Disabled Copy Paste

जानिए हज़रत इमाम हुसैन की पूरी कहानी (Hazrat Imam Hussain Story in Hindi)

जानिए हज़रत इमाम हुसैन की पूरी कहानी (Hazrat Imam Hussain Story in Hindi)

हज़रत इमाम हुसैन को इस्लाम में शहीद का दर्जा दिया गया हैं। उनकी शहादत की कहानी हर किसी को रुला सकती है। इमाम हुसैन की याद में ही मुहर्रम के महीने में उनकी शहादत को याद किया जाता हैं। हज़रत इमाम हुसैन मानवता प्यार और अहिंसा के प्रतिक थे। उनके कर्बला में शहीद होने की किस्से कई हदीसों में आये हैं। आज के इस आर्टिकल में हम हज़रत इमाम हुसैन के बारे में तफ्सील से जानेंगे। उनके जन्म, उनकी कहानी और कर्बला के किस्से को बताने की कोशिश करेंगे। 

हज़रत इमाम हुसैन का जन्म कहाँ हुआ था?

हज़रत इमाम हुसैन पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के नवासे और अली इब्ने अबी तालिब (हजरत अली) और हज़रत फातिमा के बेटे थे। हज़रत इमाम हुसैन का जन्म इस्लामिक कलैंडर के हिसाब से 3 शाबान, सन 4 हिजरी और अंग्रेजी के हिसाब से 8 जनवरी 626 ईस्वी में मदीना में हुआ था। हज़रत फातिमा आप पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद की बेटी थी। इस हिसाब से हज़रत इमाम हुसैन पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद के नवासे थे।

हज़रत इमाम हुसैन की कितनी औलादें थी?

हज़रत इमाम हुसैन की कुल 6 औलादें थी जिनके नाम कुछ इस प्रकार है, 

  1. इमाम ज़ैनुल आबेदीन 
  2. अली अल-अकबर इब्न अल हुसैन'
  3. अली अल-असगर इब्न अल हुसैन 
  4. इमाम जाफर 
  5. फातिमा सुगरा बिन्त हुसैन 
  6. सकीना बिन्त अल हुसैन 

हज़रत इमाम हुसैन की कहानी 

हज़रत अली की की हत्या के बाद मुआविया ने शासन किया गद्दी पर बैठा, यानि इलाके का खलीफा नियुक्त हुआ। उस वक़्त हज़रत अली के बेटे हसन और हुसैन ने अपने पिता की हत्या के बाद मुआविया के शासन को स्वीकार लिया था लेकिन मुआविया की मौत के बाद उसका बेटा यज़ीद सत्ता हासिल करना चाहता था। जो की बहुत क्रूर और अत्याचारी शासक था। मुआविया की मौत के बाद इलाके के लोग हज़रत इमाम हुसैन को खलीफा बनाना चाहते थे लेकिन यज़ीद ने लोगों में दहशत फैलाकर और पैसा देकर इलाके पर कब्ज़ा कर लिया था। यज़ीद एक बहुत चालाक शख्स था। उसने सत्ता हासिल करने के लिए डर और दहशत वाला बहुत गलत रास्ता चुना। इलाके के सारे लोग हज़रत इमाम हुसैन को खलीफा बनाने के पक्ष में थे लेकिन यज़ीद के डर से चुप रहते थे जबकि खलीफा बनने का हक़ सिर्फ हज़रत इमाम हुसैन को था। यज़ीद को हर वक़्त इसी बात का डर रहता था की कहीं हज़रत इमाम हुसैन सत्ता हासिल न कर ले इसलिए वह लोगों को भी डराता रहता था ताकि लोग उसके डर के वजह से हज़रत इमाम हुसैन के समर्थन में न जाये। सारे लोग यज़ीद से डरते थे लेकिन हज़रत इमाम हुसैन उससे बिलकुल बेखौफ थे। हज़रत इमाम हुसैन इन्साफ पसंद इंसान थे। वह सही तरीके से यज़ीद को सत्ता से हटाना चाहते थे ताकि लोगो पर यज़ीद का ज़ुल्म ख़त्म हो जाये और इलाके के लोग बेखौफ और प्यार से रहे।

उस वक़्त यज़ीद का शासन था। यज़ीद एक बहुत अत्याचारी आदमी था वह वहां के लोगों को डरा कर उनपर अत्याचार करके इलाके पर राज करता था। उसका एक की मकसद था की लोगो पर ज़ुल्म करके उन्हें डरा धमका कर इलाके पर कब्ज़ा किया जाये ताकि लोग उसके डर से उसकी इज़्ज़त करें और पुरे इलाके में उसका खौफ रहे। 

हज़रत इमाम हुसैन का किरदार

हज़रत इमाम हुसैन बहुत बड़े इबादत गुज़ार थे। वह रात भर अल्लाह की इबादत में लगे रहते थे। दिन में वह इलाके में रह रहे ग़रीबो की मदद करते थे।  उनके हमदर्द बनते थे उनकी खुशियों में शरीक होते थे और खुशियां बाँटते थे। बाकि वक़्त वह इस्लाम के प्रचार में निकालते थे। उनका एक ही मकसद था की लोगों की भलाई की जाये और इस्लाम को पूरी धरती पर फैलाया जाये। उन्होंने अपनी पूरी ज़िंदग इस्लाम के प्रचार प्रसार में गुज़र की। पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने दोनों नवासे हसन और हुसैन के बारे में कहते थे की मेरे लिए हसन और हुसैन दुनिया की सबसे अच्छी खुशबु हैं।

हज़रत इमाम हुसैन को लोगों और समाज से प्यार था। वह यज़ीद की डर की राजनीति को पसंद नहीं करते थे। लोग भी आप इमाम हुसैन के समर्थन में थे।यज़ीद को जब इस बात का अहसास हुआ की लोग आपके समर्थन में है। उसने सोचा की अगर हज़रत इमाम हुसैन भी उसका समर्थन करेंगे तो लोग भी उसका यानि यज़ीद का समर्थन करेंगे लेकिन हज़रत इमाम हुसैन ने यज़ीद की हर बात मानने से इंकार कर दिया था। यज़ीद ने फिर यह योजना बनायीं की जो उसकी बात नहीं मानेगा या उसके खिलाफ जायेगा वह उसे जान से मार देगा। हज़रत इमाम हुसैन को भी वह मरना चाहता था इस बात का अंदाज़ा आप हज़रत इमाम हुसैन को हो गया था। 

हज़रत इमाम हुसैन ने मदीना क्यों छोड़ा?

जब हज़रत इमाम हुसैन को मालूम चला की यज़ीद उनको मरना चाहता हैं तो उन्होंने अपने परिवार की हिफाज़त के लिए मदीना छोड़ने का फैसला किया और मक्का जाने का फैसला किया। जब आप मदीना से मक्का के लिए जाने का सोच रहे थे तब हज का महीना भी चल रहा था यानि काफी लोग उस वक़्त पवित्र शहर मक्का में हज के लिए जा रहे थे। आपने भी फैसला किया की आप भी हज के लिए जायेंगे। बस यही सोच कर आप मदीना से मक्का के लिए निकल गए। जब आप मक्का पहुंचे तो उनको कूफ़ा जो की उस वक़्त इराक का एक शहर था वहां से काफी लोगों का समर्थन मिला। आपको किसी ने खबर दी की कूफ़ा के लोग आपके समर्थन में हैं और यज़ीद के ज़ुल्म को ख़त्म करने के लिए तैयार हैं और आप के साथ हैं।आपको इस बात को सुनकर बड़ी ख़ुशी हुई की कूफ़ा में उनके काफी समर्थक हैं। उन्होंने फिर मक्का से कूफ़ा जाने के लिए फैसला किया क्यूंकि वो यज़ीद के ज़ुल्म को ख़त्म करना चाहते थे। मक्का के कई लोगों ने आपको समझाया की आप कूफ़ा न जाये वहां आपकी और आपके परिवार की जान को खतरा हो सकता हैं लेकिन आप ने बड़ी सूझ बुझ से फैसला किया की वह कूफ़ा जायेंगे और लोगों से मिलेंगे और यज़ीद के आतंक को खत्म करेंगे। यज़ीद को इस बात का पता चल गया था की कूफ़ा के लोग आप हज़रत इमाम हुसैन के साथ हैं और उसके खिलाफ जुंग के लिए तैयार हैं। ये सुनकर यज़ीद बहुत डर गया था। उसे ये डर हो गया था की अगर सारे लोग हज़रत इमाम हुसैन के साथ हो गए तो उसकी सत्ता जा सकती हैं।

हज़रत इमाम हुसैन कर्बला कैसे पहुँचे?

जब आप कूफ़ा के लिए मक्का से रवाना हुए तो यज़ीद ने अपनी सेना जिनकी तादाद हज़ारों में थी आपके पीछे लगा दी। इतनी भारी संख्या के आने का अंदाज़ा जब कूफ़ा के लोगों को लगा तो बहुत से लोग डर गए और उन्होंने हज़रत इमाम हुसैन का समर्थन करने से मना कर दिया। कुछ लोग ऐसे भी थे जो यज़ीद की सेना से लड़ने के लिए तैयार थे लेकिन ऐसे लोग बहुत कम थे ज़्यादातर लोगों ने यज़ीद की ताकत और उसकी सेना के डर से आखरी वक़्त में इमाम हुसैन का साथ देने से इंकार दिया था। जब इस बात का पता हज़रत इमाम हुसैन को लगा तो उनको लग गया था की यज़ीद अब उन्हें नहीं छोड़ेगा और उनकी मौत निश्चित हैं लेकिन फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने फिर भी कूफ़ा की और बढ़ने की यात्रा जारी रखी। अब उनके साथ उनके परिवार के कुछ लोग और साथ में उनके कुछ समर्थक थे। 

यज़ीद की सेना आपको कूफ़ा नहीं जाने देना चाहती थी इसलिए उन्होंने कूफ़ा के रास्ते पर अपनी सेना लगा दी और इमाम हुसैन के काफिले को कूफ़ा की जगह कर्बला की और जाने के लिए मजबूर किया। कर्बला जो की उस वक़्त की एक बीहड़ जगह और गरम रेगिस्तान था। जहाँ सिवाय बंजर ज़मीन के कुछ नहीं था। इमाम हुसैन और उनका काफिला जिसमे कुल 72 लोग थे जब मुहर्रम की 2 तारीख  61 हिजरी को कर्बला पहुंचे तब यज़ीद की सेना भी वहां पहुँच गयी। मुहर्रम की 7 तारीख  को यज़ीद की सेना ने कर्बला में मौजूद एक नहर फ़ुरात नदी(अलक़मा नहर) पर पहरा लगा दिया ताकि हज़रत इमाम हुसैन और उनका काफिला पानी नहीं पी सके और अगर पानी पीने आये तो उन्हें उसी वक़्त मार दिया जाये। हज़रत इमाम हुसैन फिर भी यज़ीद की सेना के सामने झुकने को तैयार नहीं थे वह बिना पानी के अपना सफर करते रहे। कर्बला के रेगिस्तान की इतनी गर्मी में बिना पानी के रहना बहुत मुश्किल था। बिना पानी के हज़रत इमाम हुसैन के बच्चे प्यास से तड़पने लगे क्यूंकि उनके पास न पानी बचा था न खाना। बिना पानी और भूक के रहते हुए उन्हें 2 दिन हो गए थे। 

इमाम हुसैन कर्बला में यज़ीद से लड़ना नहीं चाहते थे वह बस अपने परिवार को वहां से निकालना चाहते थे ताकि वह किसी तरह कूफ़ा तक पहुंच जाये। उनको पता था की यज़ीद की सेना उनके पुरे परिवार को मार देगी इसलिए वह सेना की सामने नहीं आना चाह रहे थे। मुहर्रम की 9 तारीख को यज़ीद की सेना ने कर्बला में आप के काफिले पर हमला कर दिया। अब आप समझ गए थे की उनका बचना मुश्किल हैं। हज़रत इमाम हुसैन ने यज़ीद की सेना से एक रात की मोहलत मांगी ताकि आप मुहर्रम की 9 तारीख की रात अल्लाह की इबादत कर सके और अल्लाह से अगले दिन जंग में फ़तेह हासिल करने की दुआ मांग सके। यज़ीद की सेना उनकी इस बात को मान गयी और उन्हें यानि हज़रत इमाम हुसैन को एक रात की मोहलत दे दी क्यूंकि यज़ीद की सेना को मालूम था की ये लोग बिना पानी खाने के रह रहे हैं और एक रात में तो ये और कमज़ोर हो जायेंगे। 


कर्बला की जंग का वाक़ेया 

एक रात की मोहलत मिलने के बाद हज़रत इमाम हुसैन उनके परिवार और काफिले ने रात भर अल्लाह की इबादत की और जंग में फ़तेह हासिल करने की दुआ मांगी।  अगले दिन यानि मुहर्रम की 10 तारीख को जंग का ऐलान दोनों और से हुआ।  जंग में हज़रत इमाम हुसैन के समेत कुल 72 योद्धा यज़ीद की हज़ारों सेना के सामने युद्ध करने को तैयार थे। प्यास और भूक की हालत में भी आपके लोगों ने यज़ीद की हर बात को मानने से इंकार दिया क्यूंकि वह यज़ीद के सामने झुकने से ज़्यादा शहीद होकर मरना पसंद करते थे। दोपहर में नमाज़ के बाद यज़ीद की सेना आप के काफिले पर हमला कर दिया। हज़रत इमाम हुसैन समेत 72 योद्धाओं ने यज़ीदियों से डट कर मुकाबला किया। जंग में आपके सभी योद्धा शहीद हो चुके थे तब अकेले इमाम हुसैन ही अकेले बचे थे बाकि कुछ महिलाएं जिनमे एक आपकी यानि हज़रत इमाम हुसैन की बीवी भी थी वह तम्बू में थे। तभी अचानक उनको अपने 6 महीने के बेटे अली असगर की आवाज़ सुनाई दी जो की 3 दिन से प्यास से तड़प रहा था । उनका बेटा भूक और प्यास से बेहाल था। उनकी माँ भी 3 दिन से भुकी प्यासी थी जिसकी वजह से दूध भी नहीं पिला पा रही थी। 

आप हज़रत इमाम हुसैन को अपने बेटे की यह हालत देखी नहीं गयी और वह उसे अपने हाथो में उठाकर कर्बला में ले गए। उन्होंने यज़ीद की सेना को अपने बेटे को थोड़ा पानी पिलाने के लिए कहा लेकिन उन्होंने पानी नहीं दिया और आपके बेटे के ऊपर तीर से वार कर दिया। जिससे आपके बेटे की उसी वक़्त मौत हो गयी और वह शहीद हो गए। उसके बाद यज़ीद की सेना ने भी हज़रत इमाम हुसैन को बहुत बुरी तरह से क़त्ल किया। इमाम हुसैन के शहीद होने के बाद उनका घोड़ा जिसका नाम जुलजनाह था वह तम्बू में आया। उसके जिस्म पर खून की निशान थे वह ज़ख़्मी भी था। तम्बू में आते ही वहां मौजूद महिलाएं समझ गयी थी की हज़रत इमाम हुसैन शहीद हो चुके हैं। हज़रत इमाम हुसैन के शहीद होने के बाद उनके घोड़े जुलजनाह के साथ क्या हुआ इसका कोई ज़िक्र या इसका कोई साबुत किताबों में नहीं आया हैं। यज़ीदियों ने तलवार से आप का मुबारक सर काटकर गली मोहल्लों में घुमाया था। उनका जुलुस निकाला गया था। ये देखकर हर किसी की आंख में आंसू थे सिवाय यज़ीदियों के। खैर इमाम हुसैन की शहादत को इस्लाम कभी भुला नहीं सकता। इनकी ही याद में मुहर्रम के महीने में मातम किया जाता है और हज़रत इमाम हुसैन और उनके परिवार की क़ुरबानी को याद किया जाता है। 

हमें भी चाहिए की मुहर्रम के महीने में उनकी शहादत को याद करें। मुहर्रम में ताजिया निकालकर ढोल नगाड़े बजाकर यज़ीदियों जैसे काम न करें।  जितना हो सके भूके प्यासे लोगों को खाना खिलाये।  मुहर्रम की 9 और 10 तारीख को रोज़ा रखे और इमाम हुसैन की शहादत को याद करें। 

सूरह रहमान पढ़ने के फायदे (Benefits of Reading Surah Rahman)

सूरह रहमान पढ़ने के फायदे (Benefits of Reading Surah Rahman)

सूरह रहमान क़ुरान मजीद की 55 वी सूरह हैं। यह सूरह क़ुरान के 27 वे पारे में मौजूद हैं। इस सूरह में 78 आयतें हैं। इस सूरह का पता मक्का में चला था तो इसे मक्की सूरह भी कहा जाता हैं। जैसे सूरह यासीन को क़ुरान का दिल कहा जाता हैं। वैसे ही इस सूरह को क़ुरान की दुल्हन भी कहा जाता हैं। सूरह रहमान में रहमान का मतलब दयालु होता हैं। सूरह रहमान बताता हैं की अल्लाह अपने बन्दों पर कितना मेहरबान रहता है अगर सूरह रहमान पढ़ा जाये तो अल्लाह अपने बन्दों के बड़े से बड़े गुनाहो को भी माफ़ कर देता हैं। 

ये सूरह अल्लाह की दी मेहरबानियों पर ज़ोर डालता है। ये सूरह पढ़ कर मोमिन अल्लाह से अपनी मगफिरत की दुआ मांगता हैं तो अल्लाह उस शख्स को माफ़ कर देता हैं। ये सूरह अल्लाह की ताकतों उसके चमत्कारों और अल्लाह की बनायीं दुनिया के बारे में बताता हैं और जो लोग अल्लाह को मानने से इंकार करते हैं उनको चेतावनी भी देता हैं। जैसा की क़ुरान की हर सूरह को पढ़ने का कोई न कोई फ़ायदा हैं वैसे ही सूरह-अर-रहमान को पढ़ने के भी बेशुमार फायदे हैं। आज इन्ही फायदों के बारे में हम बात करेंगे।  


सूरह रहमान पढ़ने के फायदे (Benefits of Surah Rahman)

  1. सूरह-अर-रहमान पढ़ने वाले शख्स की अल्लाह दुनियावी ज़िन्दगी में तो मदद करेगा ही साथ साथ आख़िरत में भी अल्लाह उस बन्दे का साथ देगा।
  2. सूरह-अर-रहमान पढ़ने वाला शख्स हर तरह की बीमारी से बचा रहता हैं ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्होंने सूरह रहमान पढ़ना शुरू किया और दिल की बीमारी डिप्रेशन डायबिटीज और कैंसर जैसे बिमारियों से उन्हें निजात मिला हैं। 
  3. सूरह-अर-रहमान में ऐसी चमत्कारी ताकत है जिससे बन्दे की हर तरह की गंभीर बीमारी ख़त्म हो जाती हैं हार्ट के मरीज़ों के लिए सूरह रहमान पढ़ना बहुत मुफीद हैं। 
  4. सूरह-अर-रहमान उन सूरह में से एक सूरह हैं जिसको पढ़ने से दिमाग, दिल और बदन शांत रहता हैं। टेंशन, मरने का डर या किसी भी तरह के डर को दूर करने के लिए रोज़ाना सूरह रहमान पढ़े या सुने। 
  5. मानसिक रूप से परेशान लोगो को सूरह-अर-रहमान रोज़ पढ़ना चाहिए। इसकी बरकत से कुछ ही दिनों में सारी दिमागी बीमारी दूर हो जाती हैं। 
  6. शादी में रुकावट या रिश्तों में रुकावट को दूर करने में सूरह रहमान एक बहुत अच्छी सूरह हैं। इसकी पाबन्दी से तिलावत करने से रिश्ते में कभी दरार नहीं आती और रुके हुए रिश्ते वापस जुड़ जाते हैं। 
  7. सूरह रहमान पढ़ने वाला शख्स हमेशा बुरी नज़र से बचा रहता है कोई भी जादू या कोई ख़राब हवा उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती। इस सूरह को पढ़ने से इंसान हमेशा दुश्मन की नज़र से बचा रहता हैं। 
  8. जैसा की हम सब जानते हैं की हर इंसान को कामयाबी अल्लाह ही देता हैं और नाकामयाबी भी अल्लाह ही देता है। सूरह-अर-रहमान की तिलावत करने वाले शख्स को अल्लाह की तरफ से बेशुमार कामयाबी हासिल होती हैं।
  9. अगर कोई अपने दिन की शुरुआत सूरह-अर-रहमान की तिलावत से करेगा तो उसका पूरा दिन अच्छा निकलेगा और पुरे दिन अल्लाह उसकी हिफाज़त करेगा। 
  10. सूरह रहमान पढ़ने वाले शख्स का दिल बहुत साफ़ हो जाता है वह शख्स हमेशा लोगों की भलाई के बारे में ही सोचता हैं। 
  11. अगर किसी को नींद न आने की बीमारी हैं तो उसे चाहिए की रोज़ाना ईशा की नमाज़ के बाद सूरह रहमान पढ़ कर सोये ऐसा रोज़ाना करने से इंशाअल्लाह नींद न आने की बीमारी दूर हो जाएगी। 
  12. अगर कोई शख्स हर वक़्त किसी बात को लेकर टेंशन में रहता हैं। हर वक़्त कोई डर उसे सताता हैं तो उसके लिए सूरह रहमान सबसे अच्छी सूरह हैं जिसे पढ़ कर वह इस परेशानी से निकल सकता हैं। 
  13. आजकल लोगों के जिस्म में अलग अलग तरह का दर्द रहता हैं जैसे घुटनो का दर्द, सीने में दर्द वगैरह। सूरह रहमान की तिलावत करने से हर तरह के दर्द से छुटकारा मिलता हैं। 
  14. अपने घर और कारोबार की हिफाज़त के लिए सूरह-अर-रहमान की रोज़ाना तिलावत करे। 

इन सब फायदों के अलावा भी सूरह-अर-रहमान पढ़ने के बहुत सारे फायदे हैं। इस सूरह में हर मर्ज़ का इलाज हैं। खासकर जो बदन से जुडी किसी भी तरह की बीमारी से परेशान हैं उनको तो सूरह रहमान आज से ही पाबन्दी से पढ़ना शुरू कर देना चाहिए। हर इंसान को चाहिए की ये सूरह को अपनी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में शामिल कर ले फिर देखे आपकी ज़िन्दगी कैसे बदल जाती हैं। 

अल्लाह हमें इस्लाम के असूलों पर चलने की तौफीक अता फरमाए, पांच वक़्त की नमाज़ का पाबंद बनाये और हमारे गुनाहों को माफ़ करे आमीन ।  

सूरह यासीन क्या हैं? जानिए इसे पढ़ने के फायदों के बारे में

सूरह यासीन क्या हैं? जानिए इसे पढ़ने के फायदों के बारे में

सूरह यासीन जिसे यासीन शरीफ भी कहा जाता है। ये क़ुरान की 36 वीं सूरह हैं सूरह यासीन में कुल 83 आयतें हैं। सूरह यासीन क़ुरान शरीफ की सबसे अफ़ज़ल सूरह में से एक सूरह हैं। सूरह यासीन को क़ुरान का दिल भी कहा जाता हैं क्यूंकि इस सूरह में इस्लाम से जुडी सारी ज़रूरी बातें जो इंसान को नेकी की रह पर ले जाती हैं और इंसान को गुनाहो से बचाती हैं वह शामिल हैं। 

सूरह यासीन कौनसे पारे में हैं?

सूरह यासीन क़ुरान शरीफ के 22 वे पारे से शुरू होती हैं और 23 वे पारे में ख़त्म होती हैं। बाज़ारों दुकानों पर यासीन शरीफ की किताबें मिल जाती हैं जिसे खरीद कर रोज़ाना यासीन शरीफ की तिलावत की जाये और अपनी ज़िन्दगी को संवारा जाये। 

सूरह यासीन कब नाज़िल हुई थी?

जब मक्का में काफिर एक अल्लाह की इबादत नहीं कर रहे थे और पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का मज़ाक उड़ाते थे और उन पर ज़ुल्म करते थे तब मक्का में सूरह यासीन नाज़िल हुई थी।

सूरह यासीन किसके बारे में हैं?

सूरह यासीन में एक अल्लाह का ज़िक्र, इंसान को सही रास्तों पर चलने की नसीहतें, जो लोग अल्लाह को नहीं मानते उनके लिए चेतावनी, पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की बताई बातें मानना और आखिर में क़यामत के दिन की कुछ बातें शामिल हैं। 

सूरह यासीन को याद कैसे किया जाये?

सूरह यासीन थोड़ी बड़ी सूरह हैं लेकिन इसको याद करना बहुत आसान हैं। अगर आप Surah Yaseen पूरा याद करना चाहते हो तो रोज़ाना इसे सुने और उसे याद करने की कोशिश करें इंशाल्लाह 5 से 10 दिनों में आपको पूरी यासीन शरीफ याद हो जाएगी। अगर आपको फिर भी वक़्त लग रहा है तो रोज़ाना Yaseen Sharif  पढ़ते रहे अल्लाह के फ़ज़लों करम से आपको सूरह यासीन जल्द याद हो जाएगी। आप कोशिश करें की थोड़ा थोड़ा याद करें। एक बार एक पेज याद हो जाता हैं तो दूसरा पेज याद करने की कोशिश करें। जिससे आपको पूरी यासीन शरीफ याद करने में आसानी होगी। 

सूरह यासीन सुने और याद करने की कोशिश करे

 

यासीन शरीफ पढ़ने के फायदे

  1. एक हदीस के मुताबिक जो शख्स Surah Yaseen सिर्फ एक मर्तबा पड़ेगा उसे पुरे दस क़ुरान शरीफ पढ़ने जितना सवाब हासिल होगा। 
  2. किसी शख्स की कब्र पर अगर Yaseen Sharif पढ़ा जाये तो फ़रिश्ते उसकी सज़ाये माफ़ करने के लिए अल्लाह से दुआएं करते हैं। 
  3. अगर कोई किसी बीमारी से परेशान हो तो उसे चाहिए की रोज़ाना यासीन शरीफ पढ़े इंशाअल्लाह बीमारी से शिफा मिलेगी। अगर बीमार आदमी खुद नहीं पड़ सकता है तो घर वालों में से कोई एक यासीन शरीफ पढ़ कर पानी में दम करके वह पानी मरीज़ को पिला दे उसकी बीमारी जड़ से खत्म हो जाएगी। 
  4. अगर कोई किसी मुसीबत में फँस गया हैं तो उसे चाहिए की सूरह यासीन पढ़े इंशाअल्लाह मुसीबत दूर हो जाएगी। 
  5. रोज़ घर से निकलने से पहले Surah Yaseen पढ़ कर निकले पूरा दिन अच्छे से निकलेगा और आप बालाओं और परेशानियों से महफूज़ रहेंगे। 
  6. अपने गुनाहों से माफ़ी मांगने के लिए Yaseen Sharif पढ़ कर अल्लाह से दुआ करें अल्लाह आपके गुनाह माफ़ कर देगा। 
  7. जो शख्स रात को यासीन शरीफ पढ़ कर सोयेगा उसे बुरे ख्वाब या किसी भी तरह का डर महसूस नहीं होगा साथ ही उसके दिन भर के गुनाह भी माफ़ हो जायेंगे। 
  8. एक हदीस के मुताबिक अगर कोई शख्स पाबन्दी से Yaseen Sharif पढ़ेगा उसे 20 हज करने जितना सवाब हासिल होगा। 
  9. अगर कोई शख्स यासीन शरीफ पढ़ते पढ़ते मर जाता हैं तो उसे खुदा की तरफ से शहीद का दर्जा अता किया जाता हैं। 
  10. हर दिन यासीन शरीफ पढ़ने वाले शख्स की अल्लाह हर ज़रूरते पूरी करता है। 
  11. शादी में अगर रुकावट या कोई दिक्कत आ रही हैं तो रोज़ाना फज्र की नमाज़ के बाद सूरह यासीन पढ़ा जाये इंशाल्लाह जल्द ही रिश्ता हो जायेगा। 
  12. जब कोई औरत माँ बनने वाली होती हैं तो उसे चाहिए की रोज़ाना सूरह यासीन पढ़ कर अपने ऊपर दम करे जिसकी फ़ज़ीलत से माँ और बच्चा दोनों की हिफाज़त होगी और बच्चा होते वक़्त माँ को ज़्यादा तकलीफ नहीं होगी। 
  13. दुश्मन से हिफाज़त के लिए Surah Yaseen पढ़ा जाये जिससे दुश्मन आपके आस पास भी नहीं भटकेगा। 
  14. कामयाबी हासिल करना चाहते हो तो पाबन्दी से सूरह यासीन पढ़ा करो इंशाअल्लाह हर काम में कामयाबी हासिल होगी।

हर मुसलमान को चाहिए की पाबन्दी से Surah Yaseen पढ़ा करें क्यूंकि सूरह यासीन आपको गुनाहो से बचाएगी कयामत में आपको अज़ाब से बचाएगी। आपके अज़ाबो को कम करेगी और एक अच्छी ज़िन्दगी जीने की राह बताएगी। 

हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की कहानी और समंदर वाला वाक़्या

हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की कहानी और समंदर वाला वाक़्या

हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम अल्लाह के सबसे प्यारे नबियों में से एक नबी थे। उन्हें कलीमुल्लाह के नाम से उस वक़्त जाना जाता था। जिसका मतलब होता हैं अल्लाह से सीधे बात करना वाला। यानि की हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम में ऐसी करिश्माई ताकत थी की वो सीधे अल्लाह से बात कर सकते थे। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की कहानी का ज़िक्र कई हदीसों में आया है। आज हम कोशिश करेंगे की आप को ज़्यादा से ज़्यादा हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के बारे में बता सके।

हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की पैदाइश 

हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की पैदाइश एक इजराइली परिवार में हुई थी। यानि वह एक इजराइली परिवार से ताल्लुक थे। क़ुरान में हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम का नाम करीब 136 मर्तबा आया है। अल्लाह ने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को इज़राइली लोगो को हिदायत देने के लिए नबी बना कर भेजा था। उस वक़्त वहां के लोग फिरौन की पूजा करते थे। फिरौन मिस्र का एक ताकतवर बादशाह था। लोग अल्लाह को न मानकर फिरौन को ही खुदा मानते थे। तब अल्लाह ने लोगो की हिदायत देने के लिए हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम वहां के लोगों के लिए नबी घोषित किया।

हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम और फिरौन का सामना 

हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम लोगों को हिदायत देते की अल्लाह ही सबसे बड़ा हैं उसी की इबादत करना हैं उसी से दुआ करनी हैं। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम हज़रत इब्राहिम अलैहिस्सलाम के वंश से थे जैसा के हमने पहले ही बताया की हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम इज़राइली परिवार में पैदा हुए थे इज़राइली लोग जो की यहूदी थे जिनके 12 कबीले थे या कहे यहूदियों का समूह जिन्हे बनी इसराइल कहा जाता था। बनी इसराइल लोग हज़रत याकूब जिन्हे हज़रत इसराइल भी कहा जाता हैं जिनका अंग्रेजी नाम जैकब था उनसे ताल्लुक रखते थे। उस वक़्त बनी इसराइल लोग ज़मीन पर सबसे अच्छे लोग थे लेकिन मिस्र के लोग इनसे नफरत करने लगे थे। उस वक़्त मिस्र के ताकतवर राजा फिरौन ने सारे बनी इसराइल लोगों को अपना गुलाम बना दिया था। उनसे बहुत काम करवाया जाता था। उन पर ज़ुल्म किया जाता। उनकी औरतों से हर वो काम करवाया जाता था जो फिरौन चाहता था। फिरौन एक बहुत बड़ा घमंडी राजा था। वह अपने आप को खुदा मानता था और इज़राइली लोगो पर बहुत ज़ुल्म करता था। जब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम पैदा हुए उस वक़्त भी फिरौन का मिस्र का राजा था। 

हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के पैदा होने के बाद की कहानी 

हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के दुनिया में आने से पहले फिरौन को किसी ने खबर दी थी थी बनी इसराइल लोगों में से एक लड़का जल्द ही पैदा होगा उसके पैदा होते ही फिरौन का सारा साम्राज्य ख़त्म हो जायेगा। ये बात सुनकर फिरौन घबरा गया और उसने अपनी सेना को आदेश दिया की हर बनी इसराइल के घरों की तलाशी करो और जहाँ बच्चा दिख रहा हैं उसे मार दो। फिरौन सिर्फ बेटों को मारना चाहता था बेटियां होने पर वह उन्हें छोड़ देता था। फिरौन का आदेश मिलते ही सिपाही बनी इसराइल के घरों की तलाशी में निकल गए और एक एक करके उनके बच्चो का क़त्ल करना शुरू कर दिया। जब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की माँ को इस बात की खबर लगी तब वह भी डर गयी। तब अल्लाह से एक पैगाम उनको आया की तू इसे एक टोकरी में रख कर नील नदी में छोड़ दे इस बच्चे को कुछ नहीं होगा। अल्लाह के हुक्म के मुताबिक उन्होंने आप यानि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को एक टोकरी में घर के पीछे नील नदी में रख दिया। नदी में रखते ही टोकरी भी बहने लगी। 

टोकरी नदी में बह कर फिरौन के महल तक जा पहुंची। टोकरी को देखते ही फिरौन के सिपाहियों ने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को टोकरी से निकाला और फिरौन के पास ले गए। महल पहुँचते ही फिरौन की बीवी ने आप यानि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को पहचान लिया और कहा की ये बनी इसराइल के घर का ही बेटा है जिससे हमें खतरा है। फिरौन आप को उसी वक़्त मारना चाहता था लेकिन फिरौन की बीवी ने कहा की इसे मारों मत इसके ज़िंदा रहने से हमारी आँखों को ठंडक मिलती रहेगी की हमारा दुश्मन हमारे सामने ही हैं और हमारी कैद में है। हो सकता हैं ये हमारे लिए खुशनसीब बच्चा हो। फिरौन ने उसकी बीवी की बात मान ली और आप को अपने महल में रख लिया। 

जब आप को भूक लगी थी तब फिरौन ने उसके यहाँ काम करने वाली औरतों को बुलाया और कहा की इस बच्चे को दूध पिलाओ ये भूका हैं और रो रहा हैं। लेकिन अल्लाह की कुदरत देखो कोई भी औरत आप को दूध नहीं पीला पा रही थी सारी औरतें दूध पिलाने में नाकाम रही। फिरौन समझ गया था की ये कोई मामूली बच्चा नहीं। फिर दूध पिलाने के लिए आपकी माँ को तलाशा गया और तलाश करके आपको दूध पिलाया गया। एक हदीस के मुताबिक आप यानि हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम फिरौन के महल में ही बड़े हुए। यहाँ तक ही 18 साल के जवान भी उसी महल में हुए आपने ने हज़रत शोएब की बेटी सफुरा से शादी भी की। 

हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने बड़े होकर लोगों को समझाया की फिरौन की पूजा करना बंद करो और एक अल्लाह की इबादत में यकीन करो। एक हद तक लोग उनकी बात मान भी गए थे। उसी दौरान मिस्र में भयंकर अकाल पड़ा था। लोग कई बीमारियों से मुब्तला हो गए थे। सारे लोग हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम के पास पहुंचे और कहा की हम आपके कहने पर चलेंगे और वादा किया की वह एक अल्लाह की ही इबादत करेंगे। जब लोग बीमारी से ठीक होना शुरू हुए और हालत पहले जैसे होने लगे तब लोग फिरौन के डर से वापिस उसकी पूजा में लग गए। उसी दौरान फिरौन के ज़ुल्म से लोगों को निजात दिलवाने के लिए हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने फिरौन को चेतावनी दी की और कहा की वह लोगों पर ज़ुल्म करना छोड़ दे और लोगो को गुलामी से आज़ाद कर दे। लेकिन घमंडी फिरौन को इस बात का कोई असर नहीं हुआ।

हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम का समंदर वाला किस्सा 

हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने बनी इसराइल लोगों को इकठ्ठा किया और फिलिस्तीन के लिए रवाना हो गए। क्यूंकि वो सभी इज़राइली लोगो को फिरौन के ज़ुल्म से निजात दिलवाना चाहते थे। जब फिरौन को आपके फिलिस्तीन जाने का पता चला तब वह एक विशाल सेना के साथ आपका पीछा करना लगा। जब मूसा अलैहिस्सलाम बनी इसराइल के लोगों के साथ लाल सागर तक पहुंचे तब उनके पीछे फिरौन की बड़ी सेना थी जो सबको मारने को तैयार थी और आपके आगे गहरा समुन्दर था। बनी इसराइल के लोगों ने मान लिया था की अब फिरौन उन्हें मार देगा। इतने में हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने अपनी छड़ी से समुन्द्र के पानी पर मारा तभी आपके सामने समंदर में एक सूखा रास्ता बन गया और समंदर का पानी अलग अलग हो गया और बीच में सूखा रास्ता बन गया। हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम और बनी इसराइल के लोगों ने रास्ता पार कर लिया। फिरौन भी उसी रास्ते पर अपनी सेना को लेकर आगे बढ़ने लगा तभी अचानक से रास्ता बंद हो गया और फिरौन और उसकी सेना समंदर में डूब कर मर गयी। 

उम्मीद करते हैं आपको हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम और उनके किस्से के बारे में जानकारी मिल गयी होगी। हदीसों में आप हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम की काफी सारी कहानियों का ज़िक्र आया हैं। हम कोशिश करेंगे की आप को आगे भी इस तरह की मालूमात देते रहेंगे। 

हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम की बीमारी का किस्सा

हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम की बीमारी का किस्सा


हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम भी अल्लाह के नबियों में से एक नबी थे। हज़रत अयूब अलैहिस्सलाम पैग़म्बर हज़रत इब्राहिम अलैहिस्सलाम के वंश से थे। हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम हज़रत इस्हाक़ अ़लैहिस्सलाम के बेटों में से एक बेटे थे। अल्लाह ने आप को माल ,दौलत और औलादों से से नवाज़ा था। हदीसों के मुताबिक आप के 7 बेटे और 7 बेटियां हुआ करती थी। हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम उस वक़्त अपने कबीले के बहुत मालदार सरदार थे और बहुत खूबसूरत भी थे। हज़रत अय्यूब बहुत बड़े इबादत-गुज़ार भी थे। वह अपना ज़्यादातर वक़्त अल्लाह की इबादत में गुज़ारते थे। आप अपने कबीले में उस वक़्त इस तरह मशहूर थे की जब आप घर से किसी काम के लिए निकलते तब लोग आपके इस्तक़बाल के लिए खड़े हो जाते थे। लोग आपकी बड़ी इज़्ज़त करते थे, लेकिन कहते है न जब कोई अल्लाह को बड़ा अज़ीज़ होता हैं तब अल्लाह भी ऐसे शख्स का इम्तेहान ज़रूर लेता है। ऐसा ही कुछ हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम के साथ भी हुआ।

हजरत अय्यूब अलैहिस्सलाम के बीमार होने के बाद क्या हुआ?


लिहाज़ा हुआ कुछ ऐसा की अचानक हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम का अचानक से सब कुछ बर्बाद हो गया। उनका घर अचानक से गिर गया। जिसमे दब उनकी सारी औलादों की मौत हो गयी। माल और दौलत सब ख़त्म हो गया और वह एक ऐसी बीमारी का शिकार हो गए जिससे उनके बदन का गोश्त गलने लगा। चेहरे पर फोड़े फुंसी होने लगे जिन पर कीड़े पर पढ़ने लगे। उनकी हालत बहुत ख़राब हो चुकी थी। उनकी ऐसी हालत देख कर कबीले वालों ने भी उनसे नाता तोड़ लिया। जो कबीले वाले उनके इस्तक़बाल के लिए खड़े हो जाया करते थे वह उनकी हालत ख़राब होने के बाद उनको बुरा कहने लगे। कबीले के लोग उन्हें ये कहते की ज़रूर आपने कुछ गलत काम किया है जिसकी वजह से अल्लाह आपसे नाराज़ हैं और अल्लाह ने आपकी ये हालत कर दी हैं। लोग उन्हें ये भी कहने लगे की ये कोई नबी नहीं हैं ये एक बहुत बड़ा गुनहगार आदमी हैं।

यहाँ तक के कुछ लोगों ने उन्हें यह तक कह दिया था की यहाँ से निकलो और जहाँ कचरा डाला जाता हैं वहां जाकर रहो। क्यूंकि उनकी हालत इस तरह हो चुकी थी की लोग उनके साथ रहने को तैयार नहीं थे। आपके जिस्म में इतने फोड़े हो गए थे की पहचानना मुश्किल हो जाता। ऊपर से उन फोड़ों में कीड़े भी पड़ गए थे जो आपको बहुत तकलीफ देते थे। कबीले के लोगों को यह लग रहा था की इनकी इस बीमारी से हमारे बच्चे भी बीमार पड़ सकते हैं। लिहाज़ा लोगों ने उन्हें कबीले से निकाल दिया उस वक़्त आप यानि हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम की हालत इतनी ख़राब हो चुकी थी की वह खड़े भी नहीं हो पा रहे थे। लिहाज़ा वहां के लोगों ने उन्हें कपड़ों में लपेटकर एक लाठी के साथ कचरे के ढेर के यहाँ छोड़ दिया। 

इतना सब होने के बावजूद हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम ने अल्लाह की इबादत करना नहीं छोड़ा वह और उनकी बीवी उस जगह पर ऐसी हालत में भी अल्लाह का शुक्र अदा करते। जब खाने की ज़रूरत पड़ती तब उनकी बीवी घरो में जाकर काम करती और जो कुछ पैसा मिलता उससे खाने का इंतेज़ाम करती और उसी से उनका इलाज करवाती थी। 

एक वक़्त ऐसा भी आया जब हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम की हालत बहुत ही ज़्यादा ख़राब हो गयी। जिस्म में कीड़े इतने पड़ चुके थे की बदन से गोश्त ख़त्म होने लगा था। ये देख कर उनकी बीवी ने आप से फ़रमाया की अल्लाह आपको बीमारी से शिफा क्यों नहीं दे रहा? आपने आपकी बीवी से फ़रमाया की हम न जाने कितने ही सालों तक खुशहाल रहे अगर कुछ साल मुसीबत आ गयी तो क्या हो गया? अल्लाह हमारा इम्तेहान ले रहा है और हमें अल्लाह के इस इम्तेहान को कबूल करना हैं और अल्लाह से इस बीमारी की शिफा के लिए तब तक दुआ मांगनी हैं जब तक ये बीमारी पूरी तरह से सही नहीं हो जाती। आपके बदन पर जब कीड़े बहार निकलकर ज़मीन पर गिरते तो आप उन्हें वापस अपने बदन पर रख देते थे और कहते थे की शायद अल्लाह ने इस कीड़े का रिज़्क़ मेरे बदन से ही लिखा हैं। अल्लाह की यही मर्ज़ी हैं इसलिए जितना खाना खाना हैं मेरे जिस्म में जाकर खाओ। 

हजरत अय्यूब अलैहिस्सलाम कैसे ठीक हुए?


आप सोच सकते है की आप में कितनी हिम्मत थी की इतना होने के बावजूद भी आपने अल्लाह पर यकीन करना नहीं छोड़ा। एक वक़्त ऐसा भी आया जब कबीले के लोगों ने हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम की बीवी को भी काम के लिए घर पर बुलाना बंद कर दिया क्यूंकि उनको शक हो गया था की ये भी उनकी बीमारी हमारे घर लेकर आएगी। ये सब देखकर उनकी बीवी बहुत रोने लगी। आपकी बीवी को इस तरह रोता देख फिर हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम ने अल्लाह से दुआ के लिए हाथ उठाया और कहा की ए अल्लाह ! तुम रहम करने वाला है। अपने बन्दे पर रहम फरमा। बस इतना ही कहने के बाद आसमान से एक आवाज़ आवाज़ आयी की ए अय्यूब ! अपने पांव ज़मीन पर मारो वहां से एक चश्मा यानि पानी का फव्वारा निकलेगा। उस फव्वारे का पानी अपने जिस्म पर डाल देना। 

ऐसा सुनते हैं आप यानि हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम ने अपना पैर ज़मीन पर मारा और उसी वक़्त वहां से एक पानी का फव्वारा निकाल पड़ा। आपने उसका पानी जैसे ही अपने जिस्म पर डाला तो उसी वक़्त आप बिलकुल सही हो गए। आपकी बीमारी बिलकुल ख़त्म हो गयी और आप फिर से जवान हो गए सुब्हानल्लाह। उस वक़्त अल्लाह ने आपके लिए आसमान से सोना भी बरसाया और हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम की बीवी को वापिस जवानी बख्श दी। उसके बाद आप की ज़िन्दगी में फिर से माल और दौलत और खुशहाली आ गयी और अल्लाह ने आप दोनों को 23 बेटों और 27 बेटियों से नवाज़ा। बेशक अल्लाह अपने बन्दों पर रहम फरमाने वाला हैं। 

एक हदीस के मुताबिक अल्लाह के प्यारे रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की जब भी आप मुश्किल और परेशानी में हो तब आप हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम के इम्तेहान को याद रखना। जिन्होंने इतना सब कुछ होने के बावजूद अल्लाह का शुक्र अदा करना नहीं छोड़ा।

हजरत अय्यूब अलैहिस्सलाम की बीमारी से शिफा की दुआ 


हदीसों के मुताबिक हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम करीब 18 सालों तक बीमार रहे। बीमारी से शिफा के लिए वह हर वक़्त अल्लाह से दुआ करते एक दुआ जो हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम हमेशा बीमारी से शिफा के लिए पढ़ा करते थे वो इस तरह हैं   رَبَّهُ أَنِّي مَسَّنِيَ الضُّرُّ وَأَنتَ أَرْحَمُ الرَّاحِمِينَ (रब्बी अन्नी मस्सानि यददूर्रू वा अन्ता अरहामुररहीमीन) (rabbi anni massani-yadh-dhurru wa anta arhamur-raahimeen) ये दुआ हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम अपनी अच्छी सेहत के लिए किया करते थे। जिसकी फ़ज़ीलत से आप बिलकुल सेहतमंद हो गए थे।    

हर मुसलमान को हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम के इम्तेहान से सीख लेना चाहिए की चाहे कितना भी बुरा वक़्त हो हमें हर वक़्त अल्लाह का शुक्र अदा करना चाहिए। क्यूंकि अल्लाह की मर्ज़ी के बगैर कुछ मुमकिन नहीं वो जिसे चाहे राजा बना दे और जिसे चाहे फ़क़ीर। इसलिए हमें चाहिए की कोई भी बीमारी जो लाइलाज हैं या आप या आपका कोई रिश्तेदार या दोस्त कोई भी बीमारी से परेशान है जो इलाज करवाने पर भी सही नहीं हो रही तो कसरत से हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम की ये दुआ पढ़े "رَبَّهُ أَنِّي مَسَّنِيَ الضُّرُّ وَأَنتَ أَرْحَمُ الرَّاحِمِينَ (रब्बी अन्नी मस्सानियददूर्रू वा अन्ता अरहामुररहीमीन) (rabbi anni massani-yadh-dhurru wa anta arhamur-raahimeen)" इंशाल्लाह हर बीमारी से शिफा मिलेगी आमीन।

ईशा की नमाज़ को पढ़ने का तरीका (Isha ki Namaz Ko Padhne ka Tarika)

ईशा की नमाज़ को पढ़ने का तरीका (Isha ki Namaz Ko Padhne ka Tarika)

आज के ब्लॉग में हम ईशा की नमाज़ पर बात करेंगे पिछले कुछ ब्लोग्स में हमने बताया था की फज्र, ज़ोहर, असर और मगरिब की नमाज़ क्या होती हैं? और उन सारी नमाज़ो को पढ़ने के तरीका भी बताया था। आप ने अगर वह ब्लॉग नहीं पढ़े है तो आप All पोस्ट में जाकर वह ब्लॉग पढ़ सकते हैं। आज के ब्लॉग में हम पुरे दिन की आखरी नमाज़ जिसे ईशा की नमाज़ कहा जाता हैं उस पर चर्चा करेंगे। यह नमाज़ दिन की पांचो नमाज़ों में से सबसे लम्बी नमाज़ होती हैं। चलिए आप को बताते है की ईशा की नमाज़ का वक़्त कौनसा होता हैं? इस नमाज़ में कितनी रकातें होती हैं और इस नमाज़ को पढ़ने का तरीका क्या हैं?

ईशा की नमाज़ का वक़्त 

ईशा की नमाज़ का वक़्त रात को करीब 8 बजे से 9 बजे तक रहता हैं गर्मी में यही वक़्त रहता हैं और सर्दी में ये वक़्त थोड़ा जल्दी रहता हैं। इस वक़्त के बीच में मस्जिद में अज़ान हो जाती हैं और मस्जिद में नमाज़ अदा करने के लिए 15 मिनट का वक़्त मिलता हैं। मतलब अज़ान के 15 मिनट के अंदर आप मस्जिद पहुँच जाये और नमाज़ अदा कर लें नहीं तो आपकी नमाज़ छूट जाएगी। फिर आपको घर पर नमाज़ अदा करनी होगी। अगर आप घर पर ईशा की नमाज़ अदा कर रहे हैं तो इस नमाज़ का वक़्त वही करीब 8 बजे से तहज्जुद की नमाज़ से पहले तक रहता है। मतलब रात को करीब 11 बजे से पहले तक यानि आप रात 8 बजे से 11 बजे तक घर पर ईशा की नमाज़ अदा कर सकते हैं।

ईशा की नमाज़ में कितनी रकातें होती हैं?

ईशा की नमाज़ में कुल 17 रकातें होती हैं जो इस तरह है, 

  • 4 रकात सुन्नत
  • 4 रकात फ़र्ज़ 
  • 2 रकात सुन्नत
  • 2 रकात नफ़्ल 
  • 3 रकात वित्र वाजिब
  • 2 रकात नफ़्ल

ईशा की नमाज़ को पढ़ने का तरीका 

सबसे पहले 4 रकात नमाज़ सुन्नत अदा करे नमाज़ से पहले नियत करे जो इस तरह हैं,

नियत की मैंने 4 रकात नमाज़ सुन्नत, वास्ते अल्लाह तआला के, वक़्त ईशा का, मुँह मेरा काबा शरीफ की तरफ और फिर आप अल्लाहु अकबर कहते हुए अपने दोनों हाथ उठा कर अपने कानों तक ले जाये फिर दोनों हाथों को नाफ़ के नीचे बांध ले। 

नियत के बाद ये पढ़े 

नियत के बाद सूरह सना पढ़ना हैं जो हैं "सुबहानका अल्लाहुम्मा व बिहम्दीका व तबा रकस्मुका व तआला जद्दुका वाला इलाहा गैरुका" इसके बाद आप अउजू बिल्लाहि मिनश शैतान निर्रजिम बिस्मिल्लाहीर्रहमानिररहीम पढ़े। उसके बाद सूरह फातेहा पढ़े। सूरह फातेहा पढ़ने के बाद कोई एक सूरह पढ़े जैसे कुल्हुवल्लाह, या कुल अऊजु बिरब्बिल फलक या कोई और सूरह जो आपको याद हो वो पढ़े। सूरह पढ़ने के बाद आप अल्लाहो अकबर कहते हुए रुकू में जाये रुकू में जाने के बाद 3 मर्तबा "सुबहान रब्बी अल अज़ीम" पढ़े। 

इस वक़्त आपको अपनी नज़र अपने पैर के अंगूठे पर रखनी हैं। इसके बाद आप "समीअल्लाहु लिमन हमीदह" कहते हुए रुकू से खड़े हो जाये और रब्बना व लकल हम्द कहते हुए उसके बाद अल्लाहो अकबर बोलते हुए सजदे में जाये। सजदे में इस तरह जाये की आपका सीधा घुटना पहले ज़मीन पर लगे। फिर सजदे में 3 मर्तबा सुबहाना रब्बी अल आला पढ़े। 3 बार सुबहाना रब्बी अल आला पढ़ने के बाद फिर अल्लाहु अकबर कहते हुए उठे और वापिस सजदे में जाये। वापिस 3 मर्तबा सुबहाना रब्बी अल आला पढ़े। 

आप फिर अल्लाहु अकबर कहते हुए खड़े हो जाये और हाथ बांध ले और फिर से सूरह फातेहा (अल्हम्दु शरीफ) पढ़े और उसकी बाद कोई दूसरी सूरह जो आपको याद हो वो पढ़े। उसके बाद फिर से अल्लाहु अकबर कहते हुए रुकू में जाये। रुकू में जाने के बाद वापिस 3 मर्तबा "सुबहाना रब्बी अल अज़ीम" पढ़े। इसके बाद वापिस आप "समीअल्लाहु लिमन हमीदह" कहते हुए रुकू से खड़े हो जाये और दोबारा रब्बना व लकल हम्द कहते हुए उसके बाद अल्लाहो अकबर कहते हुए सजदे में जाये। सजदे में वापिस 3 मर्तबा सुबहाना रब्बी अल आला पढ़े फिर वापिस अल्लाहु अकबर कहते हुए दोबारा सजदे में सुबहाना रब्बी अल आला पढ़े। फिर आप अल्लाहु अकबर कहते हुए सीधे पैर के पंजो के बल पर बैठ जाये। 

ध्यान रहे आप जब बैठे तो सीधे पैर के अंघूठे के बल पर पांचो अँगुलियों समेत बैठे। उल्टा पैर आप ज़मीन पर टिका सकते हैं। अगर कोई परेशानी आ रही हैं इस तरह बैठने में या अंगूठा हिल जाता है तो कोई मसला नहीं लेकिन जानबूझकर अंगूठा हिलाना या दोनों पैर ज़मीन पर टिका कर बैठना गलत हैं। 

फिर आप अत्तहिय्यात पढ़े अत्तहिय्यात पढ़ने के दौरान आपको अशहदु अल्लाह अल्फ़ाज़ आते ही शहादत की ऊँगली को उठाना हैं। फिर आप अल्लाहो अकबर बोलते हुए तीसरी रकात के लिए फिर से खड़े हो जाये। जैसे आपने ये 2 रकात पढ़ी उसी तरह आपको 4 सुन्नत की आखरी 2 और रकात पढ़नी हैं। बस आखिर की 2 रकात में अत्तहिय्यात के बाद दरूदे इब्राहिम एक बाद और दुआ ए मसुरा एक एक बार पढ़ना हैं। उसके बाद सलाम फेरना हैं। इस तरह आपकी 4 रकात नमाज़ सुन्नत हो जाएगी। 

4 रकात फ़र्ज़ नमाज़ का तरीका 

जैसे आपने सुन्नत नमाज़ पढ़ी। बस वैसे ही आपको फ़र्ज़ नमाज़ पढ़ना हैं क्यूंकि दोनों में 4 रकात ही हैं। बस 4 फ़र्ज़ नमाज़ में थोड़े से बदलाव हैं जो इस तरह हैं पहला की इसमें आपको नियत में 4 सुन्नत की जगह 4 फ़र्ज़ बोलना हैं। दूसरा अगर आप मस्जिद में यह नमाज़ पढ़ रहे हैं तो नियत में पीछे इस इमाम के बोल सकते हैं क्यूंकि मस्जिद में फ़र्ज़ नमाज़ इमाम के पीछे होती हैं। इमाम ही फ़र्ज़ नमाज़ को पढ़वाते हैं। तीसरा जब आप पहली 2 रकात फ़र्ज़ पढ़कर तीसरी रकात के लिए खड़े होंगे, उसमे आपको सूरह फातेहा पढ़ने के बाद सीधे रकू में चले जाना हैं। सूरह फातेहा के बाद कोई सूरह जैसे कुल्हुवल्लाह, या कुल अऊजु बिरब्बिल फलक नहीं पढ़ना हैं। आपको सीधे रकू में जाना हैं और जो बाकि का तरीका हैं वहीं इस नमाज़ में भी करना हैं।  बस ऐसे आपकी 4 फ़र्ज़ नमाज़ भी हो जाएगी। 

2 रकात नमाज़ सुन्नत का तरीका 

जैसे आपने सबसे पहले 4 रकात नमाज़ सुन्नत पढ़ी उसी तरह अब 2 रकात नमाज़ सुन्नत पढ़नी हैं बस इसमें ये फर्क हैं की पहले आपने 4 सुन्नत पढ़ी अब सिर्फ 2 सुन्नत पढ़नी हैं। इसके लिए आपको नियत में 2 रकात नमाज़ सुन्नत बोलना हैं और 4 की जगह 2 रकात ही पढ़नी हैं यानि दूसरी रकात में अत्तहिय्यात, दरूदे इब्राहिम और दुआ ए मसुरा पढ़ कर सलाम फेरना हैं।

2  रकात नमाज़ नफ़्ल का तरीका 

जैसे आपने 2 रकात नमाज़ सुन्नत पढ़ी बस ऐसे ही 2 रकात नमाज़ नफ़्ल पढ़नी हैं। बस नियत में आपको 2 रकात नमाज़ नफ़्ल बोलना हैं। इस तरह आपकी नफ़्ल नमाज़ भी हो जाएगी।

3 रकात वित्र वाजिब नमाज़ पढ़ने का तरीका

वित्र की नमाज़ में 3 रकात होती हैं इस नमाज़ को पढ़ने का तरीका भी आसान हैं जैसे आपने 2 रकात सुन्नत नमाज़ पढ़ी वैसे ही आपको इस नमाज़ की 2 रकात सुन्नत की तरह ही पढ़नी हैं बस आखरी रकात का तरीका थोड़ा अलग हैं जिसे हम थोड़ा तफ्सील से समझते है।

वित्र की नमाज़ की नियत

नियत की मैंने 3 रकात नमाज़ वित्र वाजिब की वास्ते अल्लाह तआला के वक़्त ईशा का, मुँह मेरा काबा शरीफ की तरफ और फिर आप अल्लाहु अकबर कहते हुए अपने दोनों हाथ उठा कर अपने कानों तक ले जाये फिर दोनों हाथों को नाफ़ के नीचे बांध ले। 

उसके बाद सना पढ़े जो इस तरह हैं "सुबहानका अल्लाहुम्मा व बिहम्दीका व तबा रकस्मुका व तआला जद्दुका वाला इलाहा गैरुका" इसके बाद आप अउजू बिल्लाहि मिनश शैतान निर्रजिम बिस्मिल्लाहीर्रहमानिररहीम पढ़े। 

उसके बाद सूरह फातेहा पढ़े। सूरह फातेहा पढ़ने के बाद कोई एक सूरह पढ़े जैसे कुल्हुवल्लाह, या कुल अऊजु बिरब्बिल फलक या कोई और सूरह जो आपको याद हो। सूरह पढ़ने के बाद आप अल्लाहो अकबर कहते हुए रुकू में जाये रुकू में जाने के बाद 3 मर्तबा "सुबहान रब्बी अल अज़ीम" पढ़े। इस वक़्त आपको अपनी नज़र अपने पैर के अंगूठे पर रखनी हैं। इसके बाद आप "समीअल्लाहु लिमन हमीदह" कहते हुए रुकू से खड़े हो जाये और रब्बना व लकल हम्द कहते हुए उसके बाद अल्लाहो अकबर बोलते हुए सजदे में जाये। सजदे में इस तरह जाये की आपका सीधा घुटना पहले ज़मीन पर लगे। फिर सजदे में 3 मर्तबा सुबहाना रब्बी अल आला पढ़े। 3 बार सुबहाना रब्बी अल आला पढ़ने के बाद फिर अल्लाहु अकबर कहते हुए उठे। 

दूसरी रकात भी इस तरह पढ़े इसमें आपको सजदे में जाने के बाद 3-3 मर्तबा सुबहाना रब्बी अल आला पढ़ने के बाद बैठ जाना हैं और अत्तहिय्यात पढ़ना हैं अत्तहिय्यात पढ़ने के दौरान आपको अशहदु अल्लाह अल्फ़ाज़ आते ही शहादत की ऊँगली को उठाना हैं। फिर आप अल्लाहो अकबर बोलते हुए तीसरी रकात के लिए फिर से खड़े हो जाये।

तीसरी रकात में बिस्मिल्लाहीर्रहमानिररहीम पढ़ कर आपको सूरह फातेहा के बाद कोई भी सूरह पढ़ना है। उसके बाद रुकू में न जाकर आपको अल्लाहो अकबर कहते हुए हाथ उठा कर वापिस हाथ बांधना हैं।  फिर दुआ ए क़ुनूत पढ़ना है । उसके बाद वही रुकू में जाकर बाकि की नमाज़ की प्रक्रिया पूरी करे जैसा हमने पहले की 2 रकात में बताया हैं इस तरह आपको वित्र की नमाज़ भी हो जाएगी। 

आखिर में आपको 2 रकात नमाज़ नफ़्ल और पढ़नी हैं जैसा हमने ऊपर नफ़्ल नमाज़ को पढ़ने का तरीका बताया हैं बस वैसे ही ये 2 रकात नफ़्ल नमाज़ पढ़ कर ईशा की नमाज़ पूरी करे। इस तरह आपकी ईशा की नमाज़ हो जाएगी।

उम्मीद करते हैं आपको आज ईशा की नमाज़ को पढ़ने का तरीका मालूम चल गया होगा। अल्लाह हम सबको पंजवक्ता नमाज़ पढ़ने की तौफीक अता फरमाए। 

ज़ोहर की नमाज़ का वक़्त और पढ़ने का तरीका

ज़ोहर की नमाज़ का वक़्त और पढ़ने का तरीका


आज हम ज़ोहर की नमाज़ पर बात करेंगे और आपको बताएँगे की आखिर ज़ोहर की नमाज़ क्या होती हैं? इसका सही वक़्त कौनसा होता हैं? इस नमाज़ में कितनी रकात होती हैं? इस नमाज़ को पढ़ने का क्या तरीका है? मेरे भाइयों और बहनों जैसा की हम सब जानते है की इस्लाम में हमें जो पांच नमाज़े पढ़ने का हुक्म हैं।  वो सभी नमाज़े हमें पाबन्दी से पढ़ना हैं।  उसे बेवजह छोड़ना नहीं हैं।  अगर हम बेवजह नमाज़ छोड़ देते है हम पर अल्लाह का अज़ाब नाज़िल होगा। जो बहुत भयानक होगा। बेनमाज़ी लोगों पर जो अल्लाह का जो अज़ाब नाज़िल होता हैं उस पर हम पहले भी एक आर्टिकल लिख चुके हैं। आपके चाहे तो लिंक पर क्लिक करके वह आर्टिकल पढ़ सकते हैं।  

खैर हम बात करते हैं ज़ोहर की नमाज़ की, सबसे पहले बात करते हैं आखिर ज़ोहर की नमाज़ क्या होती हैं?

इस्लाम में जो पांच नमाज़े मुसलमानों पर फ़र्ज़ हैं उन पांच नमाज़ों में से जो दूसरी नमाज़ होती हैं वो ज़ोहर की नमाज़ कहलाती है। ज़ोहर की नमाज़ से पहले फज्र की नमाज़ होती हैं। एक हदीस में आया हैं की जो शख्स पाबन्दी से ज़ोहर की नमाज़ अदा करता है उसके माल और दौलत में इज़ाफ़ा होता हैं और वह कभी परेशान नहीं रहता हैं। सुब्‍हान‍अल्लाह

ज़ोहर की नमाज़ का वक़्त कब से कब तक रहता है?

वैसे तो हम सभी ज़ोहर की नमाज़ का वक़्त जानते हैं लेकिन कुछ बच्चे जो की शुरू में नमाज़ पढ़ना सीखते हैं उन्हें नमाज़ और उसके वक़्त का पता नहीं रहता। इसलिए हम आपको बता दें की ज़ोहर की नमाज़ का वक़्त जवाल के वक़्त के बाद शुरू होता हैं याद रहे है की जवाल का वक़्त गुज़र जाने के बाद ही ज़ोहर की नमाज़ अदा की जा सकती हैं। जवाल के वक़्त कोई भी नमाज़ पढ़ना मकरूह हैं। जवाल का वक़्त यानि जब सूरज बिलकुल सर के ऊपर रहता हैं। ये वक़्त दिन में करीब 11:30 से लेकर 12:30 बजे तक रहता हैं।    

ज़ोहर की नमाज़ वक़्त 1 बजे से लेकर असर की नमाज़ की अज़ान से पहले तक रहता है वैसे तो अलग अलग शहरों की मस्जिदों में ज़ोहर की नमाज़ का वक़्त थोड़ा अलग रहता है। कहीं 1 बजे तक अज़ान हो जाती हैं तो कहीं 2 बजे। अज़ान होने के 15 मिनट बाद इमाम ज़ोहर की नमाज़ पढ़वाते हैं। अगर आप कहीं सफर कर रहे हो जहाँ न मस्जिद हैं न कहीं से अज़ान की आवाज़ आ रही हैं तो आप पहले तो मोबाइल या घड़ी में वक़्त देख ले अगर 1 बजे से लेकर 4 बजे के बीच वक़्त हैं तो आप नमाज़ पढ़ सकते हैं क्यूंकि 4 बजे के बाद असर का वक़्त शुरू हो जाता हैं।

ज़ोहर की नमाज़ में कितनी रकात होती हैं 

आपको बता दें की ज़ोहर की नमाज़ में 12 रक़ातें होती हैं। जो इस तरह है,

4 रकात नमाज़ सुन्नत

4 रकात नमाज़ फ़र्ज़ 

2 रकात नमाज़ सुन्नत

2 रकात नमाज़ नफ़्ल 

मतलब पहले 4 सुन्नत पढ़ी जाएगी फिर 4 फ़र्ज़ उसके बाद 2 सुन्नत और आखिर में 2 नफ़्ल नमाज़ आपको पढ़नी हैं।

ज़ोहर की नमाज़ पढ़ने का तरीका 

दिन की पांचो नमाज़ के पढ़ने का तरीका लगभग एक ही जैसा हैं। सब में बस नियत और रकात का फर्क होता है बाकि सब कुछ तरीका बिलकुल एक ही जैसा हैं। आपने हमारे पिछले ब्लॉग में फज्र, असर और मगरिब की नमाज़ को पढ़ने का जो तरीका पढ़ा होगा। जो तरीका उसमे दिया गया है वही तरीका ज़ोहर की नमाज़ में भी अपनाना हैं। 

हम आपको ज़ोहर की 4 सुन्नत नमाज़ पढ़ने का पूरा तरीका बताते है। वो अगर आपने सीख लिया तो बाकि की नमाज़ भी आप आसानी से सीख लेंगे। 

4 रकात नमाज़ सुन्नत का तरीका 

सबसे पहले नमाज़ की नियत करे जो इस तरह है  

नियत की मैंने 4 रकात नमाज़ सुन्नत, वास्ते अल्लाह तआला के, वक़्त ज़ोहर का, मुँह मेरा काबा शरीफ की तरफ और फिर आप अल्लाहु अकबर कहते हुए अपने दोनों हाथ उठा कर अपने कानों तक ले जाये फिर दोनों हाथों को नाफ़ के नीचे बांध ले। उसके बाद आपको सूरह सना पढ़ना हैं जो हैं "सुबहानका अल्लाहुम्मा व बिहम्दीका व तबा रकस्मुका व तआला जद्दुका वाला इलाहा गैरुका" इसके बाद आप अउजू बिल्लाहि मिनश शैतान निर्रजिम बिस्मिल्लाहीर्रहमानिररहीम पढ़े। उसके बाद सूरह फातेहा पढ़े। सूरह फातेहा पढ़ने के बाद कोई एक सूरह पढ़े जैसे कुल्हुवल्लाह, या कुल अऊजु बिरब्बिल फलक या कोई और सूरह जो आपको याद हो वो पढ़े। सूरह पढ़ने के बाद आप अल्लाहो अकबर कहते हुए रुकू में जाये रुकू में जाने के बाद 3 मर्तबा "सुबहान रब्बी अल अज़ीम" पढ़े। 

इस वक़्त आपको अपनी नज़र अपने पैर के अंगूठे पर रखनी हैं। इसके बाद आप "समीअल्लाहु लिमन हमीदह" कहते हुए रुकू से खड़े हो जाये और रब्बना व लकल हम्द कहते हुए उसके बाद अल्लाहो अकबर बोलते हुए सजदे में जाये। सजदे में इस तरह जाये की आपका सीधा घुटना पहले ज़मीन पर लगे। फिर सजदे में 3 मर्तबा सुबहाना रब्बी अल आला पढ़े। 3 बार सुबहाना रब्बी अल आला पढ़ने के बाद फिर अल्लाहु अकबर कहते हुए उठे और वापिस सजदे में जाये। वापिस 3 मर्तबा सुबहाना रब्बी अल आला पढ़े। 

आप फिर अल्लाहु अकबर कहते हुए खड़े हो जाये और हाथ बांध ले और फिर से सूरह फातेहा (अल्हम्दु शरीफ) पढ़े और उसकी बाद कोई दूसरी सूरह जो आपको याद हो वो पढ़े। उसके बाद फिर से अल्लाहु अकबर कहते हुए रुकू में जाये। रुकू में जाने के बाद वापिस 3 मर्तबा "सुबहाना रब्बी अल अज़ीम" पढ़े। इसके बाद वापिस आप "समीअल्लाहु लिमन हमीदह" कहते हुए रुकू से खड़े हो जाये और दोबारा रब्बना व लकल हम्द कहते हुए उसके बाद अल्लाहो अकबर कहते हुए सजदे में जाये। सजदे में वापिस 3 मर्तबा सुबहाना रब्बी अल आला पढ़े फिर वापिस अल्लाहु अकबर कहते हुए दोबारा सजदे में सुबहाना रब्बी अल आला पढ़े। फिर आप अल्लाहु अकबर कहते हुए सीधे पैर के पंजो के बल पर बैठ जाये। 

ध्यान रहे आप जब बैठे तो सीधे पैर के अंघूठे के बल पर पांचो अँगुलियों समेत बैठे। उल्टा पैर आप ज़मीन पर टिका सकते हैं। अगर कोई परेशानी आ रही हैं इस तरह बैठने में या अंगूठा हिल जाता है तो कोई मसला नहीं लेकिन जानबूझकर अंगूठा हिलाना या दोनों पैर ज़मीन पर टिका कर बैठना गलत हैं। 

फिर आप अत्तहिय्यात पढ़े अत्तहिय्यात पढ़ने के दौरान आपको अशहदु अल्लाह अल्फ़ाज़ आते ही शहादत की ऊँगली को उठाना हैं। फिर आप अल्लाहो अकबर बोलते हुए तीसरी रकात के लिए फिर से खड़े हो जाये। जैसे आपने ये 2 रकात पढ़ी उसी तरह आपको 4 सुन्नत की आखरी 2 और रकात पढ़नी हैं। बस आखिर की 2 रकात में अत्तहिय्यात के बाद दरूदे इब्राहिम एक बाद और दुआ ए मसुरा एक एक बार पढ़ना हैं। उसके बाद सलाम फेरना हैं। इस तरह आपकी 4 रकात नमाज़ सुन्नत हो जाएगी। 

4 रकात फ़र्ज़ नमाज़ का तरीका 

जैसे आपने सुन्नत नमाज़ पढ़ी। बस वैसे ही आपको फ़र्ज़ नमाज़ पढ़ना हैं क्यूंकि दोनों में 4 रकात ही हैं। बस 4 फ़र्ज़ नमाज़ में थोड़े से बदलाव हैं जो इस तरह हैं पहला की इसमें आपको नियत में 4 सुन्नत की जगह 4 फ़र्ज़ बोलना हैं। दूसरा अगर आप मस्जिद में यह नमाज़ पढ़ रहे हैं तो नियत में पीछे इस इमाम के बोल सकते हैं क्यूंकि मस्जिद में फ़र्ज़ नमाज़ इमाम के पीछे होती हैं। इमाम ही फ़र्ज़ नमाज़ को पढ़वाते हैं। तीसरा जब आप पहली 2 रकात फ़र्ज़ पढ़कर तीसरी रकात के लिए खड़े होंगे, उसमे आपको सूरह फातेहा पढ़ने के बाद सीधे रकू में चले जाना हैं। सूरह फातेहा के बाद कोई सूरह जैसे कुल्हुवल्लाह, या कुल अऊजु बिरब्बिल फलक नहीं पढ़ना हैं। आपको सीधे रकू में जाना हैं और जो बाकि का तरीका हैं वहीं इस नमाज़ में भी करना हैं।  बस ऐसे आपकी 4 फ़र्ज़ नमाज़ भी हो जाएगी। 

2 रकात नमाज़ सुन्नत का तरीका 

जैसे आपने सबसे पहले 4 रकात नमाज़ सुन्नत पढ़ी उसी तरह अब 2 रकात नमाज़ सुन्नत पढ़नी हैं बस इसमें ये फर्क हैं की पहले आपने 4 सुन्नत पढ़ी अब सिर्फ 2 सुन्नत पढ़नी हैं। इसके लिए आपको नियत में 2 रकात नमाज़ सुन्नत बोलना हैं और 4 की जगह 2 रकात ही पढ़नी हैं यानि दूसरी रकात में अत्तहिय्यात, दरूदे इब्राहिम और दुआ ए मसुरा पढ़ कर सलाम फेरना हैं।

2  रकात नमाज़ नफ़्ल का तरीका 

जैसे आपने 2 रकात नमाज़ सुन्नत पढ़ी बस ऐसे ही 2 रकात नमाज़ नफ़्ल पढ़नी हैं। बस नियत में आपको 2 रकात नमाज़ नफ़्ल बोलना हैं। इस तरह आपकी नफ़्ल नमाज़ भी हो जाएगी। उम्मीद करते है आपको ज़ोहर की नमाज़ को पढ़ने का पूरा तरीका मालूम चल गया होगा। 

अल्लाह हम सबको पंजवक्ता नमाज़ पढ़ने की तौफीक अता फरमाए आमीन।

जानिए हज़रत इमाम हुसैन की पूरी कहानी (Hazrat Imam Hussain Story in Hindi)

हज़रत इमाम हुसैन को इस्लाम में शहीद का दर्जा दिया गया हैं। उनकी शहादत की कहानी हर किसी को रुला सकती है। इमाम हुसैन की याद में ही मुहर्रम ...

Popular Posts