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इस्लाम में रसूल और नबी कौन हैं? Who is Rasool and Nabi in Islam?

इस्लाम में रसूल और नबी कौन हैं? Who is Rasool and Nabi in Islam?
इस्लाम में रसूल और नबी कौन हैं? Who is Rasool and Nabi in Islam?

इंसानों की हिदायत व रहनुमाई और उन तक अपना पैगाम पहुंचाने के लिए अल्लाह पाक अपने जिन महबूब बन्दों को मुकर्रर व मुन्तख़ब फरमाता हैं  उन्हें नबी,रसूल, पैगंबर कहा जाता है। अल्लाह के यह महबूब बड़ी दयानतदारी व इमानदारी से उसका पैगाम लोगों तक पहुंचाते हैं। यह मर्तबा अल्लाह ने जिसे चाहा अता फ़रमाया। कोई आदमी अपनी मेहनत या कोशिश से नबी नहीं हो सकता। दुनिया का कोई इंसान किसी नबी के बराबर नहीं हो सकता। अगर कोई आदमी ऐसा कहे तो वह काफीर हैं।

इंसानों की हिदायत के लिए जो नबी तशरीफ लाए वह इंसान और मर्द थे। कोई औरत नबी या रसूल नहीं हुई। यह शरफ़ अल्लाह ने मर्दों को बख्शा। नबी व रसूल अल्लाह के तर्जमान होते हैं जो उस का पैगाम हम तक पहुंचाते हैं और बयान करते हैं। अल्लाह पाक जो हुक्म हमारे लिए भेजता है नबी उसे बयान फरमाते और खुद भी उस पर अमल करते हैं।

अल्लाह ने हर कौम में, हर मुल्क में अपने नबी व रसूल भेजें। क़यामत के दिन कोई कौम यह नहीं कह सकेगी कि हमारी हिदायत के लिए कोई नबी नहीं आया। जिनकी किस्मत में ईमान लिखा जा चुका था, वह मोमिन हुए। नुबूवत व रिसालत का यह सिलसिला हमारे प्यारे नबी हज़रत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम पर खत्म हो गया। आप के बाद अब कोई नबी नहीं आएगा। अगर कोई आदमी अपने नबी होने का ऐलान करें या अकीदा रखें कि पैगंबरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम के बाद भी नबी आ सकता है, या आएगा तो ऐसा आदमी काफीर है क्योंकि कुरान मजीद में अल्लाह पाक ने हमारे प्यारे रसूल को खातमुन्नबिईंन(Khatam-Un-Nabiyeen) फरमाया है।

माना कि हम हज़रत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम की उम्मत में है, उनका कलमा पढ़ते हैं, उनकी शरीयत पर अमल करते हैं, फिर भी हमें उन सारे नबियों रसूलों पर ईमान लाना ज़रूरी है जो आप से पहले तशरीफ़ ला चुके हैं। कहा जाता है कि एक लाख चौबीस हज़ार या दो लाख चौबीस हज़ार या कुछ कम  ज़्यादा नबी दुनिया में तशरीफ़ लाएं जिनमें से कुरान व हदीस में कुछ ही नबियो के बयान मौजूद है। फिर भी उनके अलावा हमें उन दूसरे नबियों रसूलों पर भी उसी तरह ईमान लाना, उन्हें नबी रसूल तस्लीम(स्वीकार) करना ज़रूरी है जिस तरह हम पैगंबरे इस्लाम को तस्लीम(स्वीकार) करते हैं।

हमें उन सारे नबियों-रसूलो पर ईमान लाना ज़रूरी है, जो दुनिया में हिदायत व तब्लीग के लिए भेजे गए। उनमें से किसी एक का भी इनकार करने वाला ईमान से ख़ारिज है। हम ईसाई नहीं फिर भी हमें हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम को रसूल मानना ज़रूरी है। यह अलग बात है कि उन्हें मानने का दावा करने वाले लोग अपने नबी की तालीम व तब्लीग से दूर होने की वजह से गुमराह हो गए लेकिन हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की नुबूवत व रिसालत में तो कोई फर्क नहीं आया। वह अब भी नबी है।

उनके बारे में ईसाइयों का अक़ीदा है की वह उनकी बख्शीश के लिए सूली पर चढ़ गए, फांसी दे दिए गए, जबकि हमारा अकीदा है कि अल्लाह ने उन्हें जिंदा आसमान पर उठा लिया। और उन्हें कत्ल करने के लिए  लोगों ने हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम जैसी शक्ल वाले अपने ही किसी दूसरे आदमी को कत्ल कर डाला। हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम कयामत के करीब वापस दुनिया में तशरीफ़ लाएंगे।

इसी तरह हम यहूदी नहीं फिर भी हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम को अल्लाह का नबी व रसूल मानते हैं। भले ही आज उनकी कौम गुमराह हो चुकी है। बहरहाल हमें अल्लाह के हर नबी रसूल पर ईमान लाना ज़रूरी है। सारे नबियों-रसूलो ने लोगो को इस्लाम की ही दावत दी। एक अल्लाह की इबादत का पैगाम दिया। इसलिए उनमें से किसी वजह से किसी एक का भी इनकार गोया सब का इनकार है। किसी की तौहीन सब की तौहीन है। हम रहमते आलम सल्लल्लाहो अलैहि  वसल्लम के उम्मती है। हमे अपने प्यारे रसूल की इज़्ज़त करना ज़रूरी है। ऐसा नहीं होना चाहिए की हम अपने नबी के अलावा दूसरे नबियों को कम समझे।

हमारे लिए मुस्तफा जाने रहमत सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम की शरीयत पर अमल करना और उनकी सुन्नतों की रोशनी में अपनी जिंदगी गुज़ारना लाज़िम हैं क्योंकि आपके हुक्म पर अमल करना, आपकी फरमाबरदारी करना गोया अल्लाह की फरमाबरदारी करना है। हमारे नबी अपनी मर्ज़ी से कुछ नहीं फरमाते बल्कि जो अल्लाह हुक्म देता है वही फरमाते हैं।

नबी व रसूल कबीले एहतराम हस्तियां हैं। उनकी ताज़ीम फ़र्ज़ हैं और तौहीन कुफ्र हैं। आदमी चाहे जितने नेक काम करे अगर वह रसूल की शान में गुस्ताखी करे तो उसका किया धरा सब बेकार हैं। इसलिए हमे अपने नबियों रसूलो का एहतराम करना ज़रूरी हैं। अगर कोई शख्स नबी की किसी पसंद को नापसंद कहे तो वह शख्स सज़ा का हक़दार हैं।

नबी तो हमें अपनी जान से भी ज़यादा प्यारे होने चाहिए वरना ईमान मुकम्मल नहीं होगा। यही तालीम अल्लाह ने क़ुरान मजीद में अपने बन्दों को दी हैं।अल्लाह हम सब को रसूलो-नबियों के फरमान पर,उनके बताये रास्ते पर चलने की तौफीक अता फरमाए आमीन। 

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