मेहनत से कमाई करके अपने बाल बच्चों की परवरिश करना, घरवालों को मुहताजी से बचाना और खुद भी बचना बहुत बड़ी इबादत ही नहीं बल्कि इस्लाम के पांच रुक्नों के बाद सबसे बड़ी फ़र्ज़ इबादत है। कुरान व हदीस में इसके बारे में सख्त ताकीद आई है अल्लाह पाक फरमाता है, हमने तुम्हें जमीन पर रहने के लिए जगह दी और उसी में तुम्हारे लिए रोज़ी बनाई (सूरह आराफ़) और सूरह हजर में फरमाया और हमने तुम्हारे लिए वहां रोज़ी के साधन बनाएं और उन्हें भी रोजी दी जिन को तुम खिला पिला नहीं सकते थे। सूरह बकर में फरमाया- हज के मौके पर भी तुम्हें अपनी रोजी तलाश करने में कोई गुनाह नहीं।
रोजी को अल्लाह पाक ने अपना फ़ज़्ल भी करार दिया और हुक्म दिया- अल्लाह से उसका फ़ज़्ल मांगो(सूरह निसा)
इन आयतों का मतलब यही है कि इंसान दुनिया में फैल कर रोज़ी तलाश करें और अपनी मेहनत और कोशिश से अल्लाह की बिखेरी हुई रोटी को जमा करें, खुद भी खाए, घरवालों की परवरिश करें और दूसरों को भी खिलाएं।
क़ुरआनी आयतो के अलावा हदीसो में भी इसकी सख्त ताकीद आयी है। अल्लाह के रसूल फरमाते हैं- हलाल रोजी कमाना फ़र्ज़ इबादतों के बाद सबसे अहम फ़र्ज़ है।
कयामत के दिन जिस तरह आदमी से फ़र्ज़ इबादतों के बारे में पूछा जाएगा उसी तरह रोजी के बारे में भी हिसाब लिया जाएगा। हलाल रोजी कमाने और खाने खिलाने की बरकत यह है कि उसकी बदौलत इंसान की तबीयत नेकी और नेक कामों की तरफ लगती है। उसे इबादत की तौफीक मिलती है, आंखों में शर्म व हया और चाल में शराफत पैदा हो जाती है, और सबसे बड़ा फायदा तो यह है कि कयामत के दिन उसका चेहरा रोशन होगा। हलाल रोजी कमाने वाले और इस सिलसिले में पेश आने वाली तकलीफों को बर्दाश्त करने वाले अल्लाह से इनाम पाएंगे और उन्हें जन्नत का घर रहने को मिलेगा जबकि हराम रोजी कमाने खाने वाले बड़े घाटे में रहेंगे। पहली बात तो यह कि उन्हें इबादत की तौफीक नहीं मिलेगी, अगर कोई हराम कमाई करने वाला इबादत करेगा तो उसकी इबादत कबूल नहीं होगी। अल्लाह के रसूल ने फरमाया अगर किसी ने 10 रूपए का कोई कपड़ा खरीदा और उसमें एक रुपया भी हराम कमाई का होगा तो जब तक वह कपड़ा बदन पर रहेगा उसे पहनकर नमाज पढ़ेगा तो नमाज़ कबूल नहीं होगी।
हजरत अबू बक्र सिद्दीक रदियल्लाहो अन्हो का बयान है- अल्लाह के रसूल ने फरमाया हराम रोजी से पलने वाला बदन जन्नत में नहीं जाएगा। हराम रोजी से पलने वाला गोश्त तो जहन्नम का ही हकदार है। जो लोग लूट-खसोट, बेईमानी, चोरी, रिश्वत वगैरा जैसे नाजायज वह हराम तरीकों से कमाई करते हैं और उनके बच्चों को पालते हैं, वह दुनिया व आखिरत में गुनाहगार वह सजा के हकदार है। ऐसे लोगों की दुआ कबूल नहीं होती, यही वजह है कि कुछ लोग शिकायत करते नजर आते हैं कि बरसों से दुआ मांग रहा हूं कबूल नहीं हो रही है। इसकी वजह यही है कि पेट में हलाल रोजी नहीं पहुंच रही है या कोई एक लुकमा ही किसी अपने- पराय के पेट में चला गया जिसकी नहूसत से दुआ कबूल नहीं हो रही है। खुदा के लिए खाने पीने का खास ध्यान रखें हलाल रोजी कमाए और खाएं और उसी के घर का खाए पियें जिसकी रोजी हलाल होने का यकीन हो। दावतों के शौकीन ना बने कहीं जाना पड़े तो सोच समझ कर जाएं की फलाना शख्स किस कमाई से दावत कर रहा हैं लेकिन अफसोस आज इसका ख्याल तो हमारे दीनी रहनुमा और पीर हज़रात भी नहीं कर रहे हैं, पता है कि मुरीद का कारोबार उल्टा सीधा है लेकिन उसकी नाराजगी के खौफ से उसे कुछ कहने की हिम्मत नहीं करते और आराम से उसके यहां दावत में जाते हैं।
अल्लाह हिदायत दे आमीन