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जानिए आयते करीमा पढ़ने के फायदे और इसका महत्व के बारे में

आयते करीमा

इस्लाम धर्म में कुरआन को विशेष महत्त्व दिया गया है। कुरआन की हर आयत एक दिशा, एक मार्गदर्शन और एक रौशनी है जो हमें सच्चाई की ओर ले जाती है। ऐसी ही एक महत्वपूर्ण आयत है जिसे "आयते करीमा" कहा जाता है। इस आयत को पढ़ने और समझने से न केवल मानसिक शांति प्राप्त होती है, बल्कि इससे कई आध्यात्मिक और जीवन के विभिन्न पहलुओं में लाभ भी मिलता है। इस ब्लॉग में हम आयते करीमा के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे, साथ ही इसके फ़ायदों पर भी रोशनी डालेंगे।

आयते करीमा क्या है?

आयते करीमा दरअसल एक छोटी लेकिन अत्यधिक प्रभावी और महत्वपूर्ण आयत है, जो सूरह अंबिया (21:87) में मिलती है। यह आयत हज़रत यूनुस अलैहिस्सलाम की दुआ का हिस्सा है, जो उन्होंने उस समय पढ़ी जब वे मछली के पेट में थे। यह आयत इस प्रकार है:

ला इलाहा इल्ला अंता सुब्हानक, इन्नी कूंतु मिनज़्ज़ालिमीन"

(ला इलाहा इल्ला अंता, तेरी महिमा है, मैं ज़ालिमों में से हूँ)

इस आयत में हजरत यूनुस (अलैहिस्सलाम) ने अल्लाह से अपनी गलती की माफी मांगी और अपने ऊपर हुए अत्याचार को स्वीकार किया। उनकी यह दुआ इतनी प्रभावशाली थी कि अल्लाह ने उन्हें मछली के पेट से निजात दिलाई और उनके पापों को माफ किया।

आयते करीमा के फायदे क्या क्या हैं?

आयते करीमा को इस्लामिक जगत में एक महत्वपूर्ण दुआ के रूप में देखा जाता है। इसे पढ़ने के कई फ़ायदे हैं, जिनमें से कुछ निम्नलिखित हैं:

1. परेशानियों से छुटकारा

इस आयत को पढ़ने से जीवन की हर प्रकार की परेशानियों से निजात मिल सकती है। जब भी कोई व्यक्ति मुश्किल हालातों में होता है और उसे किसी समस्या से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं दिखता, तब आयते करीमा पढ़ना अत्यधिक प्रभावशाली साबित हो सकता है। इस आयत के माध्यम से अल्लाह से सहायता की दरख्वास्त की जाती है।

2. तौबा और माफी

आयते करीमा तौबा की आयत है। इसे पढ़ते वक्त इंसान अपने गुनाहों के लिए अल्लाह से माफी मांगता है और अपने किए हुए गलतियों को स्वीकार करता है। इसका नियमित वज़ीफा करने से गुनाह माफ होते हैं और दिल को सुकून मिलता है।

3. आध्यात्मिक शक्ति और विश्वास

इस आयत को पढ़ने से व्यक्ति के अंदर आध्यात्मिक शक्ति और विश्वास बढ़ता है। यह अल्लाह पर यकीन को और मजबूत करता है और इंसान को सिखाता है कि उसकी हर कठिनाई में अल्लाह ही मददगार है। इस आयत को पढ़ने से दिल की बेचैनी दूर होती है और इंसान को मानसिक शांति प्राप्त होती है।

4. दुआओं की कबूलियत

आयते करीमा एक ऐसी आयत है, जिसे अगर सच्चे दिल से पढ़ा जाए तो अल्लाह उसकी दुआ को कबूल करता है। कई इस्लामी विद्वान बताते हैं कि अगर कोई इंसान किसी विशेष परेशानी में हो और नियमित रूप से इस आयत का वज़ीफा करे, तो उसकी दुआ कबूल होती है और उसे राहत मिलती है।

5. संकटों से बचाव

किसी भी बड़ी आपदा या संकट से बचने के लिए आयते करीमा का वज़ीफा करना बेहद फायदेमंद होता है। हजरत यूनुस (अलैहिस्सलाम) ने इस आयत को संकट के समय में पढ़ा था और अल्लाह ने उन्हें बचाया। इसी प्रकार, अगर कोई व्यक्ति संकट में हो और इस आयत को विश्वास के साथ पढ़े, तो अल्लाह उसे उस संकट से निजात दिलाता है।

6. नकारात्मक ऊर्जा से बचाव

आयते करीमा को पढ़ने से व्यक्ति को नकारात्मक ऊर्जा और शैतानी वसवसे से भी बचाव मिलता है। इसका नियमित वज़ीफा व्यक्ति को हर प्रकार की बुराइयों और नकारात्मक तत्वों से दूर रखता है, जिससे इंसान के जीवन में सकारात्मकता बनी रहती है।

आयते करीमा का वज़ीफा कैसे करें?

आयते करीमा का वज़ीफा करने के लिए कुछ विशेष नियम नहीं होते, लेकिन इसे पढ़ते समय सच्चे दिल से अल्लाह पर यकीन और भरोसा रखना चाहिए। इसके कुछ सामान्य तरीके निम्नलिखित हैं:

  • पांच वक्त की नमाज के बाद: आप पांच वक्त की नमाज के बाद 100 या 1000 बार आयते करीमा का वज़ीफा कर सकते हैं।
  • मुश्किल वक्त में: जब भी कोई परेशानी आए या दिल में बेचैनी हो, तो इस आयत को बार-बार पढ़ा जा सकता है।
  • गुनाहों की माफी के लिए: अगर आप किसी गुनाह के बाद तौबा करना चाहते हैं, तो आयते करीमा का वज़ीफा बेहद असरदार होता है।
  • विशेष दिनों में: इस्लाम में कुछ खास दिन होते हैं जैसे जुम्मा का दिन, इन दिनों में भी आयते करीमा का वज़ीफा करना अत्यधिक फायदेमंद माना जाता है।

आखरी पैगाम 

आयते करीमा न केवल हजरत यूनुस (अलैहिस्सलाम) की एक महत्वपूर्ण दुआ है, बल्कि यह हमारी जिंदगी के हर पहलू में एक मार्गदर्शन है। इसका नियमित वज़ीफा करने से न केवल परेशानियों से छुटकारा मिलता है, बल्कि आध्यात्मिक शक्ति भी बढ़ती है। हमें चाहिए कि इस आयत की गहराई को समझें और इसे अपने जीवन का हिस्सा बनाएं। अल्लाह हम सभी को इस आयत के जरिए अपने करीब लाए और हमारी परेशानियों को दूर करे, आमीन।

उमराह क्या होता हैं? जानिए उमराह को करने का तरीका

उमराह क्या होता हैं? जानिए उमराह को करने का तरीका


दुनिया भर के लाखो करोड़ो मुस्लिम उमराह करने के लिए सऊदी अरब के शहर मक्का आते हैं। आप उमराह को पवित्र शहर मक्का में काबा की एक छोटी तीर्थयात्रा का रूप कह सकते हैं। क्यूंकि उमराह करीब 15 दिन का होता हैं जबकि हज करीब 40 दिन का होता हैं। अरबी में उमराह शब्द का मतलब होता हैं किसी भीड़ भाड़ या आबादी वाली जगह पर जाना। उमराह एक बहुत महत्वपूर्ण इस्लामिक धार्मिक यात्रा हैं। ये हज की तरह फ़र्ज़ नहीं हैं बल्कि सुन्नत हैं।  

उमराह मुसलमानो को अपने किये गुनाहो की मांफी मांगने अपनी दुआओं को कबूल करवाने और खुशहाल ज़िन्दगी की मुरादों को मांगने के लिए किया जाता हैं। यानि उमराह करने वाले शख्स को एक मौका मिलता हैं की वह उमराह के दौरान अल्लाह से अपने गुनाहों की माफ़ी मांग सके और अपने और अपने परिवार की खुशहाली की दुआ अल्लाह से कर सके। क्यूंकि ऐसा माना जाता हैं की उमराह अगर दिल से किया जाये तो अल्लाह आपकी हर मुराद पूरी करता हैं।

उमराह करने की शुरुआत कब हुई थी?

उमराह पहली बार 629 ईस्वी में प्यारे नबी पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने 2000 अनुयायियों के साथ किया था। उस वक़्त उमराह करने में आपको बहुत मुश्किलें  आये थी। आपका उमराह करने का मकसद अल्लाह से गुनाहो की माफ़ी अल्लाह को खुश करने के मकसद से किया था। 

हज और उमराह में क्या फर्क होता हैं?

हर मुसलमान पर हज फ़र्ज़ हैं जिसे हर मुसलमान को करना ज़रूरी हैं लेकिन सिर्फ उन पर जो सेहतमंद हैं और आर्थिक रूप से ताकतवर हैं। दूसरी तरफ उमराह हज की तरह फ़र्ज़ नहीं बल्कि सुन्नत हैं। हज करने का एक वक़्त फिक्स होता हैं यानि हज इस्लामी कैलेंडर के 12 वे महीने धू अल-हिज्जा की आठवीं तारीख से शुरू होता हैं जबकि उमराह साल में कभी भी किया जा सकता हैं लेकिन रमज़ान के महीने में उमराह करना सबसे अच्छा माना जाता हैं। 

उमराह कितने दिन का होता हैं?

उमराह करने के लिए करीब 7 से 12 दिन लगते हैं उमराह के लिए कितने दिन चाहिए वह आपके ट्रेवल एजेंट पर निर्भर करता हैं की वह आपको कितने दिन में उमराह करवा रहे है लेकिन ये मान के चले की आपको करीब 10 से 12 दिन तो उमराह के लिए चाहिए ही होंगे। हर ट्रेवल एजेंसी का उमराह का पैकेज होता हैं किसी के 7 दिन का होता हैं तो किसी के 10 दिन का या उससे 2 से 3 दिन ज़्यादा इसके लिए आप जिस भी ट्रेवल एजेंसी के माध्यम से उमराह करने जा रहे हैं उनसे जानकारी ले सकते हैं।

उमराह करने के लिए किन किन चीज़ो की आवश्यकता होती हैं?

अगर आप सऊदी अरब के अलावा किसी और देश के नागरिक हैं तो आपके पास पासपोर्ट होना ज़रूरी हैं। आपको हवाई जहाज़ के माध्यम से सऊदी अरब पहुंचना होता हैं। जो सऊदी अरब के नज़दीकी देश हैं वह कार के माध्यम से सऊदी अरब पहुँच सकते हैं। उससे पहले आपको वहां जाने के लिए वीज़ा के लिए आवेदन करना पड़ता हैं। आवेदन करने से पहले आपके पास सारे कागज़ात या डाक्यूमेंट्स सही होना चाहिए जैसे आपका ID कार्ड पासपोर्ट इत्यादि। वीज़ा आने के बाद आप उमराह के लिए सऊदी अरब जा सकते हैं। उम्र की सीमा की बात करें तो आपकी उम्र 18 से 65 वर्ष के बीच होना चाहिए लेकिन सऊदी सरकार ने नियम में बदलाव किये हैं और उसके मुताबिक एक पांच साल का बच्चा भी अपने माँ बाप या रिश्तेदार के साथ उमराह करने जा सकता हैं। 

पहले सऊदी सरकार का नियम था की अगर कोई महिला अगर 45 वर्ष से कम उम्र की हैं तो वह अकेले उमराह नहीं कर सकती या तो वह अपने शौहर के साथ जा सकती हैं अगर शौहर नहीं हैं तो वह अपने भाई या अपने रिश्तेदार मर्द जिससे उसका खून का रिश्ता हो और जिसकी उम्र 17 वर्ष से ज़्यादा हो उसके साथ उमराह के लिए जा सकती हैं लेकिन कुछ साल पहले इस नियम को हटा दिया गया हैं। अभी कोई भी महिला जिसकी उम्र 18 से 65 के बीच हैं वह अकेले उमराह के लिए जा सकती हैं।

उमराह करने से पहले किन बातों का ध्यान रखना होता हैं?

  • आपको एहराम पहन कर उमराह करना हैं याद रखे एहराम आपको अपनी फ्लाइट के निकलने से पहले पहनना हैं। 
  • आपको एहराम पहनने से पहले अपने नाखूनों और अनचाहे बालों को काटना होगा। 
  • बिना ग़ुस्ल या वज़ू के एहराम नहीं बांधे न ही क़ुरान की तिलावत करें न ही काबा के आस पास जाएं।
  • एहराम की हालत में आप किसी को गाली नहीं दे सकते न ही किसी को हानि पहुंचा सकते हैं। एहराम की हालत में परफ्यूम का इस्तेमाल नहीं करना हैं।

उमराह करने का तरीका

उमराह करने के तीन चरण हैं 

  1. पहला एहराम बांधना। 
  2. तवाफ़ करना (काबा के सात चक्कर लगाना)।
  3. सफ़ा और मरवा पहाड़ियों के सात चक्कर लगाना जिसे सई़ कहा जाता हैं। 


सबसे पहले मीक़ात तक पहुंचे यहाँ मीक़ात का मतलब एक मुख्य सीमा हैं जहाँ से उमराह की शुरुआत होती हैं। मीक़ात में पहुँचने के बाद  आप अपने कपड़ो को उतार कर एहराम बांध लें और 2 रकत नमाज़ पढ़े और उसके बाद ये दुआ पढ़े 

لَبَّيْكَ اللَّهُمَّ لَبَّيْكَ، لَبَّيْكَ لَا شَرِيكَ لَكَ لَبَّيْكَ، انَّالْحَمْدَ، وَالنِّعْمَةَ، لَكَ وَالْمُلْكَ، لا شَرِيكَ لَكَ 

और अगले चरण के लिए आगे बढे यानि की तवाफ़ के लिए। 

दूसरे चरण में आपको मस्जिद अल हरम में दाखिल होना हैं और ये दुआ पढ़ना हैं 

بِسْمِ اللَّهِ ، وَالصَّلَاةُ وَالسَّلَامُ عَلَى رَسُوْ لِ اللَّهِ ، اَللَّهُـمَّ افْتَحْ لِيْ أَبْوَابَ رَحْمَتِكَ।

फिर आपको बार बार अल्लाहो अकबर कहते हुए काबा के 7 चक्कर लगाने हैं जिसमे काले पत्थर को चूमना शामिल हैं तवाफ के दौरान यमनी कोने और काले पत्थर के बीच में आते ही ये दुआ पढ़े 

رَبَّنَا آتِنَا فِىْ الدُّنْيَا حَسَنَةً وَفِىْ الآخِرَةِ حَسَنَةً وَّقِنَا عَذَابَ النَّارِ 

तवाफ़ पूरा करने के बाद आपको 2 रकात नमाज़ पढ़ना हैं। उमराह के दौरान जितना हो सके तलबिया पढ़ना चाहिए जो इस प्रकार हैं 

لَبَّيْكَ اللَّهُمَّ لَبَّيْكَ، لَبَّيْكَ لَا شَرِيكَ لَكَ لَبَّيْكَ، انَّالْحَمْدَ، وَالنِّعْمَةَ، لَكَ وَالْمُلْكَ، لا شَرِيكَ لَكَ।

तीसरे चरण में आपको सफा और मारवाह पहाड़ियों पर चढ़ना हैं जिसे सई कहा जाता हैं। 

चढाई करते हुए ये दुआ पढ़े अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, अल्लाहु अकबर, वा लिल्लाही एल-हम्द। जब आप पहाड़ी पर पहुंचे तो ये दुआ पढ़े, 

إِنَّ الصَّفَا وَالْمَرْوَةَ مِن شَعَائِرِ اللَّهِ ۖ فَمَنْ حَجَّ الْبَيْتَ أَوِ اعْتَمَرَ فَلَا جُنَاحَ عَلَيْهِ أَن يَطَّوَّفَ بِهِمَا ۚ وَمَن تَطَوَّعَ خَيْرًا فَإِنَّ اللَّهَ شَاكِرٌ عَلِيمٌ

जब आप मस्जिद अल हरम से बाहर निकले तो ये दुआ पढ़े

 بِسْمِ اللّهِ وَالصَّلاَةُ وَالسَّلاَمُ عَلَى رَسُولِ اللّهِ، اَللَّهُـمَّ إِنِّي أَسْأَلُكَ مِنْ فَضْـلِكَ، اَللَّهُـمَّ اعْصِمْنِـي مِنَ الشَّيْـطَانِ الرَّجِـيمِ.

हमने पूरी कोशिश की हैं आपको उमराह के बारे में पूरी जानकारी दे सके फिर भी अगर अगर कोई बात बताना हमारे से छूट गया हैं तो हम उसके लिए आपसे माफ़ी चाहते हैं। अगर आप उमराह पर जा रहे हैं या जाने वाले हैं तो आप जिस भी ट्रेवल एजेंसी के माध्यम से जा रहे हैं वह आपको उमराह करवाने में पूरी मदद करते हैं और आपके साथ ही उनका एक गाइड आपके साथ रहता हैं जो आपको उमराह करने का पूरा तरीका बताता हैं ताकि आप से कोई भी गलती न हो।

जानिए सूरह कौसर को पढ़ने के फायदे और इसके वज़ीफ़े के बारे में

जानिए सूरह कौसर को पढ़ने के फायदे और इसके वज़ीफ़े के बारे में

सूरह कौसर क़ुरान की 108 वीं सूरह हैं। यह क़ुरान के 30 वे पारे में मौजूद हैं। ये क़ुरान की सबसे छोटी सूरह हैं। कुछ लोग इसे मक्की सूरह कहते हैं और कुछ लोग इसे मदनी सूरह कहते हैं। ये सूरह हैं बहुत छोटी लेकिन इसको पढ़ने के बेशुमार फायदे हैं।

सूरह कौसर कब नाज़िल हुई थी?

ये सूरह तब नाज़िल हुआ था जब हमारे प्यारे नबी हज़रत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम बहुत बुरे दौर से गुज़र रहे थे। उस वक़्त मुसलमानो पर बहुत ज़ुल्म हो रहे थे और मुसलमानो की तादाद भी बहुत कम हो गयी थी। उसके अलावा जब हमारे प्यारे नबी की दोनों औलादों की मौत हो गयी थी तब किसी दुश्मन ने प्यारे नबी को कहा था की अब तुम्हारे कोई औलाद नहीं बचेगी। दुश्मनो ने हज़रत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम को कहा था की इस्लाम को आगे बढ़ाने के लिए तुम्हारी नस्लें खत्म हो चुकी हैं अब तुम्हारा कोई वंश नहीं बचा हैं क्यूंकि प्यारे नबी के दोनों बेटों की मौत हो चुकी थी। उस वक़्त हमारे प्यारे नबी की 2 से 3 बेटियां भी थी लेकिन उस वक़्त बेटों को ही वंश चलाने वाला माना जाता था। दुश्मनो ने आपका बहुत मज़ाक बनाया ऐसे बुरे और मुश्किल वक़्त में अल्लाह ने सूरह कौसर को नाज़िल किया।

सूरह कौसर में किन बातों का ज़िक्र हैं?

सबसे पहले जो सबसे ज़रूरी बात इसमें बताई गयी हैं की जब किसी को अपनी ज़िन्दगी से खो देते हैं तब अल्लाह उसे किसी और चीज़ में बदल देता हैं उसके अलावा सूरह कौसर में तीन बहुत ज़रूरी आयतें शामिल हैं जिनमे तीन बातें बताई गयी हैं जो इस प्रकार हैं,

पहली आयत में ये बताया गया हैं की जन्नत में कौसर नाम की एक नदी हैं। जो जन्नती लोगो के लिए बनायीं गयी हैं जिसके किनारे सोने के होंगे और ये नदी मोती के ऊपर बहेगी जिसका पानी दूध से भी ज़्यादा सफ़ेद होगा और शहद से भी ज़्यादा मीठा होगा। ये नदी का पानी सभी जन्नती लोगो के लिए होगी जो हर रोज़ इसका पानी पी सकेंगे। 

दूसरी आयत में ये बताया गया है की हमें हमेशा अल्लाह से दुआ करना करना चाहिए और उसी के लिए हमें अपनी सारी चीज़े क़ुर्बान कर देना चाहिए चाहे वो वक़्त हो या दौलत। सब कुछ अल्लाह के लिए ही करना चाहिए। इससे ये मतलब है की जब आप आपकी हर चीज़ अल्लाह पर क़ुर्बान करते हो तब अल्लाह आपको और ज़्यादा देता हैं। इस आयत में अल्लाह ने प्यारे नबी को ऊंट की क़ुरबानी करने का भी हुक्म दिया था। उस वक़्त ऊंट की क़ुरबानी अपनी दौलत क़ुर्बान करने जैसा था। 

तीसरी आयत में या बताया गया है की प्यारे नबी के सारे दुश्मनो को काट दिया गया गया हैं। कहने का मतलब अल्लाह इस सूरह में ये बताता हैं प्यारे नबी के सारे दुश्मन काट दिए गए हैं।

सूरह कौसर पढ़ने के क्या फायदे हैं?

  • जिन लोगो की कमाई कम हैं या उनके पास कमाई के ज़्यादा साधन नहीं हैं उनको सूरह कौसर पाबन्दी से पाबन्दी से पढ़ना चाहिए इंशाअल्लाह इसकी बरकत से कमाई से रास्ते खुल जायेंगे। 
  • जिनकी औलादें जन्म के बाद ही मर जाती हैं या ज़्यादा वक़्त तक ज़िंदा नहीं रहती उन्हें सूरह कौसर पढ़ना चाहिए। जिसकी फ़ज़ीलत से अल्लाह उन्हें लम्बी ज़िन्दगी अता फरमाएगा। 
  • जो शख्स पाबन्दी से इस सूरह को पढ़ेगा उसे क़यामत के दिन जन्नत की कौसर नहर का पानी पीने को मिलेगा।  
  • अपने दुश्मनों से हर वक़्त हिफाज़त के लिए सूरह कौसर पढ़ना चाहिए। जिससे दुश्मनों से हर वक़्त हिफाज़त रहेगी और आप महफूज़ रहेंगे। 
  • सूरह कौसर की बरकत से आप हर तरह की बीमारी से महफूज़ रहेंगे। अगर पहले से कोई बीमारी होगी वो भी इस सूरह की बरकत से खत्म हो जाएगी। 
  • सूरह कौसर पाबन्दी से पढ़ने वाले शख्स की हर मुराद पूरी होती हैं। इसलिए हर मुराद को पूरी करने के लिए सूरह कौसर पढ़े।
  • अगर किसी की शादी में रुकावट आ रही है या रिश्ता होते होते टूट हो रहे हैं तो चाहिए की सूरह कौसर हर ईशा की नमाज़ के बाद पाबन्दी से पढ़े जिससे रिश्तों में आ रही रुकावट से छुटकारा मिलेगा। 
  • अगर किसी की याद्दाश्त कमज़ोर हैं यानि उसे कुछ याद नहीं रहता तो उसे इस सूरह को ज़रूर पढ़ना चाहिए जिससे उसकी दिमागी हालत में सुधार होगा और याददाश्त मज़बूत होगी। 
  • सूरह कौसर गरीबी कम करने और अपने माल की हिफाज़त के लिए पढ़ते रहना चाहिए। 
  • अगर किसी का व्यापर या बिज़नेस बहुत अच्छा चल रहा हैं और वो चाहता हैं की ये व्यापर ऐसा ही चलता रहे तो उसे पाबन्दी से सूरह कौसर हर दिन पढ़ना चाहिए जिसकी फ़ज़ीलत से बिज़नेस में बहुत मुनाफा होगा। 
  • इसके अलावा भी इस सूरह को पढ़ने के बेशुमार फायदे हैं हमें चाहिए की हम क़ुरान की हर सूरह को पाबन्दी से पढ़े और उसमे बताये गए रास्तों पर अमल करने की कोशिश करे ताकि हम अल्लाह की अज़ाब से बच सके और एक बेहतर ज़िन्दगी गुज़र सके।

सूरह कौसर कब पढ़ना चाहिए?

बहुत से लोग सोचते हैं की इस सूरह को पढ़ने का सबसे अच्छा वक़्त कौनसा हैं? बहुत से लोग ऐसा कहते हैं की इस सूरह को इतनी मर्तबा पढ़ने से ऐसा होगा यानि कोई 33 मर्तबा पढ़ेगा तो ऐसा होगा कोई 21 मर्तबा पढ़ेगा तो वैसा होगा। ऐसा करने या कहने से फर्क नहीं पड़ता। फर्क ये पड़ता हैं की आप सूरह कौसर को कितनी मोहब्बत से पढ़ रहे हैं? कितना दिल लगा कर कर पढ़ रहे हैं कितना ख़ुशी से पढ़ रहे हैं? अगर आप सिर्फ किसी के कहने पर सूरह कौसर को 21 या 33 मर्तबा पढ़ कर इस काम से निपटने का सोचते हैं तो वो गलत हैं। आप सूरह कौसर को जितना दिल से पढ़ेंगे और अल्लाह से दुआ मांगोगे तो अल्लाह आपकी दुआ को ज़रूर सुनेगा। फिर भी हम आपको बता देते है की इस सूरह को पढ़ने का सबसे बेहतर वक़्त कौनसा हैं? 

सूरह कौसर को आप कोशिश करें की फज्र की नमाज़ के बाद पाबन्दी से जितना मर्तबा आप पढ़ना चाहे पढ़े क्यूंकि इस वक़्त पर आपका दिल और दिमाग बहुत शांत रहता हैं और आपका ध्यान सिर्फ अल्लाह की इबादत की तरफ ही रहता हैं। बाकि आप ईशा की नमाज़ के बाद भी इसे पढ़ सकते हैं क्यूंकि ईशा के वक़्त भी आप हर काम से फ्री हो जाते हैं और सोने से पहले अल्लाह की इबादत करके सोते हैं। फिर भी आपको जब वक़्त मिले आप ये सूरह का ज़िक्र करते रहे ताकि आपको इस सूरह को पढ़ने से फायदे मिलते रहे।

सूरह कौसर का वज़ीफ़ा क्या हैं?

सूरह कौसर का इस्तेमाल आप वज़ीफ़े के तौर पर भी कर सकते हैं। बहुत से लोग अलग अलग परेशानियों का वज़ीफ़ा इंटरनेट पर देखते हैं। सूरह कौसर में वो ताकत हैं जो आपको हर परेशानी से निकाल सकती हैं। सूरह कौसर का वज़ीफ़ा करके आप अलग अलग मुसीबतों या परेशानियों से निकाल सकते हैं। हमने देखा हैं की इंटरनेट पर सूरह कौसर के लेकर अलग अलग वज़ीफ़े बताये गए हैं। बेहतर हैं आप इन अपने हिसाब से दिल से इस सूरह को पढ़े जिससे आप हर परेशानी से निकाल सके बाकि अल्लाह से दुआ करते रहे इंशाअल्लाह आपकी हर दुआ क़बूल होगी।

अल्लाह हम सबको क़ुरान की तिलावत करने दीन पर चलने और पांच वक़्त का नमाज़ी बनने की तौफीक अता फरमाए आमीन। 

जानिए सूरह कहफ़ की 4 कहानियां और उसे पढ़ने के फायदे

surah kahf in hindi

सूरह अल कहफ़ पवित्र क़ुरान की 18 वीं सूरह हैं। ये क़ुरान के 15 और 16 पारे में मौजूद हैं। यानि के इस सूरह को आप क़ुरान के 15 वे और 16 वे  पारे में पढ़ सकते हैं। सूरह कहफ़ का मतलब होता है गुफा इस सूरह में कुल 110 आयतें, 1583 शब्द और 6425 अक्षर मौजूद हैं। ये मक्का में नाज़िल हुई थी इसलिए इसे मक्की सूरह भी कहा जाता हैं। इस सूरह में कहफ़ नाम एक गुफा में मौजूद लोगो की कहानी से लिया गया हैं। इस सूरह में 4 अलग अलग कहानियों का ज़िक्र आया हैं ये चार कहानियों के नाम इस प्रकार हैं। 

  1. गुफा में रहने वाले लोगों की कहानी
  2. बगीचों वाले अमीर आदमी की कहानी
  3. हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम और बुद्धिमान व्यक्ति की कहानी
  4. राजा धुल क़रनैन की कहानी 

इन्हीं 4 अलग अलग कहानियों के बारें में सूरह कहफ़ में बताया गया गया हैं। इन कहानियों को पढ़ कर आप को बहुत बड़ा सबक मिल सकता हैं। इन कहानियों के माध्यम से हमें कुछ ज़रूरी बातें बताई गयी हैं जैसे हमने अपनी जवानी में क्या किया और अपने धर्म का कैसे पालन किया? हमने जो पैसा कमाया वो किस काम में लगाया? जो इल्म हमने हासिल किया उसका इस्तेमाल कैसे और कहाँ किया? आखिर में अपनी ज़िन्दगी में किस तरह बिताया? यही सवाल इन चार कहानियों में बताये गए हैं मतब इन्हीं सवालों के ऊपर वो 4 कहानियां सूरह कहफ़ में बताई गयी हैं। अगर आपको इन सवालों के जवाब चाहिए तो आपको सूरह कहफ़ में मौजूद इन चारो कहानियों को पढ़ना चाहिए। हम इस आर्टिकल में उन चार कहानियों को शार्ट में बताने की कोशिश करेंगे।

पहली कहानी (गुफा में रहने वाले लोगों की कहानी)

पहली कहानी गुफा के लोगों की कहानी हैं। जो अल्लाह पर भरोसा करते थे लेकिन वहां मतलब उनके इलाके के लोगों ने उन्हें उनके घर से निकल दिया क्यूंकि वह एक अल्लाह को मानने लग गए थे। जब वह घर से निकल कर एक गुफा में अल्लाह की इबादत के लिए पहुंचे तब अल्लाह ने उन्हें करीब 300 सालों तक गहरी नींद सुला दिया था। जब वे नींद से जागे तो उन्हें लगा की कुछ घंटे की ही नींद निकलकर वो उठे हो लेकिन अल्लाह ने उन्हें करीब 300 सालों तक गहरी नींद सुलाया जबकि वो इतने लम्बे सालों तक सोये थे। जब वो सोकर उठे तब उन्होंने देखा का वहां रहने वाले सभी लोग ईमान वाले बन गए थे। ये कहानी इस तरह का सबक देती हैं की जब आप अल्लाह पर यकीन करते हैं। तब अल्लाह भी आपकी हिफाज़त करता हैं। जब भरोसा अल्लाह पर से उठ जाता है तो मुसीबतें भी ज़्यादा आती हैं और आप उन मुसीबतों से निकल नहीं पाते। इसलिए चाहे जितना ज़ुल्म हो जाये जितनी आफ़तें आ जाये हमें अल्लाह पर हमेशा भरोसा रखना चाहिए।

दूसरी कहानी (बगीचों वाले अमीर आदमी की कहानी)

ये कहानी ऐसे आदमी की थी जिसके पास 2 बहुत बड़े बड़े बगीचे थे जो बहुत अमीर था जिसके पास सबकुछ था लेकिन उनसे अल्लाह का कभी शुक्र अदा नहीं किया। जिसकी वजह से एक दिन उसके दोनों बगीचे बर्बाद हो गए। इस कहानी से ये सबक मिलता हैं की जब अल्लाह हमें दौलत से नवाज़ता हैं तो हमें उसका शुक्र अदा करते रहने चाहिए।

तीसरी कहानी (हज़रत मूसा और बुद्धिमान व्यक्ति की कहानी)

इस कहानी के मुताबिक एक बार हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम इसराइल बनी इसराइल यानि इसराइल के बच्चो को कुछ बता रहे थे तभी किसी बच्चे ने आपसे पूछा की सबसे बुद्धिमान व्यक्ति कौन हैं? तब हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम ने अपना खुद का ज़िक्र किया और कहा की मैं सबसे बुद्धिमान और विद्वान व्यक्ति हूँ। अल्लाह को मूसा की ये बात बहुत बुरी लगी। अल्लाह ने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से कहा की तूने अल्लाह का ज़िक्र नहीं किया और सीधे अपना नाम बता दिया क्यूंकि सिर्फ अल्लाह ही जानता हैं की सबसे बुद्धिमान व्यक्ति कौन हैं? उसके बाद अल्लाह ने हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को जहाँ दो समुन्दर का संगम होता हैं वहां जाने का हुक्म दिया और कहा की वहां पर यानि उस जगह पर तुझे सबसे बुद्धिमान मिलेगा जो तेरे से भी ज़्यादा बुद्धिमान और काबिल हैं। उस बुद्धिमान व्यक्ति का नाम अल-खिद्र था। जो हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम से उस जगह पर मिला था। 

इस कहानी से ये सबक मिलता हैं की भले ही आपके पास ज्ञान हो लेकिन उस ज्ञान का आपको घमंड नहीं होना चाहिए क्यूंकि कोई दूसरा व्यक्ति आपसे ज़्यादा काबिल और बुद्धिमान हो सकता हैं।

चौथी कहानी (राजा धुल क़रनैन की कहानी)

चौथी और आखरी कहानी एक राजा की हैं जिसका नाम धुल क़रनैन था जिसने लोगो की भलाई और ज़रूरतमंद लोगो की मदद के लिए दुनिया भर का सफर किया वे जहाँ भी गए वहां उन्होंने अच्छाई फैलाई उन्होंने लोगो को गोग और मागोग नामक जनजाति से लोगों को आज़ाद करवाया था।

इस तरह इन चार कहानियों का ज़िक्र सूरह कहफ़ में आया हैं आप अगर इन कहानियों को तफ्सील से पढ़ना चाहते हे तो आप सूरह कहफ़ पढ़े और इन कहानियों को पढ़ने के बाद अपनी ज़िन्दगी को अल्लाह के बताये रास्तों के मुताबिक सुधारे।

सूरह कहफ़ पढ़ने के फायदे और उसकी फ़ज़ीलत 

  • जो शख्स हर जुमा को सूरह कहफ़ पढ़ेगा वह दज्जाल के फितना मतलब उसके विनाश से महफूज़ रहेगा। 
  • हर जुमा की नमाज़ के बाद सूरह कहफ़ पढ़ने से अल्लाह उस शख्स के गुनाहों को माफ़ कर देता हैं। 
  • हर जुमा को सूरह कहफ़ पढ़ने से घर में गरीबी नहीं आती और घर के माल की हिफाज़त रहती हैं। 
  • हर जुमा को सूरह कहफ़ पढ़ने से चेहरे पर एक नूर रहता हैं जो अगले जुमा तक रहता हैं। 
  • सूरह कहफ़ पढ़ने वाला शख्स को दुनिया में बहुत कामयाबी हासिल होगी यानि कामयाबी उस शख्स के कदम चूमेगी। 
  • सूरह कहफ़ हमें अल्लाह के बताये रास्तों पर चलने के लिए प्रेरित करता हैं। 
  • सूरह कहफ़ पढ़ने वाले शख्स के कारोबार में बहुत बरकत रहती हैं इसलिए कारोबार में बरकत के लिए सूरह कहफ़ पाबन्दी से पढ़ना चाहिए। 
  • सूरह कहफ़ से हमारे दिल को सुकून मिलता हैं जिसकी फ़ज़ीलत से हम हर तरह की परेशानियों से महफूज़ रहते हैं और हमारे दिल में किसी तरह की गलत बात नहीं आती। 
  • सूरह कहफ़ पढ़ने से मुसलमानो का ईमान हमेशा मज़बूत रहता हैं। 
  • जिन लोगों में विश्वास यानि कॉन्फिडेंस की कमी होती हैं उन्हें चाहिए की सूरह कहफ़ पाबन्दी से पढ़े जिसकी बरकत से वह किसी भी काम को करने या शुरू करने से कभी घबराएंगे नहीं। 
  • सूरह कहफ़ शख्स को अल्लाह के करीब लाती हैं जिससे हर वक़्त शख्स की हिफाज़त रहती हैं और अल्लाह हर वक़्त उसके करीब रहता हैं।

सूरह फातेहा को पढ़ने के फायदे और उसकी फ़ज़ीलत (Surah Fatiha Padhne Ke Fayde)

Surah Fatiha Padhne Ke Fayde

सूरह अल फातेहा क़ुरान की पहली सूरह हैं। इसमें कुल 7 आयतें हैं जिसमे अल्लाह के बताये रास्तों पर चलने उसकी ताकत और गुनाहों से माफ़ी की दुआ शामिल हैं। सूरह फातेहा में फातेहा शब्द का मतलब होता हैं किसी चीज़ की चाबी या किसी चीज़ को खोलना। चूँकि सूरह फातेहा क़ुरान की पहली सूरह हैं इसलिए इसमें फातेहा का मतलब भी इसकी पहली सूरह होने को साबित करता हैं। हम हर नमाज़ में इस सूरह को पढ़ते हैं इसी बात से आप अंदाज़ा लगा सकते हैं की यह सूरह कितनी मुक्क्दस सूरह हैं। 

कई इस्लामिक विधवानों का मानना हैं की सूरह फातेहा मक्का में नाज़िल हुई जबकि कुछ का मानना हैं की यह मदीना में नाज़िल हुई। खेर सबसे पहले हमें ये जानना ज़रूरी हैं की सूरह फातेहा में क्या कहा गया हैं या कहे क्या बताया गया है?

सूरह फातेहा और उसका हिंदी में मतलब 


بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ
اَلْحَمْدُ لِلّٰهِ رَبِّ الْعَالَمِيْنَ ، الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْمِ ، مٰلِكِ يَوْمِ الدِّيْنِ ، إِيَّاكَ نَعْبُدُ وَإِيَّاكَ نَسْتَعِيْنُ ، اِهْدِنَا الصِّرَاطَ الْمُسْتَقِيْمَ ، صِرَاطَ الَّذِيْنَ أَنْعَمْتَ عَلَيْهِمْ غَيْرِ الْمَغْضُوْبِ عَلَيْهِمْ وَلَا الضَّآلِّيْنَ


सूरह फातेहा का हिंदी तर्जुमा 

शुरू अल्लाह के नाम से जो बड़ा दयालु और बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला हैं। अल्लाह का बहुत बहुत शुक्रिया जिसने इस पुरे संसार या इस दुनिया को बनाया। अल्लाह ही इस पूरी दुनिया का मालिक हैं। हम सिर्फ आपकी ही इबादत करते हैं और आप से ही हर तरह की मदद की दुआ करते हैं। ए अल्लाह हमें सही रास्तो पर चला, वह रास्ता जो सीधे हमें तेरी तरफ ले जाता हैं। वह रास्ता नहीं तो हमें भटका दे और जहन्नम के रास्ते पर ले जाये। 

सूरह फातेहा हमें अल्लाह के बताये रास्तों पर ले जाती हैं। हम हर नमाज़ में इस सूरह को पढ़ते हैं और ये गवाही देते हैं की अल्लाह के सिवा इस दुनिया में कोई नहीं हैं। सूरह फातेहा पढ़ना हर तरह से अफ़ज़ल हैं। ये हमारे बदन और दिल को महफूज़ रखती हैं। इस सूरह को पढ़ने में बहुत शिफा हैं। आज हम यही बताएँगे की सूरह फातेहा को पढ़ने के क्या फायदे हैं और इसकी क्या फ़ज़ीलत हैं?


सूरह फातेहा को पढ़ने के फायदे 

  • यह हर नमाज़ में पढ़ने वाली सूरह हैं जिससे शख्स अल्लाह के करीब रहता हैं और कई इनामो का हक़दार बनता है। 
  • सूरह फातेहा पढ़ने वाला शख्स हर तरह की बिमारियों से महफूज़ रहता हैं ये सूरह हमें बीमारियों से बचाती हैं। 
  • ये सूरह हमारे दिल को मज़बूत रखती हैं हमारे दिल में मौजूद नफरत और गुस्से को बहार निकाल देती है। 
  • ये सूरह हमारे दिलो में पनप रहें नापाक इरादों को करने से रोकती हैं। 
  • सूरह फातेहा पढ़ने वाले शख्स को अल्लाह बहुत मदद करता है और उसे हर परेशानी से बचाता है। 
  • ये सूरह हमारी दुश्मनो से महफूज़ रखती हैं ये सूरह पाबन्दी से पढ़ने वाले शख्स की हिफाज़त की ज़िम्मेदारी अल्लाह की हो जाती है। 
  • ये सूरह हमें क़यामत के दिन होने वाले अज़ाबों से बचाएगी और हमारे सज़ाओं को कम करेगी। 
  • सूरह फातेहा हमें हमेशा सही रास्ता दिखाएगी अगर आप को लग रहा हैं की आप गलत रास्तों पर चल रहे हैं तो आप सूरह फातेहा रोज़ पढ़े इंशाअल्लाह आप को सही रास्तो पर ले जायेगा। 
  • सूरह फातेहा हमारे दिमाग को बहुत मज़बूत रखती हैं और हमें टेंशन और परेशानी से छुटकारा दिलवाती हैं। 
  • सूरह फातेहा हमें अल्लाह के बहुत करीब लाती हैं जिसकी बदौलत हम गुनाहों से बचे रहते है। 
  • सूरह फातेहा पढ़ने वाले शख्स के लिए अल्लाह जन्नत के दरवाज़े खोल देता हैं। 
  • सूरह फातेहा पढ़ने वाला शख्स बुरी बालाओं और आफतों से महफूज़ रहता हैं।


आखरी पैगाम 

क़ुरान एक किताब ही नहीं बल्कि इसमें ज़िन्दगी जीने का तरीका मुसीबतों और परेशानियों से बचने का तरीका और गुनाहो से बचने और जहन्नम के अज़ाब से बचने और उसे कम करने की बातें बताई गयी हैं। आजकल के मुसलमानो को दिन भर मोबाइल चलना मंज़ूर हैं। बेमतलब की चीज़े देखना मंज़ूर हैं, लेकिन क़ुरान और नमाज़ पढ़ने के लिए लोगो को वक़्त नहीं हैं। यही वजह हैं की आज का मुसलमान मक्कार चुगलखोर और ग़ीबत से भर चूका हैं। आज का मुसलमान इसलिए परेशान हैं क्यूंकि वह अल्लाह की इबादत के लिए वक़्त नहीं निकालता। उन्हें लगता हैं की हम सिर्फ रमज़ान में इबादत करके पुरे साल के गुनाहों से बच जायेंगे लेकिन ऐसा नहीं हैं अल्लाह की इबादत आपको हर दिन करना हैं तभी आप एक अच्छी और खुशगवार ज़िन्दगी जी पाएंगे और अल्लाह के अज़ाबो जैसे बीमारियों और हादसों से बचे रहेंगे। खैर हम सब को चाहिए की हम अल्लाह की इबादत करे उसके बताये रास्तों पर चले। 

हर बीमारी से शिफा की इस्लामी दुआएं (Har Bimari ka Ilaj in Islam)

हर बीमारी से शिफा की इस्लामी दुआएं (Har Bimari ka Ilaj in Islam)

आज दुनिया में रहने लगभग सभी लोग कोई न कोई बीमारी या सेहत से जुडी परेशानियों से जूझ रहे है। हर बीमारी के इलाज के लिए वह डॉक्टर के पास जाते है और दवाई से इलाज करवाते है। जिन दवाइयों को लेने के बाद उनको उसकी आदत हो जाती है और वह हमेशा इस तरह की दवाइयों को ही अपनी ज़िन्दगी का हिस्सा बना लेते है। कहने का मतलब उन दवाइयों के बिना फिर वह रह नहीं पाते और हर छोटी छोटी सेहत से जुडी परेशानियों के लिए दवाइयों के इस्तेमाल करते है। लेकिन क्या आप को पता है की क़ुरान की आयतों का इस्तेमाल करके भी कई बीमारीयों का इलाज किया जा सकता है? जी हाँ ये बिलकुल सच है की क़ुरान की मदद से आप गंभीर से गंभीर बीमारी से बच सकते है और अगर बीमारी हो भी गयी हो तो उससे छुटकारा पा सकते है।

पवित्र क़ुरान न सिर्फ एक किताब है बल्कि इसमें पूरी ज़िन्दगी खुशहाली से जीने के तरीके भी इसमें बताये गए है। आज हम कुछ बीमारीयों या सेहत से जुड़ी रोज़मर्रा की परेशानियों से बचने के लिए कुछ क़ुरान की दुआओं का ज़िक्र करेंगे। जिन दुआओं का इस्तेमाल करके आप काफी बीमारीयों से बच सकते है। 

क़ुरान में ऐसी कई सारी सूरह हैं जैसे सूरह अल इस्रा और सूरह अल शिफा,सूरह अल फातिहा वगैरह जिसकी मदद से आप किसी भी बीमारी से लड़ सकते हैं। चलिए हम एक एक करके कुछ बीमारीयों और सेहत से जुड़ी रोज़ की परेशानियों से बचने और उससे छुटकारा पाने के लिए कुछ इस्लामी दुआओं को बताते है।

सर दर्द से छुटकारा पाने के लिए पहली इस्लामी दुआ 

 لَّا یُصَدَّعُوۡنَ عَنْہَا وَلَا یُنۡزِفُوۡنَ

ला युसद दाऊना अनहा वला युनजिफूना

जब की आपको सर दर्द हो ये दुआ कम से कम 7 मर्तबा पढ़ कर पानी में दम करे और उस पानी को पी कर थोड़ा सा पानी जहाँ सर दर्द हो रहा है वहां उस पानी से हलकी मालिश करे। इंशा अल्लाह सर दर्द से छुटकारा मिल जायेगा। आप 7 बार या उससे ज़्यादा भी इसे पढ़ सकते हैं लेकिन कोशिश करें कम से कम 7 मर्तबा तो ज़रूर पढ़े। 

सर दर्द से छुटकारा पाने के लिए दूसरी इस्लामी दुआ 

हम आपको एक और दुआ बता रहे है जो सर दर्द के इलाज में काफी फायदेमंद है जो इस तरह है। 

أَذْهِبِ الْبَاسَ رَبَّ النَّاسِ اشْفِهِ أَنْتَ الشَّافِي لاَ شِفَاءَ إِلاَّ شِفَاؤُكَ شِفَاءً لاَ يُغَادِرُ سَقَمًا

अधहिब अल बास रब्बननास अशफीही अंता अंतशफ़ी ला शिफाआ इल्ला शिफुका शिफाअन ला युग़दीरु सकामन

ये दुआ भी सर दर्द के लिए काफी मुफ़ीद दुआ है। जब भी सर दर्द हो इस दुआ का ज़िक्र करें और पानी में दम करके वह पानी पी ले और कुछ पानी जहाँ दर्द है वहां लगा ले अल्लाह के फज़लों करम से सर्द दर्द कुछ ही देर में गायब हो जायेगा।

दिल की बीमारी से बचने और छुटकारे के लिए इस्लामी दुआ 

अगर किसी को दिल की कोई बीमारी हो गयी हैं जैसे छाती में दर्द या छाती में बेचैनी या फिर इस तरह की दिल की बीमारी से बचना चाहते हैं तो नीचे बताई गयी दुआ पढ़े और अल्लाह से दुआ मांगे। 

الَّذِيْنَ اٰمَنُوْا وَتَطْمَىِٕنُّ قُلُوْبُهُمْ بِذِكْرِ اللّٰهِ ۗ اَلَا بِذِكْرِ اللّٰهِ تَطْمَىِٕنُّ الْقُلُوْبُ

अल्लज़ीना अमानुव व ततमा इन्नु कुलुबुहुम बिज़िकरिल्लाह अला बिज़िक रिल्लाहे ततमा इन्नुल क़ुलूब 

ये दुआ की बरकत से आप सीने में दर्द से छुटकारा पा सकते हैं और अपने दिल को मज़बूत बना सकते हैं। दिल की हर बीमारी इस दुआ की बरकत से दूर हो जाएगी। कोशिश करें वज़ू करके जब भी आपको वक़्त मिले इसका पाबन्दी से ज़िक्र करे जिसकी बरकत से आप दिल की हर बीमारी से बच सके।

दांत में दर्द से छुटकारे के लिए इस्लामी दुआ 

ھُوَالَّذِیْٓ اَنْشَاکُمْ وَجَعَلَ لَکُمُ السَّمْعَ وَالْاَبْصَارَوَالْاَفْءِدَۃَ قَلِیْلاًمَّاتَشْکُرُوْنَ۔

हुवल्लज़ी अंशाकुम वजअल लकुमुस्समाअ वलअबसरा वलअफ ऐदाता क़लीलम्मा तशकुरुन

जब भी आपके दांत या मसूड़ों में दर्द हो तो ये दुआ 14 मर्तबा पढ़ कर पानी में दम करके वह पानी पी लें। इंशाल्लाह दांत में दर्द से आपको छुटकारा मिल जायेगा और दांत में पनप रहे कीड़े और बीमारियां दूर हो जाएगी।

किडनी में पथरी होने पर उससे छुटकारे की इस्लामी दुआ 

जिस किसी शख्स को किडनी में पथरी हो गयी हो और वह उस पथरी के दर्द से बहुत परेशान रहता हैं तो उसे चाहिए की नीचे बताई दुआ को एक कागज़ पर लिख कर एक बोतल में पानी भरकर वह कागज़ उस पानी की बोतल में डाल दे और रोज़ उस बोतल से पानी पिए जब तक की वह पथरी निकल न जाये। इंशाल्लाह आपकी पथरी निकल जाएगी और आपको दर्द से भी छुटकारा मिल जायेगा पथरी के दर्द से छुटकारे की दुआ इस तरह हैं

 رَبُّنَا اللَّهُ الَّذِي فِي السَّمَاءِ تَقَدَّسَ اسْمُكَ أَمْرُكَ فِي السَّمَاءِ وَالْأَرْضِ كَمَا رَحْمَتُكَ فِي الْأَرْضِ وَاغْفِرْ لَنَا حَوْبَنَا وَخَطَايَانَا أَنْتَ رَبُّ الطَّيِّبِينَ فَأَنْزِلْ شِفَاءً مِنْ شِفَائِكَ وَرَحْمَةً مِنْ رَحْمَتِكَ عَلَى هَذَا الْوَجَعِ

रब्बूनल्लाहुल्लाजी फिस्समाए तकददस असमुका अमरुका फिस्समाए वलअर्दे कमा रहमतुका फीलअर्दे वाग्फिरलना हुबाना वखतयाना अंता रब्बूतैना फंजील शिफाअन मिन शिफाऐका वरहमतन मिन रहमतेका अला हाज़ा अलवाजाई

पेट में दर्द से छुटकारा की इस्लामी दुआ 

जिस किसी शख्स को अक्सर पेट में दर्द की शिकायत रहती हैं चाहे वह ख़राब खाने की वजह से हो या औरतों में पीरियड की वजह से हो या पेट में गैस की वजह से तो वज़ू करके एक गिलास में पानी लें और नीचे बताई दुआ को 3 मर्तबा पढ़ कर उस पानी में दम करके वह पानी पिए  इंशाल्ल्लह पेट दर्द से छुटकारा मिलेगा। दुआ इस तरह हैं 

لَا فِيهَا غَوْلٌۭ وَلَا هُمْ عَنْهَا يُنزَفُونَ 

लाफीहा गवलु वलहूम अन्हा युन्जाफुंना

चमड़ी (Skin) की बीमारी से निजात की इस्लामी दुआ 

जिस किसी शख्स को चमड़ी से जुडी कोई भी बीमारी हो जैसे फोड़े फुंसी या कोई और इन्फेक्शन तो नीचे बताई दुआ को पढ़े और अल्लाह से उससे शिफा की दुआ मांगे। इंशाल्लाह चमड़ी की बीमारी से आपकी निजात मिलेगी। ये दुआ हज़रत अय्यूब अलैहिस्सलाम पढ़ते थे। जब उनको चमड़ी से जुड़ी एक गंभीर बीमारी हो गयी थी। उन्होंने कई सालों तक इस दुआ को पढ़ा और एक दिन उनकी वह बीमारी दूर हो गयी थी। उनका उस बीमारी का किस्सा हमने हमारे पुराने ब्लॉग में बताया हैं आप जाकर पढ़ सकते है या आप उनकी बीमारी का किस्सा पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं चमड़ी की बीमारी से निजात की दुआ इस तरह हैं 

رَبَّهُ أَنِّي مَسَّنِيَ الضُّرُّ وَأَنتَ أَرْحَمُ الرَّاحِمِينَ

रब्बी अन्नी मस्सानि यददूर्रू वा अन्ता अरहामुररहीमीन

अगर इस तरह की कोई बीमारी कई इलाज के बावजूद सही नहीं हो रही हैं तो आप ये दुआ को दिल से पढ़े और अल्लाह से शिफा के लिए दुआ मांगे इंशाअल्लाह बीमारी दूर हो जाएगी यही दुआ कैंसर के मरीज़ो को भी पढ़नी चाहिए इस दुआ की बरकत से कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी से भी आपको शिफा मिलेगी। 

आखरी पैगाम 

हर बीमारी से बचने के लिए हमें अहतियात रखना बहुत ज़रूरी हैं जैसे की खान पान का मौसम का वगैरह। ये सभी चीज़ो के पहले ध्यान देना ज़रूरी हैं बीमारी अगर अल्लाह ने दी हैं तो उससे शिफा अता फरमाने वाला भी अल्लाह ही हैं। बस हमें ध्यान रखना हैं की हम हमारी सेहत से कोई खिलवाड़ न करें। खुद को कभी तकलीफ न दे। अल्लाह ने ये ज़िन्दगी ख़ुशी से जीने अल्लाह की इबादत करने और अच्छे काम करने के लिए दी हैं लेकिन फिर भी कुछ लोग गलत तरीको से ज़िन्दगी जीते हैं। कोई बेवजह टेंशन पाल लेता है तो कोई बिना कुछ सोचे हर कुछ खा लेता हैं। जिसके अंजाम बहुत बुरे होते हैं। टेंशन लेने से भी तरह तरह की बीमारियां बदन में पैदा हो जाती हैं और गलत खानपान से भी दिल और पेट की बीमारियां जन्म लेती हैं। 

बेहतर हैं आप पहले इन चीज़ो का ध्यान रखे। हम यह नहीं कहते की बीमार होने पर कोई दवाइयां न ले और सिर्फ इन इस्लामिक दुआओं से अपनी बीमारियों को दूर करें। जहाँ दवाई की ज़रूरत हैं वहां दवाई लेना भी जायज़ हैं। दवाइयां अगर असर नहीं कर रही या आप दवाइयां लेना नहीं चाहते तो आप इन दुआओं की मदद से उन तमाम बीमारियों का ख़ात्मा कर सकते है। ख़ैर जाते जाते यही नसीहत देंगे की अपना ध्यान रखे, अल्लाह से अपने गुनाहो की तौबा हर वक़्त करें गुनाह करने से बचे और अल्लाह की इबादत करते रहे। 

सूरह मुल्क क्या हैं? इसके पढ़ने के क्या क्या फायदे हैं?

सूरह मुल्क क्या हैं? इसके पढ़ने के क्या क्या फायदे हैं?


सूरह मुल्क
क़ुरान शरीफ की 67 वीं सूरह हैं यह क़ुरान शरीफ के 29 वें पारे में मौजूद हैं। इस सूरह में कुल 30 आयतें हैं। इस सूरह में कुल शब्दों की संख्या 337 तथा कुल अक्षरों की संख्या 1316 है। सूरह मुल्क मक्का में नाज़िल हुई थी इसलिए इसे मक्की सूरह भी कहा जाता हैं। 

सूरह मुल्क में किस बात पर ज़ोर दिया गया हैं? 

इस सूरह में अल्लाह ने इस बात पर ज़ोर दिया हैं की कोई भी इंसान अपनी मनमानी नहीं कर सकता यानि इंसान अपनी इच्छा दूसरे लोगों पर थोप नहीं सकता। उससे ज़बरदस्ती काम नहीं करवा सकता। वह सिर्फ हुक्म दे सकता हैं। अगर कोई हुक्म नहीं माने तो कोई उससे ज़बरदस्ती नहीं कर सकता।

सूरह मुल्क पढ़ने के क्या फायदे हैं?

  • क़यामत के दिन सूरह मुल्क पढ़ने से आपके गुनाह माफ़ हो जाते हैं।
  • एक हदीस के मुताबिक पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने लोगों से हर रात को बिस्तर पर जाने से पहले सूरह मुल्क को पढ़ने की नसीहत दी थी उन्होंने कहा था की ऐसा करने से आपको कब्र के अज़ाबों से निजात मिलेगी।
  • सूरह मुल्क पाबन्दी से पढ़ने वाले शख्स के लिए जन्नत के दरवाज़े खुल जाते हैं। 
  • सूरह मुल्क रोज़ाना पाबन्दी से पढ़ने वाला शख्स अल्लाह की तरफ से इनाम का हक़दार होगा। 
  • सूरह मुल्क हमारे ईमान की हिफाज़त करती हैं और हमें सही रास्तों पर जाने की नसीहत देती हैं। 
  • जो शख्स हर रात को सूरह मुल्क पढ़ कर सोयेगा उसकी हिफाज़त एक फरिश्ता करेगा वह रात भर उसे बुरे वसवसे से बचाएगा। 
  • सूरह मुल्क पढ़ने वाला शख्स कभी गुमराह नहीं होगा अल्लाह उसे गुमराही से बचाएगा।
  • सूरह मुल्क पढ़ने से आपकी दुआ जल्द कबूल होती हैं। 
  • ज़िन्दगी में हौसला बढ़ाने के लिए रोज़ाना सूरह मुल्क की तिलावत किया करे। 
  • सूरह मुल्क को पढ़ने से आपका दिल और दिमाग शांत रहता है दिमाग से टेंशन निकल जाती हैं और ज़िन्दगी में खुशहाली आती हैं।

सूरह मुल्क को कैसे याद किया जाये?

वैसे तो क़ुरान की कोई भी आयत या सूरह को याद करना मुश्किल नहीं हैं। हर सूरह को याद करना आसान हैं बशर्ते आप का दिल और दिमाग सिर्फ अल्लाह की तरफ होना चाहिए। क़ुरान की हर सूरह को अगर कोई शख्स दिल से पढता हैं तो वह सूरह उसको अपने आप याद हो ही जाती हैं। फिर भी हम आपको बता देते हैं की सूरह मुल्क को याद कैसे कर सकते हैं? सबसे पहले तो सूरह मुल्क पढ़ने का एक वक़्त तय कीजिये ऐसा वक़्त जिसमे आपके दिमाग में कोई दूसरी चीज़ न चल रही हो। ज़्यादातर ऐसा वक़्त रात में होता हैं या सुबह जल्दी का वक़्त होता हैं फिर भी आप अपनी सहूलियत के हिसाब से ऐसा कोई एक वक़्त निकाल लें। उस वक़्त पर रोज़ाना सूरह मुल्क की तिलावत करे और उसकी हर लाइन को धीरे धीरे तसल्ली से पढ़े। इंशाल्लाह आपको सूरह मुल्क जल्द ही याद हो जाएगी। इसके अलावा आप दिन में कभी भी सूरह मुल्क को सुना करे इससे आपको इस सूरह को याद करने में और आसानी हो जाएगी।

सूरह मुल्क हमें क्या शिक्षा देता हैं?

सूरह मुल्क में बहुत सारी अच्छी बातें बताई गयी है लेकिन इसके साथ साथ उसमें इंसानो के लिए एक सबक भी बताये गए हैं। सूरह मुल्क में बताया गया हैं की अल्लाह ही इस दुनिया का मालिक हैं। अल्लाह ने ही इस दुनिया को बनाया हैं। उसी के सहारे ये दुनिया चल रही हैं। हवा पानी खाना सभी का इंतेज़ाम वही कर रहा हैं। अगर वो नाराज़ हो गया तो पल भर में इस दुनिया को तबाह कर सकता हैं। सूरह मुल्क इंसानो को यह नसीहत देता हैं की वह अल्लाह के बताये रास्तों पर चले और गलत कामों से बचे नहीं तो इसका अंजाम बहुत बुरा होगा। कुलमिलाकर सूरह मुल्क में ये हिदायत दी गयी है की अल्लाह ही सबका मालिक हैं। इंसानो को उसके बताये हुक्मो का पालन करना चाहिए नहीं तो अल्लाह सब कुछ ख़त्म कर देगा। 

सूरह मुल्क में यह भी बताया गया हैं की जो लोग अच्छा काम करते हैं और दुनिया में रहते अल्लाह से डरते हैं उन्हें इनाम दिया जायेगा और अल्लाह पर उनकी रहमत बरसेगी और जो बुरा काम करेगा उसको सज़ा भी मिलेगी। अल्लाह सूरह मुल्क में ऐसे लोगों को चेतावनी देता हैं जो अल्लाह को नहीं मानते और बुतों की पूजा करते हैं ऐसे लोग भयंकर अज़ाब का शिकार होंगे। 

आखरी नसीहत 

सूरह मुल्क पढ़ कर हमें ये अंदाज़ा तो लग ही जाता हैं की अल्लाह ही सबसे बड़ा हैं इंसान उसके सामने कीड़े मकोड़ो की तरह हैं। अल्लाह चुटकी में इस दुनिया को बना भी सकता हैं और बर्बाद भी कर सकता हैं। आज हम देखते हैं की फला जगह पर भूकंप आया तो हज़ारों लाखों लोग मारे गए आप सोच सकते हैं की पल भर में बड़ी बड़ी इमारतें मिट्टी में मिल जाती हैं। लोग कुछ ही मिनटों में दम तोड़ देते हैं। ऐसी मुसीबतों कभी भी कहीं भी आ सकती हैं इसलिए हमें अपने गुनाहो से माफ़ी मांगना चाहिए। सिर्फ अल्लाह के बताये रास्तों पर चलना चाहिए अगर हम अमीर इंसानों को ही सब कुछ मानने लगेंगे तो अल्लाह हम से नाराज़ हो जायेगा और हम उसके अज़ाब का शिकार कभी भी हो सकते हैं। इसलिए हमें सिर्फ अल्लाह की इबादतों पर ध्यान देना चाहिए। अपने गुनाहो की माफ़ी मांगनी चाहिए। दुनियावी ज़िन्दगी ही सब कुछ नहीं हैं हमें अपनी आख़िरत को भी याद करना चाहिए ताकि हम जहन्नम की अज़ाबो से बच सके।

जानिए आयते करीमा पढ़ने के फायदे और इसका महत्व के बारे में

इस्लाम धर्म में कुरआन को विशेष महत्त्व दिया गया है। कुरआन की हर आयत एक दिशा, एक मार्गदर्शन और एक रौशनी है जो हमें सच्चाई की ओर ले जाती है। ऐ...

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