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कुछ ज़रूरी दीनी और इस्लामी बातें (Deeni or Islami Baten)

कुछ ज़रूरी दीनी और इस्लामी बातें (Deeni or Islami Baten)

आज के आर्टिकल में हम आपको कुछ ज़रूरी इस्लामी बातों के बारे में बताएँगे। जिनका इल्म होना आपको बहुत ज़रूरी हैं। यह बातें आपको दीन के रास्तें पर चलने और आपकी ज़िन्दगी को एक नेक राह पर चलने में बहुत मदद करेगी। इन अच्छी इस्लामी बातों को पढ़कर अगर आप इस पर अमल करते हैं तो बेशक आप काफी गुनाहों से बच सकते हैं और नेकी पा सकते हैं। 

  • लोगों से अच्छे अख़लाक़ से पेश आना और तकलीफ देने वाली हर चीज़ को रास्ते से हटा देना नेकी हैं। 
  • नेक कामों से मोहब्बत करना और बुरे कामों से नफरत करना ईमान की पहचान हैं।
  • पल भर का सब्र दुनिया की तमाम चीज़ो से बेहतर हैं। 
  • लोगों को नेक रास्ता बताने वाले लोगों पर अल्लाह की रहमतें बरसती हैं। 
  • जो मेहनत करके हलाल रोज़ी कमाता हैं वह इंसान अल्लाह के बहुत करीब रहता हैं। 
  • किसी बीमार का हाल चाल पूछने वाले और उसकी अच्छी सेहत के लिए दुआ करने वाले लोग खुदा को बहुत पसंद हैं। 
  • माँ बाप की खिदमत करने वाली औलादों की खुदा हर दुआ कबूल फरमाता हैं। 
  • अपना माल बेचने के लिए झूटी कस्में न खाया करो इससे माल तो बिक जायेगा लेकिन उसकी बरकत खत्म हो जाएगी। 
  • खुदा और अपनी मौत को हमेशा याद करो। 
  • जब भी किसी दीनी भाई या रिश्तेदार से मिलो तो सलाम ज़रूर किया करो इससे आपस में और मोहब्बत बढ़ेगी और रिश्ते और मज़बूत होंगे।
  • खाना शुरू करने से पहले बिस्मिल्लाह शरीफ ज़रूर पढ़ा करो। 
  • अपनी ज़बान पर काबू रखा करो ताकि किसी और को तुम्हारी वजह से तकलीफ न हो। 
  • चलते फिरते वक़्त कलमा और दुरुद शरीफ पढ़ा करो और हर वक़्त खुदा को याद किया करो। 
  • हमेशा लोगों से अच्छी और मीठी बातें किया करो ताकि सामने वाला शख्स हमेशा आपसे खुश रहे। 
  • हर काम को करने से पहले लोगों से सलाह मशवरा लिया करो ताकि किसी गलती का अंदाज़ा पहले ही हो जाये। 
  • शराब पीने वाले और ब्याज खाने वाले लोगों से हमेशा दूर रहा करो। 
  • हमेशा मिलकर कर साथ में खाना खाया करो।
  • सुबह उठते ही अपने माँ बाप को ख़ुशी से सलाम किया करो और अल्लाह से उनकी अच्छी सेहत की दुआ करा करो।
  • जहाँ लोग एक दूसरे की ग़ीबत बुराई कर रहे हो उस जगह पर एक पल भी रुका मत करो। 
  • आपसे बड़े लोग जैसे आपके माँ बाप या बड़े भाई आपसे गुस्से में कुछ कह दे तो उनकी बातें सुन लो उनको जवाब मत दो। 
  • ज़कात देकर लोगो को जतलाया मत करो की मैंने इतनी ज़कात निकाली हैं। किसी गरीब की मदद करके लोगों को मत बताया करो की मैंने इतनी मदद की हैं।
  • जिस घर में क़ुरान की तिलावत नहीं होती उस घर की बरकतें खत्म हो जाती हैं। रहमत के फ़रिश्ते उस घर से चले जाते हैं। 
  • जिस घर में क़ुरान की तिलावत होती हैं वह घर शैतानी वसवसे से दूर रहता हैं। 
  • सबसे बेहतर मुसलमान वह है, जो खुद क़ुरान सीखे और दूसरों को भी सिखाये। 
  • जितना हो सके लोगो की मदद किया करो ताकि खुदा तुम्हे और दौलत से नवाज़े। 
  • जनाज़े में हमेशा शरीक हुआ करो क्यूंकि एक दिन आपका भी जनाज़ा किसी गली से निकलेगा। 
  • रात को सोने से पहले वज़ू कर लिया करो ताकि पूरी रात शैतानी साये से दूर रहो।
उम्मीद करते हैं आप इन सारी इस्लामी बातों पर अमल करेंगे और दीन के रास्ते पर चलने की तरफ एक कदम बढ़ाएंगे। 

अल्लाह हाफिज 

मग़रिब की नमाज़ और उसकी अहमियत (Magrib ki Namaz ki Ahmiyat)

मग़रिब की नमाज़ और उसकी अहमियत (Magrib ki Namaz ki Ahmiyat)

मगरिब की नमाज़ का वक़्त सूरज डूबने के बाद होता हैं और तकरीबन सवा घंटे तक रहता हैं। मतलब इस सवा घंटे के बीच में आप मगरिब की नमाज़ अदा कर सकते हैं। लेकिन सूरज डूब जाने का यकीन होने पर फ़ौरन नमाज़ अदा कर लेना चाहिए। नमाज़ में देरी नहीं करना चाहिए। देर करना मकरूह हैं। अगर कोई सफर कर रहा हो और मगरिब का वक़्त होते ही नमाज़ अदा करने का मौका नहीं मिला तब फिर आप एक घंटे के अंदर मगरिब की नमाज़ अदा कर सकते है। अगर आप अपने घर पर ही हैं तो तुरंत अज़ान की आवाज़ सुनते ही मगरिब की नमाज़ अदा कर लेना चाहिए। 

सूरज डूब जाने का यकीन हो जाने के पांच मिनट बाद अज़ान पढ़ी जाये और अज़ान सुनने के बाद नमाज़ पढ़ी जाये। आजकल तो मस्जिदों में नमाज़ के वक़्त किसी कागज़ पर लिखकर वह कागज़ चिपका दिया जाता है और उसी वक़्त को देखकर अज़ान पढ़ी जाती हैं लेकिन एहतियात इसी में हैं की सूरज डूबने का ख्याल रखा जाये। ताकि नमाज़ सही वक़्त पर अदा की जाये।

मगरिब की नमाज़ की रकातें और उसकी नियत

मगरिब की नमाज़ में कुल 7 रकातें होती है जो इस तरह हैं 3 फ़र्ज़, 2 सुन्नत और 2 नफ़्ल

फ़र्ज़ नमाज़ की नियत- नियत की मैंने तीन रकात नमाज़ फ़र्ज़ वास्ते अल्लाह तआला के पीछे इस इमाम के वक़्त मगरिब का मुँह मेरा काबा शरीफ की तरफ फिर अल्लाहो अकबर कहते हुए नमाज़ अदा करे (ध्यान रहे की नियत करते वक़्त पीछे इस इमाम के उसी वक़्त कहे जब आप इमाम साहब के पीछे नमाज़ अदा कर रहे हो अगर आप अकेले नमाज़ पढ़ रहे हो तब पीछे इस इमाम के कहने की ज़रूरत नहीं)

2 रकात सुन्नत नमाज़ की नियत- नियत की मैंने 2 रकात नमाज़ सुन्नत वास्ते अल्लाह तआला के पीछे इस इमाम के वक़्त मगरिब का मुँह मेरा काबा शरीफ की तरफ फिर अल्लाहो अकबर कहते हुए नमाज़ अदा करे।  

इन दोनों नमाज़ो को मगरिब की नमाज़ में पढ़ना ज़रूरी है नहीं पढ़ेंगे तो आप गुनहगार होंगे।

तीसरी नमाज़ नफ़्ल नमाज़ हैं जिसमे 2 रकात होती है। इसकी नियत भी उसी तरह हैं जैसे 2 रकात सुन्नत नमाज़ की नियत हैं बस आपको इस नमाज़ में नफ़्ल नमाज़ बोलना हैं और इस नमाज़ में आपको वक़्त का नाम लेना ज़रूरी नहीं। क्यूंकि किसी भी वक़्त की नमाज़ में नफ़्ल ज़रूरी नहीं। नफ़्ल मकरूह औकात के अलावा कभी भी पढ़ी जा सकती हैं। नफ़्ल की नमाज़ की बड़ी फ़ज़ीलत है। इससे आपको फैज़ हासिल होगा।

मगरिब के बाद 6 रकात नफ़्ल नमाज़ पढ़ने की बड़ी फ़ज़ीलत आयी हैं। इसे नमाज़े औवाबीन कहा जाता हैं। 2 -2 रकात की नियत से 6 रकात नफ़्ल नमाज़ अदा करे। और इसे पाबन्दी से अदा करते रहे। इंशाल्लाह आपको बेपनाह फैज़ हासिल होगा।

इसी तरह मगरिब की नमाज़ के बाद पाबन्दी से सूरए वाक़ेआ पढ़ते रहे। जिसकी बरकत से गरीबी दूर हो जाएगी और कारोबार में खैर बरकत होगी।

इसके अलावा मगरिब की नमाज़ के बाद 2 रकात नमाज़ "सलातुल असरार" पढ़ना बहुत फायदेमंद है। जब कोई मुश्किल या परेशानी हो तब इस नमाज़ की बरकत से वह परेशानी दूर हो जाएगी।

इस नमाज़ में हर रकात में अल्हम्दो शरीफ के बाद 11 -11 बाद कुल्हुवल्लाह शरीफ पढ़े। फिर नमाज़ ख़त्म हो जाने के बाद 11 बार दुरुद शरीफ पढ़े। फिर 11 बार यह पढ़े "या रसूलल्लाह या नबीयल्लाह अगिस्नी वम दुदनी फ़ी क़ज़ाए हाजती या काज़ियल हाजात। फिर बाग्दाद् शरीफ की तरफ 11 कदम चलें। हर कदम पर यह दुआ पढ़े या "गौसस सकलैन या करीमत तरफ़ैन अगिस्नी वम दुदनी फ़ी क़ज़ाए हाजती या काज़ियल हाजात"। फिर रसूले अकरम के वसीले से दुआ मांगे। इंशाल्लाह आपकी हर तकलीफ व परेशानी दूर हो जाएगी।

अल्लाह हम सब को पांच वक़्त की नमाज़ का पाबंद बनाये आमीन।  

रोज़ा और इफ्तार पार्टियां (Roza or Iftar Partiyan)

रोज़ा और इफ्तार पार्टियां (Roza or Iftar Partiyan)

क्या हैं इफ्तार? आइये जानते हैं। सूरज डूब जाने के बाद जो हलाल चीज़े दिन में छोड़ दी गयी थी या कहे जिन कामों खासकर के खाना,पानी पीना की इजाज़त मिल जाने को इफ्तार कहा जाता हैं। जिसे ज़्यादातर लोग या आम बोल चाल में रोज़ा खोलना कहा जाता हैं।

ध्यान रहे की सूरज डूब जाने का जब यकीन हो जाये तब ही इफ्तार किया जाये। अँधेरा होने का इंतज़ार करना या सूरज डूब जाने के बाद रोज़ा खोलना यहूदियों का तरीका हैं। रोज़ा खोलने में एक मिनट की भी देरी न की जाये। इसलिए इफ्तार में देर करना या नमाज़ पढ़ लेने के बाद इफ्तार करना मकरूह हैं। हदीस शरीफ में हैं की रब फरमाता हैं ! जो इफ्तार करने में जल्दी करते हैं वह बन्दे मुझे बहुत प्यारे लगते हैं लेकिन इतनी जल्दी भी न की जाये की सूरज डूबने से पहले की इफ्तार कर लिया जाये। ऐसे जल्दबाज़ी करने से तो रोज़े का सवाब भी नहीं मिलेगा और दिन भर की भूक प्यास बेकार चली जाएगी। 

छुहारे या खजूर से इफ्तार करना सुन्नत हैं। अगर यह न हो तो पानी से ही रोज़ा खोल लिया जाये। चूँकि खाली पेट मीठी चीज़ खाना तंदरुस्ती के लिए बेहतर हैं। इसलिए हमारे रसूल के अलावा सारे नबियों ने छुहारे या खजूर से ही रोज़ा इफ्तार करना बेहतर बताया हैं। पानी से भी इफ्तार करना बेहतर इसलिए हैं की क्यूंकि यह बदन में जमा सारी गंदगी को बाहर निकल देता हैं। ध्यान रहे रोज़ा हलाल चीज़ो से ही इफ्तार करे। अगर कहीं से रोज़ा खोलने के लिए कोई खाने पीने का सामान आये तो पहले गौर करे की यह सब सामान हराम कमाई का हैं या हलाल कमाई का। अगर वह हराम कमाई का हैं तो उससे परहेज़ करना ज़रूरी हैं। 

हदीस शरीफ में हैं जिसने पानी से इफ्तार किया। उसे 10-10 नेकियां मिलेगी। खुदा उस बन्दे की 10-10 बुराइयां मिटाएगा। क्यूंकि पानी ऐसी चीज़ हैं जो गरीब से गरीब आदमी को भी नसीब हो सकता हैं। पानी से रोज़ा खोलने वाले यह न समझे की हम गरीब हैं, हमारे पास सिवाय पानी के और कुछ नहीं जिसे पी कर इफ्तार कर सके। पानी तो अल्लाह के दी हुई एक नेअमत है, जिसकी बरकत से आपको नेकियां भी मिल रही हैं और आपकी बुराइयां और गुनाह भी माफ़ हो रहे हैं। जो लोग इस हकीकत से वाकिफ हैं, वह काफी लज़ीज़ चीज़े अपने सामने होते हुए भी पानी से रोज़ा इफ्तार करते हैं। 

अल्लाह के रसूल ने फ़रमाया रोज़ा हमेशा पुरे परिवार यानि बीवी बच्चे माँ बाप भाई बहन वगैरह के साथ इफ्तार करा कीजिये। ऐसा करने वालो को एक लुक़मे के बदले एक गुलाम आज़ाद करने का सवाब मिलेगा। अल्लाह को वह लोग पसंद नहीं जो अलग अलग अपने कमरे में अपने परिवार के साथ अलग से रोज़ा इफ्तार करते हो। हमेशा आपस में मिलजुल कर रोज़ा इफ्तार किया जाये। ध्यान रहे रोज़ा इफ्तार करते वक़्त अगर कोई मुसाफिर या कोई रिश्तेदार अगर घर में आ जाये तो उसे इफ्तार के लिए ज़रूर बुलाया जाये। किसी को रोज़ा इफ्तार करवाना बड़े सवाब का काम हैं। 

एक हदीस में अल्लाह के रसूल फरमाते हैं! जो रमज़ान में किसी रोज़ेदार को इफ्तार कराएगा उसके गुनाह बख्श दिए जायेंगे और वह जहन्नम से आज़ाद कर दिया जायेगा। ध्यान रहे रोज़ा हमेशा हलाल कमाई से इफ्तार कराया जाये। दूसरी तरफ जो शख्स ख़ुशी से रोज़ा इफ्तारी में शामिल होगा वह भी उतने ही सवाब का हक़दार होगा जितना इफ्तारी करवाने वाले शख्स को मिला हैं। एक सहाबा ने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह ! अगर किसी शख्स के पास इतना माल या खाना न हो जिससे वह किसी को अच्छे से रोज़ा न खुलवा सके उस सूरत में क्या वह भी उतने ही सवाब का हक़दार होगा? आपने फ़रमाया यह सवाब तो उसे भी मिलेगा जिसने एक घूँट पानी या दूध से किसी को रोज़ा इफ्तार करवाया हो। सुभानअल्लाह

एक और हदीस में अल्लाह के रसूल ने फ़रमाया ! जिसने किसी रोज़ेदार को पेट भर खाना खिलाया। अल्लाह पाक क़यामत में उसे मेरे हौज से ऐसा शरबत पिलायेगा की उसे कभी प्यास नहीं लगेगी। इससे ही आप अंदाज़ा लगा सकते हो की किसी को रोज़ा इफ्तार करवाना किस हद तक सवाब का काम हैं। एक चीज़ आप को बता दे की हालाँकि रोज़ा खुलवाना बड़ा सवाब का काम हैं इसका मतलब यह नहीं की आप खुद रोज़ा न रखे और सिर्फ रोज़ा खुलवाते रहे। आप को लगे की रोज़ा खुलवाने से इतना सवाब मिल रहा हैं तो रोज़ा रखने की क्या ज़रूरत? यह आपकी गलत फहमी हैं। रोज़ा हर हाल में फ़र्ज़ हैं। सिर्फ इफ्तार करवाने से सवाब तो मिलता हैं, लेकिन रोज़े का फ़र्ज़ अदा नहीं होता। रोज़ा का फ़र्ज़ अदा किये बिना कोई इबादत कबूल नहीं होती।  

आजकल देखा जाता हैं लोग मस्जिदों में इफ्तार का सामान भेजते हैं। कुछ लोग इफ्तार पार्टी का इंतेज़ाम करते हैं। ऐसे मौको पर कई बेरोज़दार लोग भी जमा हो जाते हैं। जो अच्छी सेहत होते हुए भी रोज़ा नहीं रखते। हालाँकि आप किसी को मना नहीं कर सकते लेकिन जो शख्स रोज़ा न होते हुए भी रोज़ेदार के हिस्से का खाना खा रहा हैं उसे खुद ही सोचना चाहिए की मैं सही हूँ या गलत। इसके अलावा कई इफ्तार पार्टियों में बड़े बड़े राजनेता रसूखदार लोग इफ्तार पार्टी के बहाने राजनीतिक रिश्तो को मज़बूत करने में लग जाते हैं। ऐसे लोगो को इफ्तार या रोज़े से कोई मतलब नहीं होता। वह सिर्फ अपने आपसी रिश्तो और दुनियावी फ़ायदा हासिल करने के मकसद से ऐसी पार्टियां करते हैं। अगर आप एक सच्चे मोमिन हैं तो ऐसी पार्टियों से दूर रहे। क्यूंकि अक्सर ऐसी इफ्तार पार्टियों में इस्तेमाल किया जाने वाला खाना हराम कमाई का होता हैं। जिसे खाकर आप भी गुनहगार बन जायेंगे। 

बहरहाल हम सभी को चाहिए की इफ्तार प्रोग्राम में ऐसे बड़े लोगो को बुलाने से बेहतर हैं आस पास के गरीब लोगों को इफ्तार पार्टी का न्योता दे। क्यूंकि ऐसे गरीब लोगों को मुश्किल से ही इस तरह का खाना नसीब होता हैं। ऐसे लोग बेरोज़दार भी हैं तो भी उनके लिए हर तरह के अच्छे खाने का इंतेज़ाम किया जाये। क्यूंकि ऐसे लोगों की ज़िन्दगी अक्सर कुछ दिन पुराना खाने पीने से ही निकलती हैं। ऐसे लोग इस तरह का अच्छा खाना इफ्तारी में देखकर बड़े खुश हो जाते हैं। जिनकी ख़ुशी से अल्लाह भी बड़ा खुश होता हैं। आप सभी से गुज़ारिश है इफ्तार पार्टी का मज़ाक न बनाये और जो ऐसी पार्टियों का असली हक़दार हैं उसे शरीक करके सवाब हासिल करे। अल्लाह हाफिज

उमराह क्या होता हैं? जानिए उमराह को करने का तरीका

दुनिया भर के लाखो करोड़ो मुस्लिम उमराह करने के लिए सऊदी अरब के शहर मक्का आते हैं। आप उमराह को पवित्र शहर मक्का में काबा की एक छोटी तीर्थयात्र...

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