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शबे क़द्र की दुआ नमाज़ और इबादत (Shab-e-Qadr ki Dua Namaz or Ibadat)

शबे क़द्र की दुआ नमाज़ और इबादत  (Shab-e-Qadr ki Dua Namaz or Ibadat)

पिछली पोस्ट में हमने लैलतुल कद्र या शबे क़द्र के बारे में बताया था। आज हम इस रात की इबादतों के बारे में बात करेंगे। इस रात की खास इबादत क़ुरान की तिलावत और नफ्ली नमाज़े व ज़िक्र हैं। इसलिए कुछ वक़्त तिलावत में बिताये कुछ नफ्ली नमाज़े पढ़े। और कुछ देर इस रात की खास दुआ अल्लाहुम्मा इन्नका अफुउन तुहिब्बुल अफ़्व फअफ़ो अन्नी पढ़े।

शबे क़द्र की नफ़्ल नमाज़े 


4 रकात नमाज़ इस तरह पढ़े की हर रकात में एक बार अल्हम्दो शरीफ एक बार इन्ना अन्ज़लना और 27 बार कुल्हुवल्लाह शरीफ पढ़े। इंशाल्लाह अल्लाह करीम आपको गुनाहो से पाक फरमा देगा।

कम से कम 2 रकात ही खुलूस के साथ इस तरह पढ़े की हर रकात में सूरह फातेहा के बाद 1 बार इन्ना अन्ज़लना और 3 बार कुल्हुवल्लाह शरीफ पढ़े। इंशाल्लाह आपको शबे कद्र की बरकत हासिल होगी।

हज़रत अली शेरे खुदा फरमाते हैं, जो आदमी इस रात 7 बार सूरह अल क़द्र इन्ना अन्ज़लना पढ़ेगा। अल्लाह पाक उसे बलाओं और मुसीबतो से बचाता हैं, और 70 हज़ार फ़रिश्ते उसके लिए जन्नत की दुआ करते हैं।

हज़रत बीबी आइशा फरमाती हैं मैने अर्ज़ किया या रसुल्लाह, शबे क़द्र की रात क्या दुआ माँगे। आपने फ़रमाया अल्लाहुम्मा इन्नका अफुउन तुहिब्बुल अफ़्व फअफ़ो अन्नी

2 रकात नमाज़ इस तरफ पढ़े की हर रकात में सूरह फातेहा के बाद 7 बार कुल्हुवल्लाह शरीफ और सलाम फेरने के बाद 70 बार अस्तग़फिरउल्लाह व अतूबो इलैहि पढ़े। अल्लाह पाक उसे और उसके माँ बाप के गुनाहो को बक्श देगा।

4 रकात नमाज़ इस तरफ पढ़े की हर रकात में सूरह फातेहा के बाद 3 बार इन्ना अन्ज़लना और 7 बार कुल्हुवल्लाह शरीफ पढ़े। इंशाल्लाह मौत के वक़्त की बेचैनी से महफूज़ रहेंगे।

4 रकात नमाज़ इस तरह पढ़े की हर रकात में अल्हम्दो शरीफ के बाद एक बार इन्ना अन्ज़लना और 27 बार कुल्हुवल्लाह शरीफ पढ़े। इस नमाज़ की बरकत से गुनाह माफ़ हो जायेंगे और अल्लाह पाक आपको जन्नत में आला मक़ाम अता फरमाएगा।

4 रकात नमाज़ इस तरह पढ़े की हर रकात में अल्हम्दो शरीफ के बाद 3 बार इन्ना अन्ज़लना और 50 बार कुल्हुवल्लाह शरीफ पढ़े और सलाम फेरने के बाद सजदे में सर रखकर एक बार सुब्हानल्लाहे वल्हम्दुलिल्लाहे व लाइलाहा इल्लल्लाहो वल्लाहो अकबर पढ़े। इंशाल्लाह आपको इस मुबारक रात की बेपनाह नेअमते नसीब होगी। इस रात 2 रकात तयीहतुल वुदु और 2 रकात तहियतुल मस्जिद पढ़ना भी बहुत सवाब रखता हैं।

इस रात अगर वक़्त मिले तो कम से कम एक बार सलातुल तस्बीह ज़रूर पढ़ने की कोशिश करे यह इतनी फ़ज़ीलत वाली नमाज़ हैं। अगर यह नमाज़ ज़िन्दगी में अगर एक बार भी पढ़ ली तो इसकी फ़ज़ीलत से इंशाल्लाह बन्दे के गुनाह माफ़ हो जाते हैं। लिहाज़ा कोशिश करे की यह नमाज़ रोज़ न पढ़ सके तो हफ्ते में एक बार वो भी न हो तो महीने में एक बार तो ज़रूर पढ़े।

सलातुल तस्बीह नमाज़ का तरीका

4 रकात नफ़्ल नमाज़ की नियत करे और नियत करने के बाद 15 बार सुब्हानल्लाहे वल्हम्दुलिल्लाहे व लाइलाहा इल्लल्लाहो वल्लाहो अकबर पढ़े अल्हम्दो और सूरत पढ़ने के बाद रुकू में जाने पहले यही तस्बीह 10 बार पढ़े रुकू में सुब्हान रब्बियल अज़ीम पढ़ लेने के बाद 10 बार रुकू से उठने के बाद सजदे में जाने से पहले 10 बार सजदे में जाने पर सुब्हान रब्बियल आला पढ़ लेने के बाद 10 बार फिर दूसरे सजदे में 10 बार यही तस्बीह पढ़े इस तरह हर रकात में 75 बार यह तस्बीह पढ़ी जाएगी और 4 रकात में 300 बार हो जाएगी।

अल्लाह पाक हम मुसलमानो को इस मुबारक रात की बरकतो से नवाज़े और अपनी इबादत की तौफीक बक्शे आमीन।

लैलतुल क़द्र या शबे क़द्र क्या हैं? What is Lailatul Qadr or Shabe Qadr

लैलतुल क़द्र या शबे क़द्र क्या हैं? What is Lailatul Qadr or Shab-e-qadr

रमज़ान महीने की एक रात को लैलतुल कद्र कहा गया हैं। जो खैर व बरकत के एतबार से हज़ार महीनों से भी अफ़ज़ल रात हैं। उसी लैलतुल कद्र को कहीं कहीं शबे कद्र भी कहा जाता हैं। तो कुछ जगह इसे 27 वी शब भी कहा जाता हैं। हदीस के मुताबिक यह रात रमज़ान की 21, 23, 25, 27, 29 वी रात में से कोई एक रात हैं। कुछ बुज़ुर्गो ने 27 वी रात को ही लैलतुल कद्र माना हैं।

इस रात को लैलतुल कद्र इसलिए फ़रमाया गया हैं क्यूंकि इसी रात साल भर के लिए आर्डर जारी होते हैं। ज़िम्मेदार फ़रिश्ते अपने अपने रजिस्टरों में अगले साल होने वाले सारे काम लिख लेते हैं। और अल्लाह के हुक्म के मुताबिक अपने अपने काम अंजाम देते रहते हैं। इसी रात हज़रत आदम सफ़ीयुल्लाह अलैहिस्सलाम का बदन बनाने का सामान आसमान पर जमा किया जाने लगा। इसी रात हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम आसमान पर उठाये गए और इसी रात बनी इसराइल कौम की तौबा क़बूल हुई।

यह रात इबादत की लिए खास हैं। बुखारी शरीफ की हदीस हैं अल्लाह के रसूल फरमाते हैं जो आदमी ईमान व खुलूस के साथ इस रात जागकर अल्लाह की इबादत करेगा या कहे नमाज़ क़ुरान पढ़ेगा। अल्लाह पाक अपने करम से उसके साल भर के गुनाह माफ़ फ़रमा देगा। इस लिए इस कीमती रात को यूं ही नहीं बिताना चाहिए। इस रात इबादत करने वाले को 83 साल 4 महीने से भी ज़्यादा इबादत करने का सवाब मिलता हैं। अल्लाह के रसूल फरमाते हैं जो आदमी इस रात महरूम रह गया या कहे जो आदमी इस रात इबादत नहीं कर सका गोया वह हर तरह के सवाब से महरूम रह गया।

आजकल देखा जाता हैं की कुछ नौजवान इस रात इबादत करने की बजाय सड़को पर तेज़ रफतार में मोटरबाइक दौड़ाते हुए नज़र आते हैं। आमजन को परेशान करते हैं। मस्जिद में इबादत करने की बजाय बाहर बैठकर सिगरेट बीड़ी फूँकते नज़र आते हैं। कुछ नौजवान आस पास की दरगाह में जाकर बेमतलब वक़्त ज़ाया करते हैं। और सेहरी होने तक ऐसे ही पूरी रात निकल लेते हैं। ऐसे लोग अल्लाह की नज़र में बहुत बड़े गुनहगार कहलायेंगे जो इबादत करने की बजाये इस तरह इस रात को इस तरह बर्बाद कर देते है। अल्लाह ऐसे लोगो को हिदायत दे।

इस लिए रमज़ान के मुबारक महीने और इस महीने की इस मुबारक रात की कद्र कीजिये इस रात ज़्यादा से ज़्यादा इबादत करके अपने गुनाहो से माफ़ी मांगे। इस रात बाज़ारो में आवारा गर्दी करने या घूमने की बजाये नौजवानो को मस्जिद या अपने घरों में इबादत करके अल्लाह से अपने गुनाहो की माफ़ी और आगे की ज़िन्दगी अच्छे से गुज़ारने,बीमारियों,मुहताजी से बचने अमन की ज़िन्दगी गुज़ारने की दुआ मांगनी चाहिए। अल्लाह हम सब को इस रात में इबादत करने की तौफीक अता फरमाए आमीन।

सदक़ा और खैरात क्या हैं? (What is Sadqa and khairat)

सदक़ा और खैरात क्या हैं? (What is Sadqa and khairat)

ज़कात फ़ितरा के अलावा नफ्ली तौर पर इबादत की नियत से अल्लाह की रज़ा के लिए अल्लाह के बन्दों के लिए हम जो कुछ खर्च करते हैं, उसे सदक़ा खैरात कहा जाता हैं। यही नहीं बल्कि इस्लाम में तो तकलीफ पहुँचाने वाली किसी चीज़ को रास्ते से हटा देने को भी सदक़ा कहा जाता है। सदक़ा की तौफीक बन्दों के लिए एक इनाम हैं। क्यूंकि इस की बरकत से अल्लाह पाक हमें बहुत सारी बलाओं से महफूज़ रखता हैं, बचाता हैं, हमारी हिफाज़त फरमाता हैं। यही नहीं बल्कि इससे बन्दे के गुनाह भी माफ़ हो जाया करते हैं। अल्लाह के रसूल पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया सदक़ा इस तरह गुनाहो को बुझा देता हैं जिस तरह पानी आग को बुझा देती हैं।

अल्लाह की दी हुई रोज़ी और दौलत को दुसरो पर खर्च करना कोई मामूली या आसान काम नहीं बल्कि बड़े दिल गुर्दे की बात हैं। आदमी के खुद के इतने काम और ज़िम्मेदारियां हैं की उन्हें पूरा करना आज के इस महंगाई के दौर में कितना बड़ा काम हैं। फिर उसके ऊपर गरीब मजबूरो की और मदद करना ये और बड़ी बात हैं। आदमी अगर हिम्मत करके यह नेक काम कर गुज़रता हैं, और लगातार करते रहता हैं तो उसके बदले अल्लाह पाक उसकी भी सारी ज़रूरते पूरी फरमाता हैं। और अल्लाह पाक उसकी इतनी मदद करता हैं जितनी मदद शायद ही उस शख्स ने कभी सोची होगी और सबसे बड़ी बात तो यह हैं की मौत के वक़्त उसकी रूह बड़ी आसानी से कब्ज़ हो जाती हैं। और मरने के बाद अल्लाह के दरबार में पेशी के मौके पर अल्लाह पाक उससे राज़ी होगा।

हज़रत अबू हुरैरा रदियल्लाहो अन्हो का बयान हैं एक गुनहग़ार औरत थी। वह एक कुएं से गुज़रने लगी तो वहां एक कुत्ता बैठा था, जो प्यास के मारे मरने जैसा हो रहा था। औरत को उसकी हालत पर तरस आ गया। वह रुक गई। किसी तरह बड़ी मशक्कत(मेहनत) से उस औरत ने कुँए में से पानी निकाला, और उस कुत्ते की प्यास बुझाई। अल्लाह को उस गुनहग़ार औरत की यह बात इतनी पसंद आयी की इस सदके के बदले अल्लाह पाक ने उसके सारे गुनाहो को माफ़ करके उसे बख्श दिया।

अल्लाह की बनायीं हर मखलूक चाहे इंसान हो या जानवर के काम आना, उनकी ज़रूरते पूरी करना भी एक सदक़ा हैं। इस्लाम में इसे भी इबादत का दर्जा दिया गया हैं। इसीलिए अल्लाह के रसूल ने मुसलमानो को दुखियो के काम आने उनकी मदद करने की ताकीद फ़रमाई हैं। हज़रत अबू सईद खुदरी रदियल्लाहो अन्हो का बयान हैं की अल्लाह के रसूल पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया जो आदमी अपने किसी भाई को जिस के बदन पर ज़रूरत के मुताबिक कपड़ा न हो, उसे कपड़ा पहनायेगा या देगा। अल्लाह पाक उसे जन्नत का हर जोड़ा पहनायेगा। और जो किसी भूके भाई को खाना खिलायेगा अल्लाह पाक उसे जन्नत के मेवे खिलायेगा। जो किसी प्यासे को पानी पिलायेगा अल्लाह पाक उसे जन्नत का मोहर बंद शरबत पिलायेगा।

आजकल के लोग बस पैसा जमा करने में लगे हैं। एक रुपया गरीबो पर खर्च करने में दस बार सोचते हैं। लाखो रूपए कमाते हैं मगर अल्लाह की राह में खर्च करने में कतराते हैं। वह सोचते हैं की ये जमा पैसा ज़िन्दगी और अच्छी जीने में काम आएगा। सोचो अगर ज़िन्दगी ही न रहे या किसी खतरनाक बीमारी में ही वह सारा पैसा मिनटों में खत्म हो जाये, यह बात कोई नहीं सोचता। खैर क्या हमने कभी सोचा अल्लाह पाक हमारी हर छोटी छोटी ज़रूरते पूरी फरमाता रहता हैं। हमें पानी देता हैं, खाना देता हैं, साँस लेने के लिए हवा देता हैं, जिससे हम ज़िंदा हैं। अगर अल्लाह चाहे तो एक पल में बारिश बंद कर दे, जिससे नदी तालाब सुख जाये और खाना-पानी मिलना बंद हो जाये लेकिन अल्लाह पाक ने कभी ऐसा कुछ नहीं किया क्यूंकि वो बड़ा मेहरबान और रहम करने वाला हैं। इसी तरह इंसान को भी सोचना चाहिए की अगर खुदा हमे इतना दे रहा हैं तो हम उसके बन्दों को कुछ देने में क्यों पीछे रहे। अगर हम अपने रब की रज़ा के लिए किसी की मदद करेंगे तो हमारा रब भी बहुत खुश होगा और हमें हमेशा दुनिया और आख़िरत की नेअमते अता फरमाता रहेगा।

इंसान की यह सोच गलत हैं की हम जो कमाते हैं, वह सब हमारा ही हैं। ये सोचो की हमें ऊपर वाला रिज़्क़ दे रहा हैं अगर वो बंद कर दिया तो क्या होगा। हमें चाहिए की हम सब का हक़ अदा करने की कोशिश करे। अल्लाह के प्यारे रसूल पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया किसान खेती करता हैं, उसकी फसल में से बहुत से दाने परिंदे चरिन्दे खा जाते हैं। इससे किसान को मायूस नहीं होना चाहिए क्यूंकि जो कुछ जानवर खा जाते हैं। उसके बदले किसान को सदके का सवाब मिलता हैं। जो बहुत बड़ी बात हैं, इसलिए हमें सदक़ा खैरात करते रहना चाहिए। अल्लाह पाक हम सब को सदक़ा खैरात करने की तौफीक अता फरमाए  आमीन । 

बेनमाज़ी की सजा अज़ाब और अंजाम (Benamazi Ki Saza-Azab-Or-Anjam)

बेनमाज़ी की सजा अज़ाब और अंजाम (Benamazi Ki Saza,Azab or Anjam)

अल्लाह के प्यारे रसूल पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाते हैं, मुस्लमान और काफिर के बीच फर्क करने वाली चीज़ नमाज़ हैं। जिसने जान बुझ कर नमाज़ को छोड़ दिया गोया उसने काफिर का काम किया। एक और हदीस में प्यारे रसूल पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाते हैं, एक रात मेरे पास दो फ़रिश्ते आये और मुझे अपने साथ लेकर गए। मैंने रास्ते में देखा की एक आदमी ज़मीन पर लेटा हुआ हैं, और एक दूसरा आदमी एक बड़े पत्थर से उसे मार रहा हैं। उसका सिर टुकड़े टुकड़े हो जाता हैं। और पत्थर दूर जा गिरता हैं। जब वह पत्थर लेने के लिए जाता और वापिस आता हैं। इतनी देर में उसका सिर फिर सही हो जाता हैं। वह आदमी फिर अपनी पूरी ताकत से उसके सिर पर पत्थर मारता हैं। इसी तरह वह मारता रहता हैं। मैंने फ़रिश्ते से पूछा यह कौन आदमी हैं? इसका जुर्म क्या हैं? फ़रिश्ते ने जवाब दिया, यह आदमी नमाज़ नहीं पढता था। इसको इसकी सज़ा मिल रही हैं।

प्यारे दीनी भाइयो गौर करो, मस्जिदों में अज़ान की आवाज़ हमारे कानो तक पहुँचती हैं, लेकिन हम सारा काम काज छोड़ कर मस्जिद पहुंचने के बजाय आराम से बैठे टेलीविज़न देखते रहते हैं। अज़ान हो रही होती हैं और हमारा टेलीविज़न चल रहा होता हैं। नमाज़ हो रही हैं और हम फिल्मे, गाने, कार्यक्रम देखने में खोये रहते हैं। जमाअत हो रही होती हैं और हम सड़को, होटलो, चौराहों पर बैठे गप्पे मार रहे होते हैं। न तो हमें अज़ान और नमाज़ की परवाह हैं, और न ही मस्जिद का एहतराम होता हैं।

ताज्जुब की बात तो यह की रमज़ान के महीने में तक ऐसा देखना को मिलता हैं। कुछ लोग इस्लामी लिबास पहन कर घर से निकल जाते हैं लेकिन मस्जिद में नमाज़ पढ़ने की बजाय किसी और महफ़िल में लगे रहते हैं, और वहाँ फ़िज़ूल की दुनियावी बातें करते हैं।

हज़रत औबादा सहाबी फरमाते हैं,अल्लाह के रसूल पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझे 7 चीज़ो की नसीहत फ़रमाई थी। जिसमे से दो चीज़े यह हैं की -शिर्क मत करना नहीं तो तुम्हारे बदन की बोटी बोटी कर दी जाएगी। दूसरा जान बुझ कर नमाज़ न छोड़ना, क्यूंकि ऐसा आदमी इस्लाम से ख़ारिज हो जाता हैं।

ज़रा गौर करो ऐ मुसलमानो जान बुझ कर नमाज़ छोड़ने वाले हम कैसे मुस्लमान कहलाने के हक़दार हो सकते हैं। जब कभी लड़ने की बात आती हैं तो हम पीछे नहीं रहते लेकिन दीन के कामो से दूर क्यों? अल्लाह के वास्ते ऐ मुसलमानो अपना और नमाज़ का रिश्ता मज़बूत कर लो। मस्जिदों को अपने सजदों से आबाद कर दो। अब भी मौका हैं सच्चे दिल से तौबा करके अपने रब को राज़ी कर लो क्यूंकि अगर रब राज़ी हो गया तो दुनिया की कोई भी मुसीबत तुम पर नहीं आ सकती। गरीबी, बेरोज़गारी, मुसीबतो, रंज और गम लाचारी का एक ही इलाज हैं और वो हैं नमाज़ ।

अल्लाह हम सब को पंजवक्ता नमाज़ पढ़ने की तौफीक अता फरमाए आमीन।

जहन्नम में अल्लाह का अज़ाब (Jahannam Me Allah Ka Azab)

जहन्नम में अल्लाह का अज़ाब (Jahannam Me Allah Ka Azab)
आज के ब्लॉग में हम आपको कुछ भयानक जहन्नम के अज़ाबो के बारे में बताएँगे जो जहन्नम में दिए जाते हैं इन अज़ाबो के ज़िक्र हदीसों में भी आया हैं। ये अज़ाब उन लोगो को दिए जाते हैं जो अल्लाह के बताये रास्तो पर नहीं चलते और दुनियावी ज़िन्दगी में तरह तरह के गुनाह कर बैठते हैं।  इन्ही गुनाहों का सज़ा जहन्नम में ऐसे अज़ाबों के ज़रिये दी जाती है।

लिहाज़ा नीचे बताये गए अज़ाबों को ध्यान से पढ़े और गुनाहों से बचे। 

खुनी दरिया का अज़ाब
कुछ जहन्नम वालों को खून के दरिया में डाल दिया जायेगा। तो वह जहन्नमी तैरते हुए किनारे तक आएंगे। उस वक़्त एक फरिश्ता एक बड़ा पत्थर इस ज़ोर से उनके मुँह पर मारेगा की वह फिर बीच दरिया में पहुंच जायेंगे। बार बार उन्हें यही अज़ाब दिया जाता रहेगा। यह वह लोग होंगे जो सूद(ब्याज) की कमाई खाते थे।
बुख़ारी शरीफ I 185

गलफड़े चीरने का अज़ाब
कुछ लोगो को फ़रिश्ते जहन्नम में सुलाकर उनके मुँह में संडासी डालेंगे। और उसे फैलाएंगे तो सिर के पीछे तक उनका मुँह फट जायेगा। इसी तरह दूसरा गलफड़ा भी फाड़ेंगे इतनी देर में पहला वाला सही होकर अपनी जगह आ जायेगा तो फिर उसे फाड़ेंगे। इसी तरह यह अज़ाब चलता रहेगा। यह सज़ा झूट बोलने वालों को मिलेगी।   बुख़ारी शरीफ I 185

पत्थर मारने का अज़ाब 
कुछ जहन्नमियों को फ़रिश्ते सुलाकर उनके सिर पर ज़ोर ज़ोर से पत्थर मारेंगे। इतना ज़ोर से की उनका सिर चूर चूर हो जायेगा और पत्थर दूर जा गिरेगा। जब फरिश्ता पत्थर उठाने जायेगा और वापिस आने तक जहन्नमी का सिर ठीक हो चूका होगा। फिर उसी तरह पत्थर मारकर सिर कुचल देगा लगातार यही अज़ाब होता रहेगा।    बुख़ारी शरीफ I 185

मुँह नोचने का अज़ाब
मेराज की रात प्यारे रसूल पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जन्नत जहन्नम की सेर करते हुए गुज़र रहे थे। आपने देखा की जहन्नम में कुछ लोग ताम्बे के नाखूनों से अपना सीना और चेहरा नोच रहे है। आपने हज़रत जिब्राइल से जब उनके बारे में पूछा तो उन्होंने बताया की यह लोगो की ग़ीबत करने वाले उनकी इज़्ज़त से खेलने वाले वाले लोग हैं। जिसकी सजा इन्हे मिल रही हैं।     मिश्कात II 429

सांप बिच्छू का अज़ाब 
हदीस शरीफ में हैं जहन्नम में ऊँटो के बराबर बड़े बड़े सांप हैं। वह इतने ज़हरीले होंगे की एक बार काटेंगे तो 40 साल तक ज़हर के दर्द का असर खत्म नहीं होगा। इसके अलावा वहाँ खच्चर जितने बड़े बिच्छू होंगे जो डांक मारते रहेंगे। उनके एक बार डंक मारने की तकलीफ भी 40 बरस तक रहेगी।
कुछ जहन्नमियों के गले में सांपो की माला पहना दी जाएगी यह ज़हरीले सांप उन्हें बराबर काटते रहेंगे।     मिश्कात II 429

हलक में फंसने वाले खानो का अज़ाब 
कुछ जहन्नमियों को हलक में फंसने वाला खाना खिलाया जायेगा। उससे उनका दम घुटने लगेगा तो वह पानी मांगेंगे। उस वक़्त उनके सामने इतना गर्म पानी पेश किया जायेगा की मुँह के करीब बर्तन के पहुचंते ही उसकी गर्मी से चेहरे की पूरी खाल पिघलकर कर उस बर्तन में गिर पड़ेगी।              मिश्कात II 504

क़ुरान मजीद में हैं की दोज़ख वालों को थूहड़ खिलाया जायेगा। वह इतना बदबूदार होगा की अगर एक कतरा दुनिया में गिर जाये तो खाने पीने की सारी चीज़े कड़वी व बदबूदार हो जाये।

गर्म पानी और पीप का अज़ाब 
जहन्नम वालों को गर्म पानी जो जैतून के तेल की तलहट की तरह गन्दा होगा। वह उन्हें पीना पड़ेगा जो मुँह के करीब लाते ही चेहरे की पूरी खाल को पिघला कर गिरा देगा। यही गर्म पानी उनके सिर पर डाला जायेगा। तो वह बदन में पहुंच कर अंदर के सारे हिस्सों को काट काट कर निचे गिरा देगा। इसी तरह कुछ जहन्नमियों को बदन का पीप पिलाया जायेगा। वह इतना बदबूदार होगा की अगर उसकी एक बूँद दुनिया में गिर जाये तो सारी दुनिया बदबू से मर जाये।      मिश्कात II 503

खुलासा यह है की जहन्नम में तरह तरह के अज़ाबो के साथ सज़ाये दी जाएगी। जिस तरह जन्नत की नेमतों को न किसी आँख ने देखा और न किसी कान ने सुना और न ही किसी के दिल में उसके बारे में ख्याल गुज़रा हैं। उसी तरह जहन्नम के अज़ाबो को भी न किसी ने कभी आंख से देखा और न ही किसी कान ने सुना और न ही किसी के दिल में इसका ख्याल आया। यह सब चीज़े मौत के बाद ही देखने को मिलती हैं। दुनिया में मज़े से रह रहे लोगो को इसका बिलकुल भी अंदाज़ा नहीं हैं की मौत के बाद क्या होगा। वह बस अपनी छोटी से ज़िन्दगी मक्कारी, बुराई, ग़ीबत, नाफ़रमानीं में जीने में लगे हैं।

आजकल के लोग पैसा कमाने के चक्कर में किस तरह की गलत काम कर रहे हैं। अपने मज़े के लिए किस हद तक जा रहे हैं। इसका अज़ाब उनको इस ज़िन्दगी के बाद ज़रूर मिलेगा। अल्लाह हमें ऐसे कामो से दूर रखे जो काम सीधे जहन्नम की और ले जाते हैं। मेहरबानी करके अल्लाह के बताये रास्ते पर चलिए।  जिससे हमें जहन्नम के अज़ाब से छुटकारा मिल सके और जन्नत की खूबसूरत आबो हवा में साँस लेने का मौका मिले आमीन।

पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम (Prophet Muhammad Sallallahu Alaihi Wasallam)

पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम (Prophet Muhammad Sallallahu Alaihi Wasallam)

पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम रबीउल अव्वल महीने की 12 तारीख 571 ईस्वी में सऊदी अरब के मक्का में पैदा हुए। आपके पिता का नाम अब्दुल्लाह बिन अब्दुल मुतलिब और माँ का नाम बीबी आमिना था। आप बचपन से ही अल्लाह की इबादत में मसरूफ़ रहते थे। आप पर ही पवित्र पुस्तक क़ुरान उतारी गयी। 40 साल की उम्र में आपको अल्लाह की और से एक पैगाम हासिल हुआ। जिसमे अल्लाह ने आपको कहा की तुम दुनिया में हो रही बुराइयों को मिटाओ लोगो को समझाओ उनको गुमराही से बचाओ। आपने अल्लाह के इस हुक्म को कबूल किया और उस पर खरा उतरने का वादा किया। तभी से उन्हें नबूवत हासिल हुई। आपकी वफ़ात भी रबीउल अव्वल महीने की 12 तारीख 632 ईस्वी को तेज़ बुखार की वजह से हुई। वफ़ात के वक़्त आप 62 साल के थे।

पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अल्लाह के द्वारा भेजे गए इस्लाम के आखरी पैग़म्बर व नबी है। आपने ही इस्लाम धर्म की स्‍थापना की हैं। उस दौर में अरब में लोगो का बहुत बुरा हाल था। उस वक़्त वहां हर वर्ग का अपना अलग धर्म था। और उनके अलग अलग तरह के देवी देवता थे। कोई मूर्ति को पूजता था, तो कोई ताकतवर बादशाहो को अपना भगवान मानता था। कोई जानवरो को पूजता था तो कोई शैतानो को सबके अपने अलग अलग देवता थे। इसके अलावा वहाँ हिंसक भावना सभी लोगो में थी। सभी एक दूसरे के दुश्मन उनके खून के प्यासे थे। वहां कोई भी सुरक्षित नहीं था। औरते और बच्चे तक महफूज़ नहीं थे। इस बुरे दौर को खत्म करने के लिए अल्लाह ने पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को पैग़म्बर बनाया।

दुनिया की हज़ारो साल पुरानी आबादी में हज़ारो नबी व रसूल आये। अलग अलग लोगो ने अलग अलग अंदाज़ में पुराने धर्मो का प्रचार किया और फिर एक ऐसा भी दौर आया की लोग खुदा को भूल बैठे थे। और ताक़तवरो बादशाहो को ही खुदा मान बैठे थे। ऐसे बादशाहो ने भी अपनी खुदाई होने का दवा करना शुरू कर दिया था। दुनिया के ऐसे बिगड़े माहौल में अलग अलग वर्गों में बटी एक दूसरे के खून की प्यासी दुनिया हर ऐतबार से गुमराह हो चुकी थी। ऐसे वक़्त में इंसानियत की रहनुमाई के लिए पैगंबरे आज़म ताजदारे कायनात महबूबे परवरदिगार हज़रत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम इंसानियत की रहनुमाई के लिए दुनिया में तशरीफ़ लाये।

आपने लोगों से फ़रमाया ए दुनिया वालो में किसी एक कबीले खानदान मुल्क वालो का ही भला नहीं चाहता बल्कि मै तो पूरी दुनियाए इंसानियत की रहनुमाई के लिए अमन और रहमत का पैगाम लेकर आया हूँ। मेरे रब ने मुझे पूरी इंसानी बिरादरी की हिदायत के लिए भेजा हैं। मै तुम्हे इंसानियत का भुला सबक याद दिलाने आया हूँ।  मै तुम्हे अख़लाक़ व हिकमत की तालीम देने आया हूँ। आपने जो कुछ उस वक़्त फ़रमाया उस पर अमल करके दिखाया। आपने सब को इंसानियत की रस्सी में पिरोना चाहा। एक दूसरे को एक दूसरे का भाई बना कर मुहब्बत व भाई चारगी के रिश्ते में बांधना चाहा तो इसके लिए यह ज़रूरी था की लोगो की सोच एक तरफ लायी जाये। उनको एक अल्लाह की इबादत की और लाया जाये मतलब यह था की अगर सारे लोग एक ही माबूद की इबादत करेंगे तो ही एक बनकर रहने का सबक सीखेंगे।

लोगो को इंसानियत व भाई चारगी की बुनियादो पर जमा करने के लिए आपने जात पात की दीवारों को खत्म फरमा दिया। काले गोरे के फ़र्क़ को मिटा दिया। अरबी आज़मी का फ़र्क़ खत्म फ़रमा कर सब को इस्लाम की लाइन में खड़ा कर दिया। आपने इस्लाम का पैगाम भटके हुए लोगो तक पहुंचाया वो लोग जो ताकतवर बादशाहो को ही खुदा समझ बैठे थे। आपने लोगो को समझाया की दौलत, शोहरत, बादशाही होने से कोई इज़्ज़तदार नहीं बन सकता। इंसान अपनी सलाहियत और शौक के मुताबिक रोज़ी रोटी के लिए जो पेशा अपनाना चाहे अपना सकता हैं। किसी के आगे झुकने और ज़ुल्म सहने की ज़रूरत नहीं हैं। उन्होंने लोगो से यह भी फ़रमाया की हलाल कमाई के लिए किसी काम को छोटा ना समझा जाये और किसी भी पेशे के वजह से किसी को बड़ा या छोटा ना समझा जाये। ऐसा सोचना इंसानियत और इस्लामी तालीम के खिलाफ हैं।

सबको देने वाला सबका परवरदिगार अल्लाह हैं। दुनिया व आख़िरत की बादशाही अल्लाह के लिए हैं। उसके अलावा कोई बादशाह नहीं हो सकता, जिसके सामने तुम झुको और सर झुकाओ। अल्लाह जिसे चाहे अपने बन्दों की खिदमत के लिए हुकूमत बादशाहत अता फ़रमा दे। आपने उस वक़्त ऐसे तमाम बादशाह जो लोगो पर ज़ुल्म करते आ रहे थे। उन्हें अल्लाह का खौफ और अज़ाब बताया और दुनियावी व आख़िरत की तबाही का खौफ बताया। आपने गुलामो को आज़ाद करने की ताकीद फ़रमाई और गुलामो को आज़ाद करने को बहुत बड़ा सवाब करार दिया। आपकी ऐसी ही कोशिशों से सैंकड़ों गुलाम आज़ादी की ज़िन्दगी जीने लगे। बड़े बड़े बादशाह जो खुदा होने का दावा कर रहे थे वो एक ही अल्लाह की इबादत में लग गए और फिर धीरे धीरे गुलाम खरीदने और बेचने की रस्म खत्म हो गयी।

आपने दौलत मंद लोगो से फ़रमाया की अल्लाह ने तुम्हे माल व दौलत से नवाज़ा हैं तो याद रखो की तुम्हे अल्लाह की उस अमानत का हक़ अदा करना हैं। तुम्हे उस दौलत को उसी तरीके से इस्तेमाल करना हैं जिसकी इजाज़त अल्लाह ने तुम्हे दे रखी हैं। अगर तुम दौलत का गलत इस्तेमाल करोगे तो कंगाल हो जाने के साथ साथ तरह तरह के गुनाह बीमारियों और सज़ाओ के हक़दार भी बनोगे। इसी लिए इस्लाम में माल जमा रखने की नहीं बल्कि उसका इस्तेमाल करने की ताकीद की गयी हैं। मतलब सदक़ा, खैरात करो अपने बच्चो की अच्छे से परवरिश करो अपना कारोबार बढ़ाओ, अल्लाह की राह में उस के ज़रूरत बन्दों पर खर्च करो, माल दबा कर ना बैठ जाओ। आपकी वफ़ात के के बाद पुरे अरब में लोग ईमान लाये। आपकी बदौलत पुरे अरब में इस्लाम का परचम फैला जो आज पूरी दुनिया में कायम हैं।

पैगंबरे इस्लाम मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो की इन्ही मुबारक तालीमात पर मुसलमान अमल करे और खुशहाल रहे आमीन। 

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