What is Shab-e-barat? |
अल्लाह के रसूल रमज़ान के बाद सबसे ज़्यादा रोज़े शाबान महीने में रखा करते थे। शाबान महीने की 15 वी रात को शबे बरात कहा जाता है। बरात का मतलब है बरी होना,आजाद होना। चूँकि यह रात अपने गुनाहों से तौबा करके अल्लाह के फ़ज़्ल से जहन्नम के अज़ाब से आजाद होने की रात है इसलिए इसे शबे बरात कहा जाता है। इसे बरकत वाली रात, दोज़ख से निजात पाने वाली रात और रहमत वाली रात भी कहा जाता है। इस रात के बारे में उम्मुल मोमिनीन हज़रत बीबी आयशा सिद्दीका को बताते हुए अल्लाह के रसूल ने फरमाया की इस रात अगले साल जितने भी पैदा होने वाले होते हैं वह इस रात लिख दिए जाते हैं और जितने लोग इस साल मरने वाले होते हैं वह भी इस रात लिख दिए जाते हैं। इस रात में लोगों के साल भर के आमाल उठा लिए जाते हैं और इसी रात साल भर की मुकर्रर रोज़ी उतार दी जाती है।
अल्लाह पाक इस रात अपनी रहमत से अपने बंदों को बख्श देता है। लेकिन शिर्क करने वाले,अपने भाई से दुश्मनी रखने वालों को नहीं बक्शता। इस रात तौबा करने वालो की तौबा काबुल की जाती हैं। रोज़ी में बरकत की दुआ करने वालो की रोज़ी में बरकत अता की जाती हैं। बीमारों के लिए दुआ मांगने पर बीमारों को बीमारी से शिफा दी जाती हैं।
इस रात कब्रिस्तान जाना फातिहा पढ़ना इसाले सवाब करना और दुआए मगफिरत करना सुन्नत है। हदीस शरीफ में है, जो आदमी 11 बार कुल हुवल्लाह शरीफ पढ़ कर उसका सवाब मुर्दो की रूहों को पहुंचाएं तो मुर्दों को सवाब पहुँचाने के साथ ही पढ़ने वाले को मुर्दो की तादात के बराबर सवाब मिलेगा। इस रात बेरी के 7 पत्ते पानी में उबालकर उस पानी से नहाए तो इंशाल्लाह साल भर तक जादू टोने के असर से आप महफूज़ रहेंगे ।
शब-ए-बरात पर क्या ज़रूरी काम करना चाहिए?
शब-ए-बरात की रात बहुत मुबारक रात मानी जाती हैं। इस रात को इबादत की रात कहा जाता हैं। इसलिए इस रात को नीचे बताये कुछ ज़रूरी कामों को ज़रूर करना चाहिए। जो इस तरह हैं ।
1.कब्रस्तान जाकर मुर्दों के लिए इसाले सवाब और दुआए मगफिरत की जाए।
2.यह रात नफ़्ल नमाज पढ़ने तिलावत करने और दुरूद व दुआ पढ़ने के साथ अपने गुनाहों से तौबा करने में बितायी जाए ताकि अल्लाह की रेहमत हमारे गुनाहों पर पर्दा डालकर हमें दोज़ख की आग से बरी होने का हकदार बना दे।
3.रात इबादत में गुजारने के बाद दिन में रोजा रखा जाए यह सुन्नत है।
इसके अलावा इसाले सवाब के लिए कुछ मीठी चीजें बनवाना, फातिहा लगवाना, खाना खिलाना व तोहफे पेश करने में कोई हर्ज नहीं लेकिन इसे पटाखों का त्यौहार समझना नादानी है। जो सरासर नाजायज़ और हराम है। इस रात में अल्लाह पाक बनी कलब की बकरियों के बाल की तादात के बराबर गुनाहगारों को जहन्नम से आज़ाद फरमा देता है। लेकिन काफिर, दुश्मनी रखने वाले, रिश्ता तोड़ने वाले, मां बाप की नाफरमानी करने वाले और शराब पीने वालों पर रहम नहीं फरमाता। ऐसे लोगों की बख्शीश नहीं होती।
2.यह रात नफ़्ल नमाज पढ़ने तिलावत करने और दुरूद व दुआ पढ़ने के साथ अपने गुनाहों से तौबा करने में बितायी जाए ताकि अल्लाह की रेहमत हमारे गुनाहों पर पर्दा डालकर हमें दोज़ख की आग से बरी होने का हकदार बना दे।
3.रात इबादत में गुजारने के बाद दिन में रोजा रखा जाए यह सुन्नत है।
इसके अलावा इसाले सवाब के लिए कुछ मीठी चीजें बनवाना, फातिहा लगवाना, खाना खिलाना व तोहफे पेश करने में कोई हर्ज नहीं लेकिन इसे पटाखों का त्यौहार समझना नादानी है। जो सरासर नाजायज़ और हराम है। इस रात में अल्लाह पाक बनी कलब की बकरियों के बाल की तादात के बराबर गुनाहगारों को जहन्नम से आज़ाद फरमा देता है। लेकिन काफिर, दुश्मनी रखने वाले, रिश्ता तोड़ने वाले, मां बाप की नाफरमानी करने वाले और शराब पीने वालों पर रहम नहीं फरमाता। ऐसे लोगों की बख्शीश नहीं होती।
इस रात का फैज़ हासिल करने के लिए चाहिए कि अपने गुनाहों से सच्ची तौबा करें। अगर मां-बाप नाराज़ है तो उन्हें खुश किया जाए क्योंकि जब तक वह राज़ी नहीं होंगे तब तक अल्लाह राज़ी नहीं होगा। किसी दीनी भाई से मनमुटाव हो गया हो या सलाम कलाम बंद हो तो मेल मिलाप करके गलतफहमी दूर करके इसका बहाल किया जाए। फिर अपने रब से रहम व करम और मगफिरत की दुआ मांगी जाये इस यकीन के साथ की अल्लाह पाक हमें भी इसके फैज़ से मालामाल फरमाएगा।
इस रात में इबादत करने का सवाब दूसरी रातो के मुकाबले ज्यादा मिलता है। एक हदीस में है जो आदमी इस रात 100 रकात नफ़्ल नमाज़ पढ़े तो अल्लाह उसके पास 100 फरिश्ते भेजेगा। उनमें से 30 फरिश्ते उसे जन्नत की बशारत सुनाएंगे। 30 फरिश्ते उसे दोज़ख के अज़ाब से महफूज रहने की खुशखबरी देंगे और 30 फ़रिश्ते उसे दुनियावी बलाओं और मुसीबतों से बचाएंगे और 10 फ़रिश्ते शैतान के वसवसे और धोखे से बचाएंगे। इस रात मुस्तफा जाने रेहमत सल्ललाहो अलैहि वस्सलम की उम्मत पर अल्लाह की खास रहमतें नाज़िल होती है।
यह रात तौबा इस्तिगफार की रात है इसलिए हमें चाहिए कि हम इसकी कद्र करें इसकी अहमियत समझे और अपने गुनाहों से माफी मांगे,तौबा करे और तौबा पर कायम रहने की नियत भी रखें।
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