्षर मौजूद हैं। ये मक्का में नाज़िल हुई थी इसलिए इसे मक्की सूरह भी कहा जाता हैं। इस सूरह में कहफ़ नाम एक गुफा में मौजूद लोगो की कहानी से लिया गया हैं। इस सूरह में 4 अलग अलग कहानियों का ज़िक्र आया हैं ये चार कहानियों के नाम इस प्रकार हैं। 

  1. गुफा में रहने वाले लोगों की कहानी
  2. बगीचों वाले अमीर आदमी की कहानी
  3. हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम और बुद्धिमान व्यक्ति की कहानी
  4. राजा धुल क़रनैन की कहानी 

इन्हीं 4 अलग अलग कहानियों के बारें में सूरह कहफ़ में बताया गया गया हैं। इन कहानियों को पढ़ कर आप को बहुत बड़ा सबक मिल सकता हैं। इन कहानियों के माध्यम से हमें कुछ ज़रूरी बातें बताई गयी हैं जैसे हमने अपनी जवानी में क्या किया और अपने धर्म का कैसे पालन किया? हमने जो पैसा कमाया वो किस काम में लगाया? जो इल्म हमने हासिल किया उसका इस्तेमाल कैसे और कहाँ किया? आखिर में अपनी ज़िन्दगी में किस तरह बिताया? यही सवाल इन चार कहानियों में बताये गए हैं मतब इन्हीं सवालों के ऊपर वो 4 कहानियां सूरह कहफ़ में बताई गयी हैं। अगर आपको इन सवालों के जवाब चाहिए तो आपको सूरह कहफ़ में मौजूद इन चारो कहानियों को पढ़ना चाहिए। हम इस आर्टिकल में उन चार कहानियों को शार्ट में बताने की कोशिश करेंगे।

पहली कहानी (गुफा में रहने वाले लोगों की कहानी)

पहली कहानी गुफा के लोगों की कहानी हैं। जो अल्लाह पर भरोसा करते थे लेकिन वहां मतलब उनके इलाके के लोगों ने उन्हें उनके घर से निकल दिया क्यूंकि वह एक अल्लाह को मानने लग गए थे। जब वह घर से निकल कर एक गुफा में अल्लाह की इबादत के लिए पहुंचे तब अल्लाह ने उन्हें करीब 300 सालों तक गहरी नींद सुला दिया था। जब वे नींद से जागे तो उन्हें लगा की कुछ घंटे की ही नींद निकलकर वो उठे हो लेकिन अल्लाह ने उन्हें करीब 300 सालों तक गहरी नींद सुलाया जबकि वो इतने लम्बे सालों तक सोये थे। जब वो सोकर उठे तब उन्होंने देखा का वहां रहने वाले सभी लोग ईमान वाले बन गए थे। ये कहानी इस तरह का सबक देती हैं की जब आप अल्लाह पर यकीन करते हैं। तब अल्लाह भी आपकी हिफाज़त करता हैं। जब भरोसा अल्लाह पर से उठ जाता है तो मुसीबतें भी ज़्यादा आती हैं और आप उन मुसीबतों से निकल नहीं पाते। इसलिए चाहे जितना ज़ुल्म हो जाये जितनी आफ़तें आ जाये हमें अल्लाह पर हमेशा भरोसा रखना चाहिए।

दूसरी कहानी (बगीचों वाले अमीर आदमी की कहानी)

ये कहानी ऐसे आदमी की थी जिसके पास 2 बहुत बड़े बड़े बगीचे थे जो बहुत अमीर था जिसके पास सबकुछ था लेकिन उनसे अल्लाह का कभी शुक्र अदा नहीं किया। जिसकी वजह से एक दिन उसके दोनों बगीचे बर्बाद हो गए। इस कहानी से ये सबक मिलता हैं की जब अल्लाह हमें दौलत से नवाज़ता हैं तो हमें उसका शुक्र अदा करते रहने चाहिए।

तीसरी कहानी (हज़रत मूसा और बुद्धिमान व्यक्ति की कहानी)

इस कहानी के मुताबिक एक बार हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम इसराइल बनी इसराइल यानि इसराइल के बच्चो को कुछ बता रहे थे तभी किसी बच्चे ने आपसे पूछा की सबसे बुद्धिमान व्यक्ति कौन हैं? तब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने अपना खुद का ज़िक्र किया और कहा की मैं सबसे बुद्धिमान और विद्वान व्यक्ति हूँ। अल्लाह को मूसा की ये बात बहुत बुरी लगी। अल्लाह ने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से कहा की तूने अल्लाह का ज़िक्र नहीं किया और सीधे अपना नाम बता दिया क्यूंकि सिर्फ अल्लाह ही जानता हैं की सबसे बुद्धिमान व्यक्ति कौन हैं? उसके बाद अल्लाह ने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को जहाँ दो समुन्दर का संगम होता हैं वहां जाने का हुक्म दिया और कहा की वहां पर यानि उस जगह पर तुझे सबसे बुद्धिमान मिलेगा जो तेरे से भी ज़्यादा बुद्धिमान और काबिल हैं। उस बुद्धिमान व्यक्ति का नाम अल-खिद्र था। जो हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से उस जगह पर मिला था। 

इस कहानी से ये सबक मिलता हैं की भले ही आपके पास ज्ञान हो लेकिन उस ज्ञान का आपको घमंड नहीं होना चाहिए क्यूंकि कोई दूसरा व्यक्ति आपसे ज़्यादा काबिल और बुद्धिमान हो सकता हैं।

चौथी कहानी (राजा धुल क़रनैन की कहानी)

चौथी और आखरी कहानी एक राजा की हैं जिसका नाम धुल क़रनैन था जिसने लोगो की भलाई और ज़रूरतमंद लोगो की मदद के लिए दुनिया भर का सफर किया वे जहाँ भी गए वहां उन्होंने अच्छाई फैलाई उन्होंने लोगो को गोग और मागोग नामक जनजाति से लोगों को आज़ाद करवाया था।

इस तरह इन चार कहानियों का ज़िक्र सूरह कहफ़ में आया हैं आप अगर इन कहानियों को तफ्सील से पढ़ना चाहते हे तो आप सूरह कहफ़ पढ़े और इन कहानियों को पढ़ने के बाद अपनी ज़िन्दगी को अल्लाह के बताये रास्तों के मुताबिक सुधारे।

सूरह कहफ़ पढ़ने के फायदे और उसकी फ़ज़ीलत 

  • जो शख्स हर जुमा को सूरह कहफ़ पढ़ेगा वह दज्जाल के फितना मतलब उसके विनाश से महफूज़ रहेगा। 
  • हर जुमा की नमाज़ के बाद सूरह कहफ़ पढ़ने से अल्लाह उस शख्स के गुनाहों को माफ़ कर देता हैं। 
  • हर जुमा को सूरह कहफ़ पढ़ने से घर में गरीबी नहीं आती और घर के माल की हिफाज़त रहती हैं। 
  • हर जुमा को सूरह कहफ़ पढ़ने से चेहरे पर एक नूर रहता हैं जो अगले जुमा तक रहता हैं। 
  • सूरह कहफ़ पढ़ने वाला शख्स को दुनिया में बहुत कामयाबी हासिल होगी यानि कामयाबी उस शख्स के कदम चूमेगी। 
  • सूरह कहफ़ हमें अल्लाह के बताये रास्तों पर चलने के लिए प्रेरित करता हैं। 
  • सूरह कहफ़ पढ़ने वाले शख्स के कारोबार में बहुत बरकत रहती हैं इसलिए कारोबार में बरकत के लिए सूरह कहफ़ पाबन्दी से पढ़ना चाहिए। 
  • सूरह कहफ़ से हमारे दिल को सुकून मिलता हैं जिसकी फ़ज़ीलत से हम हर तरह की परेशानियों से महफूज़ रहते हैं और हमारे दिल में किसी तरह की गलत बात नहीं आती। 
  • सूरह कहफ़ पढ़ने से मुसलमानो का ईमान हमेशा मज़बूत रहता हैं। 
  • जिन लोगों में विश्वास यानि कॉन्फिडेंस की कमी होती हैं उन्हें चाहिए की सूरह कहफ़ पाबन्दी से पढ़े जिसकी बरकत से वह किसी भी काम को करने या शुरू करने से कभी घबराएंगे नहीं। 
  • सूरह कहफ़ शख्स को अल्लाह के करीब लाती हैं जिससे हर वक़्त शख्स की हिफाज़त रहती हैं और अल्लाह हर वक़्त उसके करीब रहता हैं।

सूरह फातेहा को पढ़ने के फायदे और उसकी फ़ज़ीलत (Surah Fatiha Padhne Ke Fayde)

Surah Fatiha Padhne Ke Fayde

सूरह अल फातेहा क़ुरान की पहली सूरह हैं। इसमें कुल 7 आयतें हैं जिसमे अल्लाह के बताये रास्तों पर चलने उसकी ताकत और गुनाहों से माफ़ी की दुआ शामिल हैं। सूरह फातेहा में फातेहा शब्द का मतलब होता हैं किसी चीज़ की चाबी या किसी चीज़ को खोलना। चूँकि सूरह फातेहा क़ुरान की पहली सूरह हैं इसलिए इसमें फातेहा का मतलब भी इसकी पहली सूरह होने को साबित करता हैं। हम हर नमाज़ में इस सूरह को पढ़ते हैं इसी बात से आप अंदाज़ा लगा सकते हैं की यह सूरह कितनी मुक्क्दस सूरह हैं। 

कई इस्लामिक विधवानों का मानना हैं की सूरह फातेहा मक्का में नाज़िल हुई जबकि कुछ का मानना हैं की यह मदीना में नाज़िल हुई। खेर सबसे पहले हमें ये जानना ज़रूरी हैं की सूरह फातेहा में क्या कहा गया हैं या कहे क्या बताया गया है?

सूरह फातेहा और उसका हिंदी में मतलब 


بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
اَلْحَمْدُ لِلّٰهِ رَبِّ الْعَالَمِيْنَ ، الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ ، مٰلِكِ يَوْمِ الدِّيْنِ ، إِيَّاكَ نَعْبُدُ وَإِيَّاكَ نَسْتَعِيْنُ ، اِهْدِنَا الصِّرَاطَ الْمُسْتَقِيْمَ ، صِرَاطَ الَّذِيْنَ أَنْعَمْتَ عَلَيْهِمْ غَيْرِ الْمَغْضُوْبِ عَلَيْهِمْ وَلَا الضَّآلِّيْنَ


सूरह फातेहा का हिंदी तर्जुमा 

शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा दयालु और बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला हैं। अल्लाह का बहुत बहुत शुक्रिया जिसने इस पुरे संसार या इस दुनिया को बनाया। अल्लाह ही इस पूरी दुनिया का मालिक हैं। हम सिर्फ आपकी ही इबादत करते हैं और आप से ही हर तरह की मदद की दुआ करते हैं। ए अल्लाह हमें सही रास्तो पर चला, वह रास्ता जो सीधे हमें तेरी तरफ ले जाता हैं। वह रास्ता नहीं तो हमें भटका दे और जहन्नम के रास्ते पर ले जाये। 

सूरह फातेहा हमें अल्लाह के बताये रास्तों पर ले जाती हैं। हम हर नमाज़ में इस सूरह को पढ़ते हैं और ये गवाही देते हैं की अल्लाह के सिवा इस दुनिया में कोई नहीं हैं। सूरह फातेहा पढ़ना हर तरह से अफ़ज़ल हैं। ये हमारे बदन और दिल को महफूज़ रखती हैं। इस सूरह को पढ़ने में बहुत शिफा हैं। आज हम यही बताएँगे की सूरह फातेहा को पढ़ने के क्या फायदे हैं और इसकी क्या फ़ज़ीलत हैं?


सूरह फातेहा को पढ़ने के फायदे 

  • यह हर नमाज़ में पढ़ने वाली सूरह हैं जिससे शख्स अल्लाह के करीब रहता हैं और कई इनामो का हक़दार बनता है। 
  • सूरह फातेहा पढ़ने वाला शख्स हर तरह की बिमारियों से महफूज़ रहता हैं ये सूरह हमें बीमारियों से बचाती हैं। 
  • ये सूरह हमारे दिल को मज़बूत रखती हैं हमारे दिल में मौजूद नफरत और गुस्से को बहार निकाल देती है। 
  • ये सूरह हमारे दिलो में पनप रहें नापाक इरादों को करने से रोकती हैं। 
  • सूरह फातेहा पढ़ने वाले शख्स को अल्लाह बहुत मदद करता है और उसे हर परेशानी से बचाता है। 
  • ये सूरह हमारी दुश्मनो से महफूज़ रखती हैं ये सूरह पाबन्दी से पढ़ने वाले शख्स की हिफाज़त की ज़िम्मेदारी अल्लाह की हो जाती है। 
  • ये सूरह हमें क़यामत के दिन होने वाले अज़ाबों से बचाएगी और हमारे सज़ाओं को कम करेगी। 
  • सूरह फातेहा हमें हमेशा सही रास्ता दिखाएगी अगर आप को लग रहा हैं की आप गलत रास्तों पर चल रहे हैं तो आप सूरह फातेहा रोज़ पढ़े इंशाअल्लाह आप को सही रास्तो पर ले जायेगा। 
  • सूरह फातेहा हमारे दिमाग को बहुत मज़बूत रखती हैं और हमें टेंशन और परेशानी से छुटकारा दिलवाती हैं। 
  • सूरह फातेहा हमें अल्लाह के बहुत करीब लाती हैं जिसकी बदौलत हम गुनाहों से बचे रहते है। 
  • सूरह फातेहा पढ़ने वाले शख्स के लिए अल्लाह जन्नत के दरवाज़े खोल देता हैं। 
  • सूरह फातेहा पढ़ने वाला शख्स बुरी बालाओं और आफतों से महफूज़ रहता हैं।


आखरी पैगाम 

क़ुरान एक किताब ही नहीं बल्कि इसमें ज़िन्दगी जीने का तरीका मुसीबतों और परेशानियों से बचने का तरीका और गुनाहो से बचने और जहन्नम के अज़ाब से बचने और उसे कम करने की बातें बताई गयी हैं। आजकल के मुसलमानो को दिन भर मोबाइल चलना मंज़ूर हैं। बेमतलब की चीज़े देखना मंज़ूर हैं, लेकिन क़ुरान और नमाज़ पढ़ने के लिए लोगो को वक़्त नहीं हैं। यही वजह हैं की आज का मुसलमान मक्कार चुगलखोर और ग़ीबत से भर चूका हैं। आज का मुसलमान इसलिए परेशान हैं क्यूंकि वह अल्लाह की इबादत के लिए वक़्त नहीं निकालता। उन्हें लगता हैं की हम सिर्फ रमज़ान में इबादत करके पुरे साल के गुनाहों से बच जायेंगे लेकिन ऐसा नहीं हैं अल्लाह की इबादत आपको हर दिन करना हैं तभी आप एक अच्छी और खुशगवार ज़िन्दगी जी पाएंगे और अल्लाह के अज़ाबो जैसे बीमारियों और हादसों से बचे रहेंगे। खैर हम सब को चाहिए की हम अल्लाह की इबादत करे उसके बताये रास्तों पर चले। 

हर बीमारी से शिफा की इस्लामी दुआएं (Har Bimari ka Ilaj in Islam)

हर बीमारी से शिफा की इस्लामी दुआएं (Har Bimari ka Ilaj in Islam)

आज दुनिया में रहने लगभग सभी लोग कोई न कोई बीमारी या सेहत से जुडी परेशानियों से जूझ रहे है। हर बीमारी के इलाज के लिए वह डॉक्टर के पास जाते है और दवाई से इलाज करवाते है। जिन दवाइयों को लेने के बाद उनको उसकी आदत हो जाती है और वह हमेशा इस तरह की दवाइयों को ही अपनी ज़िन्दगी का हिस्सा बना लेते है। कहने का मतलब उन दवाइयों के बिना फिर वह रह नहीं पाते और हर छोटी छोटी सेहत से जुडी परेशानियों के लिए दवाइयों के इस्तेमाल करते है। लेकिन क्या आप को पता है की क़ुरान की आयतों का इस्तेमाल करके भी कई बीमारीयों का इलाज किया जा सकता है? जी हाँ ये बिलकुल सच है की क़ुरान की मदद से आप गंभीर से गंभीर बीमारी से बच सकते है और अगर बीमारी हो भी गयी हो तो उससे छुटकारा पा सकते है।

पवित्र क़ुरान न सिर्फ एक किताब है बल्कि इसमें पूरी ज़िन्दगी खुशहाली से जीने के तरीके भी इसमें बताये गए है। आज हम कुछ बीमारीयों या सेहत से जुड़ी रोज़मर्रा की परेशानियों से बचने के लिए कुछ क़ुरान की दुआओं का ज़िक्र करेंगे। जिन दुआओं का इस्तेमाल करके आप काफी बीमारीयों से बच सकते है। 

क़ुरान में ऐसी कई सारी सूरह हैं जैसे सूरह अल इस्रा और सूरह अल शिफा,सूरह अल फातिहा वगैरह जिसकी मदद से आप किसी भी बीमारी से लड़ सकते हैं। चलिए हम एक एक करके कुछ बीमारीयों और सेहत से जुड़ी रोज़ की परेशानियों से बचने और उससे छुटकारा पाने के लिए कुछ इस्लामी दुआओं को बताते है।

सर दर्द से छुटकारा पाने के लिए पहली इस्लामी दुआ 

 لَّا یُصَدَّعُوۡنَ عَنْہَا وَلَا یُنۡزِفُوۡنَ

ला युसद दाऊना अनहा वला युनजिफूना

जब की आपको सर दर्द हो ये दुआ कम से कम 7 मर्तबा पढ़ कर पानी में दम करे और उस पानी को पी कर थोड़ा सा पानी जहाँ सर दर्द हो रहा है वहां उस पानी से हलकी मालिश करे। इंशा अल्लाह सर दर्द से छुटकारा मिल जायेगा। आप 7 बार या उससे ज़्यादा भी इसे पढ़ सकते हैं लेकिन कोशिश करें कम से कम 7 मर्तबा तो ज़रूर पढ़े। 

सर दर्द से छुटकारा पाने के लिए दूसरी इस्लामी दुआ 

हम आपको एक और दुआ बता रहे है जो सर दर्द के इलाज में काफी फायदेमंद है जो इस तरह है। 

أَذْهِبِ الْبَاسَ رَبَّ النَّاسِ اشْفِهِ أَنْتَ الشَّافِي لاَ شِفَاءَ إِلاَّ شِفَاؤُكَ شِفَاءً لاَ يُغَادِرُ سَقَمًا

अधहिब अल बास रब्बननास अशफीही अंता अंतशफ़ी ला शिफाआ इल्ला शिफुका शिफाअन ला युग़दीरु सकामन

ये दुआ भी सर दर्द के लिए काफी मुफ़ीद दुआ है। जब भी सर दर्द हो इस दुआ का ज़िक्र करें और पानी में दम करके वह पानी पी ले और कुछ पानी जहाँ दर्द है वहां लगा ले अल्लाह के फज़लों करम से सर्द दर्द कुछ ही देर में गायब हो जायेगा।

दिल की बीमारी से बचने और छुटकारे के लिए इस्लामी दुआ 

अगर किसी को दिल की कोई बीमारी हो गयी हैं जैसे छाती में दर्द या छाती में बेचैनी या फिर इस तरह की दिल की बीमारी से बचना चाहते हैं तो नीचे बताई गयी दुआ पढ़े और अल्लाह से दुआ मांगे। 

الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا وَتَطْمَىِٕنُّ قُلُوْبُهُمْ بِذِكْرِ اللّٰهِ ۗ اَلَا بِذِكْرِ اللّٰهِ تَطْمَىِٕنُّ الْقُلُوْبُ

अल्लज़ीना अमानुव व ततमा इन्नु कुलुबुहुम बिज़िकरिल्लाह अला बिज़िक रिल्लाहे ततमा इन्नुल क़ुलूब 

ये दुआ की बरकत से आप सीने में दर्द से छुटकारा पा सकते हैं और अपने दिल को मज़बूत बना सकते हैं। दिल की हर बीमारी इस दुआ की बरकत से दूर हो जाएगी। कोशिश करें वज़ू करके जब भी आपको वक़्त मिले इसका पाबन्दी से ज़िक्र करे जिसकी बरकत से आप दिल की हर बीमारी से बच सके।

दांत में दर्द से छुटकारे के लिए इस्लामी दुआ 

ھُوَالَّذِیْٓ اَنْشَاکُمْ وَجَعَلَ لَکُمُ السَّمْعَ وَالْاَبْصَارَوَالْاَفْءِدَۃَ قَلِیْلاًمَّاتَشْکُرُوْنَ۔

हुवल्लज़ी अंशाकुम वजअल लकुमुस्समाअ वलअबसरा वलअफ ऐदाता क़लीलम्मा तशकुरुन

जब भी आपके दांत या मसूड़ों में दर्द हो तो ये दुआ 14 मर्तबा पढ़ कर पानी में दम करके वह पानी पी लें। इंशाल्लाह दांत में दर्द से आपको छुटकारा मिल जायेगा और दांत में पनप रहे कीड़े और बीमारियां दूर हो जाएगी।

किडनी में पथरी होने पर उससे छुटकारे की इस्लामी दुआ 

जिस किसी शख्स को किडनी में पथरी हो गयी हो और वह उस पथरी के दर्द से बहुत परेशान रहता हैं तो उसे चाहिए की नीचे बताई दुआ को एक कागज़ पर लिख कर एक बोतल में पानी भरकर वह कागज़ उस पानी की बोतल में डाल दे और रोज़ उस बोतल से पानी पिए जब तक की वह पथरी निकल न जाये। इंशाल्लाह आपकी पथरी निकल जाएगी और आपको दर्द से भी छुटकारा मिल जायेगा पथरी के दर्द से छुटकारे की दुआ इस तरह हैं

 رَبُّنَا اللَّهُ الَّذِي فِي السَّمَاءِ تَقَدَّسَ اسْمُكَ أَمْرُكَ فِي السَّمَاءِ وَالْأَرْضِ كَمَا رَحْمَتُكَ فِي الْأَرْضِ وَاغْفِرْ لَنَا حَوْبَنَا وَخَطَايَانَا أَنْتَ رَبُّ الطَّيِّبِينَ فَأَنْزِلْ شِفَاءً مِنْ شِفَائِكَ وَرَحْمَةً مِنْ رَحْمَتِكَ عَلَى هَذَا الْوَجَعِ

रब्बूनल्लाहुल्लाजी फिस्समाए तकददस असमुका अमरुका फिस्समाए वलअर्दे कमा रहमतुका फीलअर्दे वाग्फिरलना हुबाना वखतयाना अंता रब्बूतैना फंजील शिफाअन मिन शिफाऐका वरहमतन मिन रहमतेका अला हाज़ा अलवाजाई

पेट में दर्द से छुटकारा की इस्लामी दुआ 

जिस किसी शख्स को अक्सर पेट में दर्द की शिकायत रहती हैं चाहे वह ख़राब खाने की वजह से हो या औरतों में पीरियड की वजह से हो या पेट में गैस की वजह से तो वज़ू करके एक गिलास में पानी लें और नीचे बताई दुआ को 3 मर्तबा पढ़ कर उस पानी में दम करके वह पानी पिए  इंशाल्ल्लह पेट दर्द से छुटकारा मिलेगा। दुआ इस तरह हैं 

لَا فِيهَا غَوْلٌۭ وَلَا هُمْ عَنْهَا يُنزَفُونَ 

लाफीहा गवलु वलहूम अन्हा युन्जाफुंना

चमड़ी (Skin) की बीमारी से निजात की इस्लामी दुआ 

जिस किसी शख्स को चमड़ी से जुडी कोई भी बीमारी हो जैसे फोड़े फुंसी या कोई और इन्फेक्शन तो नीचे बताई दुआ को पढ़े और अल्लाह से उससे शिफा की दुआ मांगे। इंशाल्लाह चमड़ी की बीमारी से आपकी निजात मिलेगी। ये दुआ हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम पढ़ते थे। जब उनको चमड़ी से जुड़ी एक गंभीर बीमारी हो गयी थी। उन्होंने कई सालों तक इस दुआ को पढ़ा और एक दिन उनकी वह बीमारी दूर हो गयी थी। उनका उस बीमारी का किस्सा हमने हमारे पुराने ब्लॉग में बताया हैं आप जाकर पढ़ सकते है या आप उनकी बीमारी का किस्सा पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं चमड़ी की बीमारी से निजात की दुआ इस तरह हैं 

رَبَّهُ أَنِّي مَسَّنِيَ الضُّرُّ وَأَنتَ أَرْحَمُ الرَّاحِمِينَ

रब्बी अन्नी मस्सानि यददूर्रू वा अन्ता अरहामुररहीमीन

अगर इस तरह की कोई बीमारी कई इलाज के बावजूद सही नहीं हो रही हैं तो आप ये दुआ को दिल से पढ़े और अल्लाह से शिफा के लिए दुआ मांगे इंशाअल्लाह बीमारी दूर हो जाएगी यही दुआ कैंसर के मरीज़ो को भी पढ़नी चाहिए इस दुआ की बरकत से कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी से भी आपको शिफा मिलेगी। 

आखरी पैगाम 

हर बीमारी से बचने के लिए हमें अहतियात रखना बहुत ज़रूरी हैं जैसे की खान पान का मौसम का वगैरह। ये सभी चीज़ो के पहले ध्यान देना ज़रूरी हैं बीमारी अगर अल्लाह ने दी हैं तो उससे शिफा अता फरमाने वाला भी अल्लाह ही हैं। बस हमें ध्यान रखना हैं की हम हमारी सेहत से कोई खिलवाड़ न करें। खुद को कभी तकलीफ न दे। अल्लाह ने ये ज़िन्दगी ख़ुशी से जीने अल्लाह की इबादत करने और अच्छे काम करने के लिए दी हैं लेकिन फिर भी कुछ लोग गलत तरीको से ज़िन्दगी जीते हैं। कोई बेवजह टेंशन पाल लेता है तो कोई बिना कुछ सोचे हर कुछ खा लेता हैं। जिसके अंजाम बहुत बुरे होते हैं। टेंशन लेने से भी तरह तरह की बीमारियां बदन में पैदा हो जाती हैं और गलत खानपान से भी दिल और पेट की बीमारियां जन्म लेती हैं। 

बेहतर हैं आप पहले इन चीज़ो का ध्यान रखे। हम यह नहीं कहते की बीमार होने पर कोई दवाइयां न ले और सिर्फ इन इस्लामिक दुआओं से अपनी बीमारियों को दूर करें। जहाँ दवाई की ज़रूरत हैं वहां दवाई लेना भी जायज़ हैं। दवाइयां अगर असर नहीं कर रही या आप दवाइयां लेना नहीं चाहते तो आप इन दुआओं की मदद से उन तमाम बीमारियों का ख़ात्मा कर सकते है। ख़ैर जाते जाते यही नसीहत देंगे की अपना ध्यान रखे, अल्लाह से अपने गुनाहो की तौबा हर वक़्त करें गुनाह करने से बचे और अल्लाह की इबादत करते रहे। 

सूरह मुल्क क्या हैं? इसके पढ़ने के क्या क्या फायदे हैं?

सूरह मुल्क क्या हैं? इसके पढ़ने के क्या क्या फायदे हैं?


सूरह मुल्क
क़ुरान शरीफ की 67 वीं सूरह हैं यह क़ुरान शरीफ के 29 वें पारे में मौजूद हैं। इस सूरह में कुल 30 आयतें हैं। इस सूरह में कुल शब्दों की संख्या 337 तथा कुल अक्षरों की संख्या 1316 है। सूरह मुल्क मक्का में नाज़िल हुई थी इसलिए इसे मक्की सूरह भी कहा जाता हैं। 

सूरह मुल्क में किस बात पर ज़ोर दिया गया हैं? 

इस सूरह में अल्लाह ने इस बात पर ज़ोर दिया हैं की कोई भी इंसान अपनी मनमानी नहीं कर सकता यानि इंसान अपनी इच्छा दूसरे लोगों पर थोप नहीं सकता। उससे ज़बरदस्ती काम नहीं करवा सकता। वह सिर्फ हुक्म दे सकता हैं। अगर कोई हुक्म नहीं माने तो कोई उससे ज़बरदस्ती नहीं कर सकता।

सूरह मुल्क पढ़ने के क्या फायदे हैं?

  • क़यामत के दिन सूरह मुल्क पढ़ने से आपके गुनाह माफ़ हो जाते हैं।
  • एक हदीस के मुताबिक पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने लोगों से हर रात को बिस्तर पर जाने से पहले सूरह मुल्क को पढ़ने की नसीहत दी थी उन्होंने कहा था की ऐसा करने से आपको कब्र के अज़ाबों से निजात मिलेगी।
  • सूरह मुल्क पाबन्दी से पढ़ने वाले शख्स के लिए जन्नत के दरवाज़े खुल जाते हैं। 
  • सूरह मुल्क रोज़ाना पाबन्दी से पढ़ने वाला शख्स अल्लाह की तरफ से इनाम का हक़दार होगा। 
  • सूरह मुल्क हमारे ईमान की हिफाज़त करती हैं और हमें सही रास्तों पर जाने की नसीहत देती हैं। 
  • जो शख्स हर रात को सूरह मुल्क पढ़ कर सोयेगा उसकी हिफाज़त एक फरिश्ता करेगा वह रात भर उसे बुरे वसवसे से बचाएगा। 
  • सूरह मुल्क पढ़ने वाला शख्स कभी गुमराह नहीं होगा अल्लाह उसे गुमराही से बचाएगा।
  • सूरह मुल्क पढ़ने से आपकी दुआ जल्द कबूल होती हैं। 
  • ज़िन्दगी में हौसला बढ़ाने के लिए रोज़ाना सूरह मुल्क की तिलावत किया करे। 
  • सूरह मुल्क को पढ़ने से आपका दिल और दिमाग शांत रहता है दिमाग से टेंशन निकल जाती हैं और ज़िन्दगी में खुशहाली आती हैं।

सूरह मुल्क को कैसे याद किया जाये?

वैसे तो क़ुरान की कोई भी आयत या सूरह को याद करना मुश्किल नहीं हैं। हर सूरह को याद करना आसान हैं बशर्ते आप का दिल और दिमाग सिर्फ अल्लाह की तरफ होना चाहिए। क़ुरान की हर सूरह को अगर कोई शख्स दिल से पढता हैं तो वह सूरह उसको अपने आप याद हो ही जाती हैं। फिर भी हम आपको बता देते हैं की सूरह मुल्क को याद कैसे कर सकते हैं? सबसे पहले तो सूरह मुल्क पढ़ने का एक वक़्त तय कीजिये ऐसा वक़्त जिसमे आपके दिमाग में कोई दूसरी चीज़ न चल रही हो। ज़्यादातर ऐसा वक़्त रात में होता हैं या सुबह जल्दी का वक़्त होता हैं फिर भी आप अपनी सहूलियत के हिसाब से ऐसा कोई एक वक़्त निकाल लें। उस वक़्त पर रोज़ाना सूरह मुल्क की तिलावत करे और उसकी हर लाइन को धीरे धीरे तसल्ली से पढ़े। इंशाल्लाह आपको सूरह मुल्क जल्द ही याद हो जाएगी। इसके अलावा आप दिन में कभी भी सूरह मुल्क को सुना करे इससे आपको इस सूरह को याद करने में और आसानी हो जाएगी।

सूरह मुल्क हमें क्या शिक्षा देता हैं?

सूरह मुल्क में बहुत सारी अच्छी बातें बताई गयी है लेकिन इसके साथ साथ उसमें इंसानो के लिए एक सबक भी बताये गए हैं। सूरह मुल्क में बताया गया हैं की अल्लाह ही इस दुनिया का मालिक हैं। अल्लाह ने ही इस दुनिया को बनाया हैं। उसी के सहारे ये दुनिया चल रही हैं। हवा पानी खाना सभी का इंतेज़ाम वही कर रहा हैं। अगर वो नाराज़ हो गया तो पल भर में इस दुनिया को तबाह कर सकता हैं। सूरह मुल्क इंसानो को यह नसीहत देता हैं की वह अल्लाह के बताये रास्तों पर चले और गलत कामों से बचे नहीं तो इसका अंजाम बहुत बुरा होगा। कुलमिलाकर सूरह मुल्क में ये हिदायत दी गयी है की अल्लाह ही सबका मालिक हैं। इंसानो को उसके बताये हुक्मो का पालन करना चाहिए नहीं तो अल्लाह सब कुछ ख़त्म कर देगा। 

सूरह मुल्क में यह भी बताया गया हैं की जो लोग अच्छा काम करते हैं और दुनिया में रहते अल्लाह से डरते हैं उन्हें इनाम दिया जायेगा और अल्लाह पर उनकी रहमत बरसेगी और जो बुरा काम करेगा उसको सज़ा भी मिलेगी। अल्लाह सूरह मुल्क में ऐसे लोगों को चेतावनी देता हैं जो अल्लाह को नहीं मानते और बुतों की पूजा करते हैं ऐसे लोग भयंकर अज़ाब का शिकार होंगे। 

आखरी नसीहत 

सूरह मुल्क पढ़ कर हमें ये अंदाज़ा तो लग ही जाता हैं की अल्लाह ही सबसे बड़ा हैं इंसान उसके सामने कीड़े मकोड़ो की तरह हैं। अल्लाह चुटकी में इस दुनिया को बना भी सकता हैं और बर्बाद भी कर सकता हैं। आज हम देखते हैं की फला जगह पर भूकंप आया तो हज़ारों लाखों लोग मारे गए आप सोच सकते हैं की पल भर में बड़ी बड़ी इमारतें मिट्टी में मिल जाती हैं। लोग कुछ ही मिनटों में दम तोड़ देते हैं। ऐसी मुसीबतों कभी भी कहीं भी आ सकती हैं इसलिए हमें अपने गुनाहो से माफ़ी मांगना चाहिए। सिर्फ अल्लाह के बताये रास्तों पर चलना चाहिए अगर हम अमीर इंसानों को ही सब कुछ मानने लगेंगे तो अल्लाह हम से नाराज़ हो जायेगा और हम उसके अज़ाब का शिकार कभी भी हो सकते हैं। इसलिए हमें सिर्फ अल्लाह की इबादतों पर ध्यान देना चाहिए। अपने गुनाहो की माफ़ी मांगनी चाहिए। दुनियावी ज़िन्दगी ही सब कुछ नहीं हैं हमें अपनी आख़िरत को भी याद करना चाहिए ताकि हम जहन्नम की अज़ाबो से बच सके।

सूरह मुज़म्मिल पढ़ने के फायदे और उसकी फ़ज़ीलत

सूरह मुज़म्मिल पढ़ने के फायदे और उसकी फ़ज़ीलत

सूरह अल-मुज़म्मिल क़ुरान शरीफ की 73 वीं सूरह हैं और यह क़ुरान शरीफ के 29 वे पारे में मौजुद हैं। ये सूरह मक्का में नाज़िल हुई थी इसलिए इसे मक्की सूरह भी कहा जाता हैं। सूरह मुज़्ज़म्मिल में 20 आयतें 227 शब्द और 847 अक्षर हैं। सूरह अल-मुज़म्मिल रात में इबादत करने पर ज़ोर डालता हैं और पूरी तरह से अल्लाह पर भरोसा करना बताता हैं। सूरह मुज़म्मिल इंसान को शांत रहने का भी सन्देश देता हैं। इस सूरह में ये कहा गया हैं की आपको हर काम में सब्र रखना चाहिए चाहे वह कोई भी काम हो सब्र रखने से ही आपको उसका फल मिलता हैं। 

क़ुरान में हर एक सूरह में अलग अलग बातें बताई गयी हैं हर सूरह का अपना अलग मायने हैं। हर सूरह कोई न कोई सन्देश और हिदायत मुसलमानो को देता हैं। इसी तरह सूरह मुज़्ज़म्मिल भी क़ुरान की एक सूरह हैं जिसमें अल्लाह की तरफ से कुछ सन्देश दिया गया हैं। अल मुज़म्मिल एक अरबी शब्द हैं जिसका मतलब होता हैं लिपटा हुआ या ढका हुआ। ये नाम हमारे प्यारे नबी पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नामों में से भी एक नाम हैं। सूरह मुज़्ज़म्मिल में अल्लाह की इबादत करने अच्छे काम करने से मिलने वाले सवाब को भी इस सूरह में बताया गया हैं। सूरह मुज़म्मिल में अच्छे काम करने वाले, अल्लाह की इबादत करने वाले लोगों को जन्नत का हक़दार बनने और बुरे काम करने वाले लोगों को जहन्नम की आग में डालने जैसी बातों को भी इसमें बताया गया हैं। अल्लाह ने मुसलमानो को क़ुरान इसलिए दिया ताकि वह हिदायत के रास्ते पर चल सके। 

सूरह मुज़म्मिल क्यों नाज़िल हुई?

अल्लाह ने हमारे नबी को ये सन्देश दिया की आप रात में इबादत करें। क्यूंकि ज़िन्दगी में होने वाली मुसीबतों से सामना करने और कामयाबी हासिल करने के लिए क़ुरान पढ़ना ज़रूरी हैं। दूसरी बात हर मुस्लमान को अपने कमाई से कुछ पैसा गरीबों को देना का आदेश इस सूरह में बताया गया हैं। ये ज़रूरी बातें मुसलमानो को बताने के लिए अल्लाह ने सूरह मुज़म्मिल को नाज़िल किया।

सूरह मुज़्ज़म्मिल पढ़ने के फायदे और उसकी फ़ज़ीलत क्या हैं?

  • सूरह मुज़्ज़म्मिल हमारे दिल को साफ़ करता है और दिलों में मौजूद बुराई का ख़ात्मा करता है। 
  • सूरह मुज़्ज़म्मिल पढ़ने से किसी भी तरह की दिमागी बीमारी से आदमी बचा रहता हैं। 
  • एक हदीस के मुताबिक जो शख्स रोज़ाना सूरह मुज़्ज़म्मिल पढता हैं तो उसे उसे हज़रत पैगम्बर से मिलने का मौका मिलेगा।  
  • ये सूरह रोज़ाना पढ़ने से बुरी बलाओं, बुजी नज़रों और अचानक होने वाली मुसीबतों से आपकी हिफाज़त रहती हैं। रात को सोने से पहले सूरह मुज़्ज़म्मिल पढ़ने से ईमान भी मज़बूत रहता है। 
  • रोज़ाना सूरह मुज़्ज़म्मिल पढ़ने से बड़ी से बड़ी मुश्किल से आप निकल सकते हैं। 
  • सूरह मुज़्ज़म्मिल रोज़ाना पढ़ने के बाद जो दुआ आप दिल से मांगोगे वो दुआ आपकी कबूल होगी।
  • अगर कोई ईशा की नमाज़ के बाद सूरह मुज़्ज़म्मिल पढ़ेगा वह रात भर शैतानी वसवसे से दूर रहेगा कोई उसका कुछ बिगड़ नहीं पायेगा। 
  • ये सूरह पढ़ने से आप दुनियावी ज़िन्दगी में लोगों की गुलामी से बचे रहोगे। 
  • हर इंसान की ज़िन्दगी में रोज़ कोई न कोई परेशानी आती ही रहती हैं। सूरह मुज़्ज़म्मिल पढ़ने से आप ये रोज़ाना होने वाली परेशानी से बचे रहोगे। 
  • सूरह मुज़्ज़म्मिल पढ़ने से जान और माल की हिफाज़त रहेगी और माल में भी बरकत होगी और आपकी भी हिफाज़त रहेगी। 
  • जुमेरात के दिन सूरह मुज़्ज़म्मिल 100 मर्तबा पढ़ने से आपके 100 गुनाह माफ़ हो जायेंगे। 
  • सूरह मुज़्ज़म्मिल पढ़ने वाला शख्स ज़िन्दगी में कामयाब होने से कभी नहीं कतराएगा मतलब ये सूरह उसे कामयाबी के रास्ते पर ले जाएगी। 
  • सूरह मुज़्ज़म्मिल आपको घबराहट और टेंशन से छुटकारा दिलवाएगी इसे पढ़ने से आपका दिल भी मज़बूत होगा। 
  • ये सूरह आपको एक अच्छा मुसलमान बनने के लिए प्रेरित करती हैं। 
  • सूरह मुज़्ज़म्मिल पढ़ने वाला शख्स जहन्नम के अज़ाब से होने वाले दर्द से बचा रहेगा कहने का मतलब जब उस शख्स को जहन्नम में उसके गुनाहो को अज़ाब दिया जायेगा तो उस शख्स हो उस अज़ाब से तकलीफ नहीं होगी। 
  • सूरह मुज़्ज़म्मिल ज़ालिम लोगों से लड़ने के लिए आपको सही मार्गदर्शन देती हैं।

सूरह मुज़म्मिल से हमें क्या शिक्षा मिलती हैं?

सूरह मुज़म्मिल हमें बताता हैं की हमें रात में अल्लाह की इबादत करना चाहिए। रात का मतलब सिर्फ सोना नहीं होता, रात में अल्लाह की इबादत करके अपने गुनाहो की माफ़ी मांगना चाहिए और अच्छे मुसलमान बनने के लिए अल्लाह से दुआ मांगना चाहिए। सूरह मुज़म्मिल यह सीख भी हमें देता है की हमें हमेशा सब्र करना चाहिए और अच्छे वक़्त का इंतज़ार करना चाहिए। ये सूरह अच्छे काम पर ज़ोर डालता है और बुरे कामो को करने वाले लोगों को चेतावनी देता हैं। सूरह मुज़म्मिल गरीबो की मदद करने ज़कात देने पर ज़ोर देता हैं और ये बताता हैं की आप को ज़कात देने और गरीबो की मदद करने का सवाब ज़रूर मिलेगा और आप पर अल्लाह की मेहरबानी रहेगी। इसमें यह भी बताया गया हैं की जो शख्स खुदा को नहीं मानता वो अल्लाह की तरफ से सज़ा का हक़दार बनेगा और जहन्नम की आग का शिकार होगा।

आखरी पैगाम 

क़ुरान में मौजूद हर सूरह में हर तरह की मुसीबतों से बचने उनसे लड़ने और एक अच्छी ज़िन्दगी जीने का तरीका बताया गया हैं। हम लोग अगर क़ुरान को पाबन्दी से पढ़ेंगे और उस पर अमल करेंगे तो इंशाल्लाह कोई भी मुसीबत या परेशानी आपका कुछ नहीं बिगाड़ पायेगी। क़ुरान में हर हर चीज़ का इलाज हैं। क़ुरान में मौजूद हर सूरह हमें ज़िन्दगी में आगे बढ़ने और नेक अमल करने का पैगाम देती हैं और हमें गलत काम करने से बचती हैं। लिहाज़ा हम सब को चाहिए की हम पाबन्दी से नमाज़ और क़ुरान को पढ़े और अल्लाह से अपनी मगफिरत की दुआ मांगे। जो मांगना हैं अल्लाह से मांगे अल्लाह आपको हर वो चीज़ देगा जिसकी आपको चाहत हैं। आखिर में हम यही बोलेंगे की अल्लाह हमें पांच वक़्त का नमाज़ी और दीन पर चलने का पाबंद बनाये आमीन।

ईद उल फ़ित्र की नमाज़ और उसे पढ़ने का तरीका

ईद उल फ़ित्र की नमाज़ और उसे पढ़ने का तरीका

ईद उल फ़ित्र मुसलमानों के सबसे प्रमुख त्यौहार में से एक त्यौहार हैं। ईद उल फ़ित्र का त्यौहार रमज़ान महीने के पुरे रोज़े मुकम्मल होने पर मनाया जाता हैं। ईद उल फ़ित्र का चाँद दिखने के साथ ही शव्वाल का महीना भी शुरू हो जाता हैं। इससे पहले हमने शव्वाल महीने की इबादतों पर भी एक ब्लॉग लिखा था आज हम ईद उल फ़ित्र का त्यौहार ईद उल फ़ित्र की नमाज़ और उसके तरीके के बारे में बात करेंगे ताकि आपको ईद उल फ़ित्र से जुड़ी ज़रूरी मालूमात हासिल हो जाये। 

ईद उल फ़ित्र का त्यौहार क्यों मनाया जाता हैं?

रमज़ान के महीने में मुसलमान रोज़े रखता हैं इबादत करता हैं। रमज़ान के पुरे रोज़े होने के बाद यानि आखरी रोज़े में शाम को शव्वाल महीने का चाँद दिखाई देता हैं और उसके अगले दिन यानि की अगली सुबह ईद उल फ़ित्र का त्यौहार मनाया जाता हैं। ईद उल फ़ित्र का त्यौहार एक ख़ुशी का त्यौहार हैं रमज़ान के पुरे रोज़े होने की ख़ुशी में यह त्यौहार मनाता हैं यानि की जो रमज़ान में रोज़े रखे, पुरे महीने इबादत करी और बुरे कामो से दूर रहने के एक महीने मुकम्मल होने पर मुसलमान अल्लाह का शुक्र अदा करता हैं और ईद उल फ़ित्र का त्यौहार मनाता हैं। ईद उल फ़ित्र त्यौहार मानाने की शुरुआत पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने की थी। तब से लेकर ईद उल फ़ित्र इस्लाम में एक सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार बन गया है। 

ईद उल फ़ित्र में क्या काम करना चाहिए?

  • ईद उल फ़ित्र के फ़ित्र नहा धोकर अच्छे कपड़े या नया इस्लामी लिबास पहनना चाहिए। 
  • कपड़ो पर इत्र लगाना चाहिए। 
  • मर्दो को ईदगाह जाकर ईद उल फ़ित्र की नमाज़ अदा करना चाहिए औरतो को घर में चाशत की नमाज़ अदा करना चाहिए। 
  • ईद उल फ़ित्र के दिन ज़कात खैरात करना चाहिए हो सके तो नमाज़ से पहले ही ज़्यादा से ज़्यादा ज़कात खैरात करें। 
  • घरों में अच्छा पकवान या तरह तरह के पकवान जैसे सेवइयां खीर इत्यादि बनाने चाहिए। 
  • एक दूसरे को ईद की मुबारकबाद देना चाहिए और घरों में तरह तरह के पकवान बनाकर रिश्तेदारों दोस्तों की दावत करना चाहिए। 
  • बच्चो को ईदी और बड़ो को उपहार पेश करना चाहिए क्यूंकि ईद उल फ़ित्र एक खुशी का दिन हैं।

ईद उल फ़ित्र के दिन क्या नहीं करना चाहिए?

  • ईद उल फ़ित्र के दिन कोई लड़ाई झगड़ा नहीं करना चाहिए। 
  • ईद उल फ़ित्र के दिन रोज़ा नहीं रखना चाहिए। 
  • ईद उल फ़ित्र के दिन ज़्यादा सोना नहीं चाहिए।
  • ईद उल फ़ित्र के दिन मायूस या परेशान नहीं होना चाहिए।

ईद उल फ़ित्र की नमाज़ का तरीका जानना क्यों ज़रूरी हैं?

अक्सर हम देखते हैं की हम में से कुछ लोग (खासकर कम उम्र के बच्चे) ईद की नमाज़ का तरीका हर साल भूल जाते हैं। वैसे तो ईद उल फ़ित्र की नमाज़ से पहले इमाम नमाज़ का तरीका बताते है लेकिन कुछ लोग नमाज़ शुरू होने से कुछ ही देर पहले ईदगाह पहुचंते है तो वह फिर नमाज़ का तरीका भूल जाते हैं या उन्हें याद नहीं रहता और आस पास के लोगों को देखकर नमाज़ अदा करते हैं। इसलिए हम आपको ईद उल फ़ित्र की नमाज़ का तरीका बता रहे हैं ताकि आप नमाज़ से पहले इसे पढ़ कर और समझ कर अपनी नमाज़ आसानी से अदा कर सके। 

ईद उल फ़ित्र की नमाज़ में कितनी रकात होती हैं?

ईद उल फ़ित्र में सिर्फ 2 रकात नमाज़ अदा करनी होती है लेकिन नमाज़ का तरीका दूसरी नमाज़ों से अलग होता हैं। 

ईद उल फ़ित्र की नमाज़ का वक़्त क्या होता हैं?

ईद उल फ़ित्र की नमाज़ का वक़्त सूरज निकलने के 30 मिनट बाद से शुरू हो जाता हैं लेकिन आमतौर पर ईद की नमाज़ सुबह 8 बजे से 10 बजे की बीच पढ़ी जाती हैं। कहने का मतलब हर ईदगाह में नमाज़ के वक़्त में थोड़ा बहुत फर्क रहता हैं। लिहाज़ा आप अपने शहर में जो नमाज़ का वक़्त बताया गया हैं उस वक़्त के हिसाब से ईदगाह जाकर नमाज़ अदा करें।

ईद उल फ़ित्र की नमाज़ का तरीका 

सबसे पहले ईद उल फ़ित्र नमाज़ की नियत करें जो इस तरह है, 

नियत की मैंने दो रकात नमाज़ ईद उल फ़ित्र वाजिब मय ज़ाइद 6 तकबीरों के वास्ते अल्लाह तआला के पीछे इस इमाम के, मुंह मेरा काबा शरीफ़ की तरफ़ अल्लाहु अकबर कहते हुए कानों तक हाथ उठाये फिर बांध ले फिर सना पढ़े "सुबहानका अल्लाहुम्मा व बिहम्दीका व तबा रकस्मुका व तआला जद्दुका वाला इलाहा गैरुका"। फिर इमाम के साथ अल्लाहु अकबर कहते हुए दोनों हाथ कानों तक ले जाये और छोड़ दे। दूसरी बार भी अल्लाहु अकबर कहते हुए हाथ कानों तक ले जाये और छोड़ दे। तीसरी मर्तबा अल्लाहु अकबर कहते हुए हाथ कानों तक ले जाये और फिर बांध ले। फिर इमाम जो भी पढ़ रहे हैं जैसे सूरह फातेहा और उसके बाद कोई सूरह उसे चुपचाप ख़ामोशी से सुने। इसमें आप को कुछ पढ़ने की ज़रूरत नहीं हैं। अगर इमाम की आवाज़ नहीं भी आ रही हैं फिर भी खामोश रहे। फिर इमाम के साथ रुकू जाकर 3 मर्तबा "सुबहाना रब्बी अल अज़ीम" पढ़े। फिर सजदे में जाकर 3 मर्तबा सुबहाना रब्बी अल आला पढ़े फिर वापिस अल्लाहु अकबर कहते हुए दोबारा सजदे में सुबहाना रब्बी अल आला पढ़े। 

आप फिर अल्लाहु अकबर कहते हुए दूसरी रकात के लिए खड़े हो जाये और हाथ बांध ले। फिर इमाम जो पढ़ रहा है उसे फिर से ख़ामोशी से सुने। दूसरी रकात में आपको 3 मर्तबा हाथ को अल्लाहु अकबर कहते हुए कानों तक तक ले जाकर छोड़ देना हैं। फिर चौथी मर्तबा जब इमाम अल्लाहु अकबर कहता हैं तो सीधे रुकू में जाना हैं फिर 2 मर्तबा सजदा करने के बाद बैठ जाना हैं। फिर इमाम अत्तहिय्यात, दरूदे इब्राहिम, दुआ ए मसुरा पढ़ेंगे। आप को सिर्फ खामोश बैठना हैं। उसके बाद इमाम के साथ सलाम फेरना हैं इस तरह आपकी ईद उल फ़ित्र नमाज़ हो जाएगी।

इंशाल्लाह ये तरीका जानने के बाद आपको ईद उल फ़ित्र की नमाज़ में कोई गलती नहीं होगी। हम उम्मीद करते हैं आज का ये आर्टिकल पढ़ कर आपको ईद उल फ़ित्र के बारे में जानकारी हासिल हो गयी होगी। अल्लाह हम सब को रमज़ान के महीने में पाबन्दी से रोज़ा रखने, इस महीने में पाबन्दी से इबादत करने और इस महीने के गुज़र जाने के बाद भी पांच वक़्त की नमाज़ का पाबंद बनाये आमीन। 

जानिए सूरह कौसर को पढ़ने के फायदे और इसके वज़ीफ़े के बारे में

सूरह कौसर क़ुरान की 108 वीं सूरह हैं। यह क़ुरान के 30 वे पारे में मौजूद हैं। ये क़ुरान की सबसे छोटी सूरह हैं। कुछ लोग इसे मक्की सूरह कहते हैं ...

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