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नमाज़ से जुड़े कुछ ज़रूरी मसाइल (Namaz ke Masail)

नमाज़ से जुड़े कुछ मसाइल (Namaz ke Masail)

 

आज के इस आर्टिकल में हम आपको नमाज़ से जुड़े कुछ मसाइल के बारे में बताएँगे। आप इन बताई गयी बातों को गौर से पढ़े और उस पर अमल करने की कोशिश करे और दुसरो भाइयों और बहनो को भी बताएं।


  • नमाज़ पढ़ने के लिए बदन का पाक साफ़ होना बहुत ज़रूरी हैं। नापाकी में नमाज़ पढ़ना गुनाहे कबीरा हैं।
  • जिस भी जगह नमाज़ पढ़ी जा रही है उस जगह का पाक होना ज़रूरी हैं। गीली या गन्दी जगह पर नमाज़ अदा न करे।
  • अस्सलामो कहते ही नमाज़ ख़त्म हो जाती हैं इसलिए अगर कोई आदमी इमाम के अस्सलाम कहते वक़्त जमाअत में शरीक हुआ तो नमाज़ नहीं होगी। 
  • नमाज़ शुरू करने से पहले उस नमाज़ की नियत करना बहुत ज़रूरी हैं। जो भी नमाज़ पढ़ रहे हैं उसकी नियत ज़रूर करे जैसे फज्र, ज़ोहर, मगरिब वगैरह। 
  • नमाज़ पूरी करने के लिए अस्सलामो अलैकुम व रहमतुल्लाह कहना सुन्नत हैं। 
  • अस्सलाम कहना वाजिब हैं अलैकुम कहना वाजिब नहीं। 
  • सुन्नत यह हैं की इमाम दोनों सलाम बुलंद आवाज़ से कहे लेकिन दूसरा सलाम पहले सलाम से कुछ आहिस्ता आवाज़ में कहे।
  • दाहिनी तरफ सलाम फेरने पर चेहरा इतना घूमना चाहिए की पीछे वालों के दाहिने रुखसार (गाल) नज़र आये और बाईं तरफ फेरने पर बाएं गाल नज़र आये। 
  • नमाज़ के बाद हाथ उठा कर दुआ मांगना और दुआ के बाद मुँह पर हाथ फेरना भी सुन्नत हैं। 
  • दुआ मांगते वक़्त दोनों हाथ बिलकुल मिले हुए न हो दोनों हाथो के बीच थोड़ा फ़ासला होना चाहिए।
  • नमाज़ में अंगड़ाई लेना और बार बार उबासी लेना मकरूहे तंज़ीही हैं। 
  • नमाज़ पढ़ने से पहले अच्छी तरह वज़ू करले। खासकरके मुँह को अच्छे से साफ़ करले नमाज़ के वक़्त बीड़ी सिगरेट तम्बाकू की बदबू आना मकरूह हैं। 
  • नमाज़ के दौरान अगर टोपी सर से गिर जाये तो एक हाथ से उठा कर सर पर रख लेना अफ़ज़ल हैं। दोनों हाथो से उठाना मकरूहे तहरीमी हैं। लेकिन कोशिश करे की टोपी बार बार न गिरे इससे नमाज़ से ध्यान भटकता है। 
  • नमाज़ के दौरान इधर उधर न देखे आपका पूरा ध्यान नमाज़ में होना चाहिए।
  • नमाज़ में सजदे के दौरान घुटनो के ज़मीन पर टिकने से पहले अपने हाथ ज़मीन पर रखना भी मकरूहे तन्ज़ीही हैं। 
  • नमाज़ में सजदे के दौरान अपने पैरों की अँगुलियों को उल्टा पीछे करना भी मकरूहे तन्ज़ीही हैं। 
  • सजदे के दौरान कम से कम एक अंगुली का ज़मीन से टिका होना फ़र्ज़ हैं। तीन अँगुलियों का टिका होना वाजिब और सारी अँगुलियों का टिका होना सुन्नत हैं। 
  • सजदा या रुकू की हालत में तीन बार से कम तस्बीह पढ़ना मकरूह हैं इसलिए जल्दबाज़ी कभी नमाज़ न पढ़े। 
  • सजदा करने पर अगर पेशानी पर धुल या घास वगैरह लग जाये तो उसे हटाना मकरूह हैं लेकिन अगर उसकी वजह से कुछ खुजली या जलन जैसा हो रहा हैं तो हटाने में हर्ज़ नहीं। 
  • फ़र्ज़ की एक रकात में किसी एक आयत या सूरत को बार बार पढ़ना मकरूह हैं लेकिन अगर उसके अलावा कुछ याद न हो तो कोई हर्ज़ नहीं। 
  • आँख बंद करके नमाज़ पढ़ना भी मकरूह हैं। 
  • घर पर भी नमाज़ अदा करे इससे शैतान का साया घर पर कभी नहीं आता। 


अल्लाह हम सबको पांच वक़्त की नमाज़ पाबन्दी से पढ़ने की तौफीक अता फरमाए और अल्लाह की बताई बातों और हदीसों पर अमल करने की तौफीक अता फरमाए आमीन 


इस्लामी शरीयत के कुछ ज़रूरी नियम और तौर तरीके

इस्लामी शरीयत के कुछ जरूरी नियम और तौर तरीके

इस्लामी तौर तरीके में कुछ ऐसे अल्फ़ाज़ मुकर्रर हैं जो इस्लामी अहकाम बयान करने के दौरान काम में लिए जाते हैं। अच्छे काम करने पर सवाब और बुरे काम करने पर अज़ाब मिलता हैं। नेक कामो की भी कई किस्मे हैं जो इस तरह है, 

पहला फ़र्ज़ 

दूसरा वाजिब 

तीसरा सुन्नते मुवक्किदह

चौथा सुन्नते गैर मुवक्किदह 

पांचवा मुस्तहब 

और आख़री मुबाह 

चलिए नेक कामों की इन किस्मों को थोड़ा तफ्सील से समझते हैं। 

फ़र्ज़ 

इस्लाम में जो चीज़े फ़र्ज़ है। इसका मतलब यह हैं की वह काम करना बहुत ज़रूरी हैं जिसका फ़र्ज़ होना क़ुरान और हदीस से साबित होता हैं। जैसे नमाज़, रोज़ा, हज, ज़कात वगैरह इनके फ़र्ज़ होने का इंकार करने वाला काफिर हो जाता हैं और जो आदमी बिना किसी शरई मज़बूरी के यह काम नहीं करता उसे फासिक (गुनाहगार) कहा जाता हैं। फ़र्ज़ इबादतों कामो से लापरवाही बरतना गुनाहे कबीरा हैं। ऐसा आदमी जहन्नम का हक़दार होता हैं। 

वाजिब 

वह काम जिनका करना भी ज़रूरी है जैसे ईद, बकरा ईद की नमाज़ पढ़ना सदक़ा खैरात और फितरा वगैरह करना। इसका इंकार करने वाला गुमराह और बदमज़हब होता हैं। बिना किसी शरई मज़बूरी के इसे छोड़ने वाला या इसे न करने वाला फासिक और जहन्नम के अज़ाब का हक़दार हैं। 

सुन्नते मुवक्किदह 

शरीयत में जिन कामो को सुन्नते मुवक्किदह कहा गया है उसे करना भी ज़रूरी हैं और बड़े सवाब का काम हैं। सुन्नते मुवक्किदह मुस्तफा जाने रहमत सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम के किये वह काम हैं जिसे आपने हमेशा किया हो या कभी कभार छोड़ भी दिया हो। इसलिए इसे करना भी ज़रूरी हैं। छोड़ने वाले से अल्लाह व रसूल नाराज़ होते हैं और जो बिलकुल छोड़ दे वह जहन्नम के अज़ाब का हक़दार होगा। सुन्नते मुवक्किदह का हुक्म वाजिब के करीब करीब हैं। 

सुन्नते गैर मुवक्किदह 

वह काम जिसे हमारे आका ने कभी कभी किया हो और कभी कभी बिना किसी शरई मज़बूरी में न भी किया हो। इस पर अमल करने वाला सवाब का हक़दार होता हैं और न करने पर कोई अज़ाब नहीं हैं जैसे असर और ईशा में फ़र्ज़ से पहले 4 सुन्नते न पढ़ना।  

मुस्तहब 

वह नेक काम जिसे करने को अच्छा माना गया हो और न करने को बुरा भी न समझा जाता हो। 

मुबाह 

इसका दूसरा नाम जायज़ हैं। वह काम जिसका करना या न करना दोनों बराबर हो करने पर कोई सवाब नहीं और न करने पर कोई गुनाह नहीं। 


दूसरी तरफ इस्लामी तौर तरीको में कुछ ऐसे काम भी हैं जिन्हें करने को मना किया गया हैं इन कामों को करने वाले शख्स को इनसे बचना चाहिए यह गलत या बुरे काम कुछ इस तरह हैं 

हराम काम 

इस्लामी शरीयत में जिन कामों को करने से मना किया गया हैं उसे हराम कहा गया हैं। उससे बचना और दूर रहना बहुत ज़रूरी हैं। वह काम जिनका हराम होना क़ुरानहदीस से साबित हो। उससे इंकार करने वाला काफिर हैं। और एक मर्तबा भी करने वाला फासिक (गुनहगार) हो जाता हैं। ये काम कुछ इस तरह हैं जैसे शराब पीना जुआ खेलना सूद खाना, नाच गाने में शौक रखना, खुदखुशी करना वगैरह काम हराम हैं। इससे बचने वालो को सवाब मिलता हैं और इन कामो को करने वाला बहुत बड़ा गुनहगार हैं। 

मकरूहे तहरीमी 

उन कामो से बचना बेहद ज़रूरी हैं जिन्हे मकरूहे तहरीमी करार दिया जा चूका है। इनका गुनाह हराम से कम हैं लेकिन लगातार करते रहने वाला गुनाहे कबीरा व सज़ावार हो जाता हैं। जिसकी सजा जहन्नम का अज़ाब हैं इसका एक उदाहरण जैसे नमाज़ के वक़्त इधर उधर देखना। 

मकरूहे तन्ज़ीही 

जिन कामो को इस्लामी शरीयत में अच्छा नहीं माना गया हैं इसे मकरूहे तन्ज़ीही कहा जाता हैं। इसे कर गुजरने पर कोई गुनाह नहीं लेकिन आदत बना लेना भी अच्छा नहीं। इसका एक उदाहरण जैसे सुस्ती से बोझ समझ कर नमाज़ पढ़ना। 

ख़िलाफ़े औला 

वह काम जिसे करना तो नहीं चाहिए था लेकिन अगर कर दिया तो गुनाह नहीं जैसे एक वुज़ू से कई नमाज़ पढ़ना। 


अल्लाह हम सभी को इस्लामी तौर तरीको पर चलने की तौफीक अता फरमाए आमीन। 

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