कुरान मजीद में अल्लाह पाक ने 82 जगहों पर अपने बन्दों को ज़कात अदा करने की ताकीद फ़रमाई हैं। इतनी सख्त ताकीदो के बावजूद जो मुसलमान अपने माल की सालाना ज़कात अदा नहीं करते गोया वह 82 बार अपने रब की नाफरमानी करते हैं। शायद लोग यह सोच कर इतनी बड़ी नादानी करते हैं कि ज़कात देने से माल कम हो जाएगा यह उनकी बड़ी नादानी व भूल है ऐसा सोचना भी गुनाह है।
जकात अदा करने का मतलब यह है कि आप अपने माल का 40 वां हिस्सा आखिरत के लिए मनी ऑर्डर कर रहे हैं, जो आपके लिए आखिरत के बैंक में जमा हो रहा है। इस तरह अपने माल का फायदा आखिरत में आप ही उठाएंगे और दुनिया में यह फायदा हो रहा है कि जकात अदा करने की बरकत से आपका माल पाक हो रहा है उसमें बरकत हो रही है माल में इज़ाफ़ा हो रहा हैं।
ज़कात की बदौलत कौम के गरीबों, जरूरतमंदों की जरूरतें पूरी होती है। इस तरह ज़कात अदा करने की बरकत से आपको इंसानी हमदर्दी का भी सवाब मिल रहा है। जो लोग अपनी हलाल कमाई की ज़कात अदा करते रहते हैं उन्हें इसकी बरकत से चाहे जितनी दौलत मिल जाए वह घमंड नहीं करते, तकब्बुर नहीं करते, अकड़ते नहीं बल्कि अपने रब की इस अता पर उसका शुक्र अदा करते हैं, क्योंकि अल्लाह पाक ने यही तालीम दी है कि अगर तुम मेरा शुक्र अदा करते रहोगे तो मैं तुम्हें खूब अदा अता करूंगा।
अल्लाह पाक ने कुरान मजीद में ज़कात लेने वालों के बारे में बताया है कि 7 तरह के लोग ज़कात लेने के हकदार है और इन्हीं लोगों को देने से ज़कात अदा होगी, इसलिए ज़रूरी है कि यह रकम हक़दारो को ही दी जाए यह भी याद रखना चाहिए कि ज़कात अपने दीनी भाई बहनों की इमदाद का एक फंड है दूसरों को देने से यह हक अदा नहीं होगा।
ज़कात लेने के हकदार
फकीर- जिस के पास ज़रूरत से काम माल हो।
मिस्कीन- ऐसा गरीब इंसान जिस के पास कुछ न हो।
आमिल- ज़कात वसूल करने के लिए इस्लामी हाकिम की तरफ से मुक़र्रर किया गया खादिम भी ज़कात दिए जाने और लेने का हकदार हैं।
गुलाम- जो किसी की गुलामी में फंसा हुआ हो लेकिन आजकल गुलाम और गुलामी का चलन ख़त्म हो चूका हैं।
कर्जदार- जो क़र्ज़ के बोझ से फंसा हुआ हो
फ़ी सबिलिल्लाहः- अल्लाह के रास्ते में जिहाद करने वाले ज़कात लेने के हक़दार हैं।
मुसाफिर- सफर के दौरान कोई मुसाफिर मुसीबत में आ जाये और ज़रूरतमंद हो जाये भले ही वह मालदार हो लेकिन सफर में किसी मज़बूरी से परेशान हाल हो तो उसे ज़कात देना जायज़ हैं।
ऊपर लिखे जरूरतमंदों में से आप जिसे भी ज़कात देंगे ज़कात अदा हो जाएगी, लेकिन ज़कात अदा करते वक्त सबसे पहले अपने खानदान वालो, फिर रिश्तेदारों को देखना जरूरी है। अगर घर खानदान और रिश्तेदारों में कोई जरूरतमंद है तो सबसे पहले इनकी मदद करना अफजल है।
साल पूरा हो तो अच्छी तरह अपनी मलियत का हिसाब लगाएं फिर उसका चालीसवां हिस्सा 2.5 प्रतिशत निकाल कर अलग रख दे और उसे ज़रूरतमंदो में तक्सीम कर दें।
इस्लाम में मुसलमानों की माली हालत बेहतर बनाने व मदद करने के लिए अल्लाह पाक ने ज़कात अदा फ़रमाई हैं, अगर आदमी इस हकीकत पर गौर करें और इमानदारी से हर साल हक़दारो को उनका हक पहुंचाया करें तो चंद सालों में एक बड़ी तब्दीली नज़र आने लगेगी। लेकिन अफसोस आजकल लोग इसकी अहमियत नहीं समझते हैं, ज्यादातर लोग ज़कात नहीं देते और जो देते हैं तो इस बात का ख्याल नहीं रखते कि हम जिसको ज़कात दे रहे हैं वह ज़कात लेने का हकदार हैं भी या नहीं। इसी लापरवाही की वजह से ज़कात की रकम उल्टे सीधे हाथों में पहुंच जाती है, और रमज़ान के मुबारक महीने में ना जाने कितने उल्टे सीधे लोग फर्जी रसीद लेकर छोटे बड़े शहरों में घूम घूम कर एक बड़ी रकम जमा कर लेते हैं। अल्लाह खैर फरमाए !
यही वजह है कि आज हमारी तालिमी इदारों का हाल भी दिन-ब-दिन खराब होता जा रहा हैं।
अल्लाह हमें नेक तौफीक दे आमीन ।