पिछली पोस्ट में हमने इस्लाम के पांच प्रमुख स्तम्भों में से एक स्तम्भ हज क्या हैं के बारे में बताया था, आज हम इसकी फ़ज़ीलत के बारे में बात करेंगे। हज़रत अली शेरे खुदा फरमाते है अल्लाह के रसूल ने फ़रमाया की जिसके पास हज के सफर का ज़रूरी सामान हो,जाने आने के लिए पैसो का इंतेज़ाम हो जिस्मानी हालत अच्छी हो इतना सब कुछ होते हुए भी जो हज न करे तो फिर कोई फर्क नहीं की वो यहूदी होकर मरे या ईसाई होकर ऐसा इसलिए कहा गया हैं क्यूंकि अल्लाह का फरमान हैं जो लोग हज करने की हैसियत रखते हो उनके लिए फ़र्ज़ हैं की वह हज करे।
एक हदीस हैं की हज़रत अबदुल्लाह बिन मसऊद फरमाते हैं की हज और उमराह गरीबी मुहताजी और गुनाहो को इस कदर दूर कर देते हैं जिस तरह लोहार और सुनार की भट्टी लोहे, सोने, चांदी का मैल कुचैल दूर कर देती हैं। हज और उमराह पर जाने वाले अल्लाह के खास मेहमान हैं अगर वह अल्लाह से दुआ करें तो अल्लाह उनकी दुआ कबूल फरमाता हैं और उनके गुनाहो को माफ़ कर देता हैं। हाजियो पर अल्लाह की खास इनायत होती हैं।
हदीस शरीफ में हैं की अल्लाह तआलाह रोज़ाना अपने हाजी बन्दों के लिए 120 रहमतें नाज़िल फरमाता हैं 60 रहमतें उनके लिए होती हैं जो तवाफ़ करते रहते हैं। 40 रहमतें हरम शरीफ में नमाज़ पढ़ने वालो के लिए और 20 रहमतें काबा शरीफ को देखने वालो के लिए होती हैं तवाफ़ की फ़ज़ीलत बयान फरमाते हुए अल्लाह के रसूल ने फ़रमाया की जिसने 50 बार बैतुल्लाह शरीफ का तवाफ़ कर लिया वह शख्स गुनाहो से ऐसे पाक हो गया जैसे की आज ही अपनी माँ के पेट से बाहर आया हैं।
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