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ज़कात क्या हैं ? (What is Zakat)

ज़कात क्या हैं ? (What is Zakat)

कुरान मजीद में अल्लाह पाक ने 82 जगहों पर अपने बन्दों को ज़कात अदा करने की ताकीद फ़रमाई हैं। इतनी सख्त ताकीदो के बावजूद जो मुसलमान अपने माल की सालाना ज़कात अदा नहीं करते गोया वह 82 बार अपने रब की नाफरमानी करते हैं। शायद लोग यह सोच कर इतनी बड़ी नादानी करते हैं कि ज़कात देने से माल कम हो जाएगा यह उनकी बड़ी नादानी व भूल है ऐसा सोचना भी गुनाह है।

जकात अदा करने का मतलब यह है कि आप अपने माल का 40 वां हिस्सा आखिरत के लिए मनी ऑर्डर कर रहे हैं, जो आपके लिए आखिरत के बैंक में जमा हो रहा है। इस तरह अपने माल का फायदा आखिरत में आप ही उठाएंगे और दुनिया में यह फायदा हो रहा है कि जकात अदा करने की बरकत से आपका माल पाक हो रहा है उसमें बरकत हो रही है माल में इज़ाफ़ा हो रहा हैं।

ज़कात की बदौलत कौम के गरीबों, जरूरतमंदों की जरूरतें पूरी होती है। इस तरह ज़कात अदा करने की बरकत से आपको इंसानी हमदर्दी का भी सवाब मिल रहा है। जो लोग अपनी हलाल कमाई की ज़कात अदा करते रहते हैं उन्हें इसकी बरकत से चाहे जितनी दौलत मिल जाए वह घमंड नहीं करते, तकब्बुर नहीं करते, अकड़ते नहीं बल्कि अपने रब की इस अता पर उसका शुक्र अदा करते हैं, क्योंकि अल्लाह पाक ने यही तालीम दी है कि अगर तुम मेरा शुक्र अदा करते रहोगे तो मैं तुम्हें खूब अदा अता करूंगा।

अल्लाह पाक ने कुरान मजीद में ज़कात लेने वालों के बारे में बताया है कि 7 तरह के लोग ज़कात लेने के हकदार है और इन्हीं लोगों को देने से ज़कात अदा होगी, इसलिए ज़रूरी है कि यह रकम हक़दारो को ही दी जाए यह भी याद रखना चाहिए कि ज़कात अपने दीनी भाई बहनों की इमदाद का एक फंड है दूसरों को देने से यह हक अदा नहीं होगा।

ज़कात लेने के हकदार

फकीर- जिस के पास ज़रूरत से काम माल हो।
मिस्कीन- ऐसा गरीब इंसान जिस के पास कुछ न हो।
आमिल- ज़कात वसूल करने के लिए इस्लामी हाकिम की तरफ से मुक़र्रर किया गया खादिम भी ज़कात दिए जाने और लेने का हकदार हैं। 
गुलाम- जो किसी की गुलामी में फंसा हुआ हो लेकिन आजकल गुलाम और गुलामी का चलन ख़त्म हो चूका हैं।
कर्जदार- जो क़र्ज़ के बोझ से फंसा हुआ हो
फ़ी सबिलिल्लाहः- अल्लाह के रास्ते में जिहाद करने वाले ज़कात लेने के हक़दार हैं।
मुसाफिर- सफर के दौरान कोई मुसाफिर मुसीबत में आ जाये और ज़रूरतमंद हो जाये भले ही वह मालदार हो लेकिन सफर में किसी मज़बूरी से परेशान हाल हो तो उसे ज़कात देना जायज़ हैं।

ऊपर लिखे जरूरतमंदों में से आप जिसे भी ज़कात देंगे ज़कात अदा हो जाएगी, लेकिन ज़कात अदा करते वक्त सबसे पहले अपने खानदान वालो, फिर रिश्तेदारों को देखना जरूरी है। अगर घर खानदान और रिश्तेदारों में कोई जरूरतमंद है तो सबसे पहले इनकी मदद करना अफजल है।
साल पूरा हो तो अच्छी तरह अपनी मलियत का हिसाब लगाएं फिर उसका चालीसवां हिस्सा 2.5 प्रतिशत निकाल कर अलग रख दे और उसे ज़रूरतमंदो में तक्सीम कर दें।

इस्लाम में मुसलमानों की माली हालत बेहतर बनाने व मदद करने के लिए अल्लाह पाक ने ज़कात अदा फ़रमाई हैं, अगर आदमी इस हकीकत पर गौर करें और इमानदारी से हर साल हक़दारो को उनका हक  पहुंचाया करें तो चंद सालों में एक बड़ी तब्दीली नज़र आने लगेगी। लेकिन अफसोस आजकल लोग इसकी अहमियत नहीं समझते हैं, ज्यादातर लोग ज़कात नहीं देते और जो देते हैं तो इस बात का ख्याल नहीं रखते कि हम जिसको ज़कात दे रहे हैं वह ज़कात लेने का हकदार हैं भी या नहीं। इसी लापरवाही की वजह से ज़कात की रकम उल्टे सीधे हाथों में पहुंच जाती है, और रमज़ान के मुबारक महीने में ना जाने कितने उल्टे सीधे लोग फर्जी रसीद लेकर छोटे बड़े शहरों में घूम घूम कर एक बड़ी रकम जमा कर लेते हैं। अल्लाह खैर फरमाए !

यही वजह है कि आज हमारी तालिमी इदारों का हाल भी दिन-ब-दिन खराब होता जा रहा हैं।
अल्लाह हमें नेक तौफीक दे आमीन । 

अल्लाह तआला के 99 नाम (99 Names of Allah)

अल्लाह तआला के 99 नाम (99 Names of Allah)

हिंदी में अल्लाह तआला के 99 नाम और उनका मतलब, पढ़े और शेयर किए बिना मत छोड़ना

01- अल्लाह (सबसे बड़ा नाम)
02- अर रहमान (बहुत रहम वाला)
03- अर रहीम (बहुत बड़ा मेहरबान)
04- अल मलिक (हक़ीक़ी बादशाह )
05- अल कुद्दूस (बहुत ज़्यादा पाक)
06- अस सलाम (सलामती वाला)
07- अल मुअमिन (अमन देने वाला)
08- अल मुहैमिन (निगहबान)
09- अल अज़ीज़ (इज़्ज़त के काबिल)
10- अल जब्बार (ज़बरदस्त)
11- अल मुतकब्बिर (बड़ाई वाला)
12- अल ख़ालिक़ (पैदा करने वाला)
13- अल बारी (सूरत बनाने वाला)
14- अल मुसव्विर (सूरत देने वाला)
15- अल गफ़्फ़ार (बड़ा बख़्शने वाला)
16- अल कह्हार (क़हर करने वाला)
17- अल वह्हाब (बहुत ज़्यादा देने वाला)
18- अर रज़्ज़ाक (रोज़ी देने वाला)
19- अल फत्ताह (खोलने वाला)
20- अल अलीम (जानने वाला)
21- अल काबिज़ (कब्ज़ा करने वाला)
22- अल बासित (फ़र्राखी देने वाला)
23- अल ख़ाफ़िज़ (गिराने वाला)
24- अर राफ़िअ (उठाने वाला)
25- अल मुइज़ (इज़्ज़त देने वाला)
26- अल मुज़िल (ज़लील करने वाला)
27- अस समीअ (सुनने वाला)
28- अल बसीर (देखने वाला)
29- अल हकम (फ़ैसला देने वाला)
30- अल अद्ल (इंसाफ करने वाला)
31- अल लतीफ़ (नरमी करने वाला)
32- अल ख़बीर (ख़बर रखने वाला)
33- अल हलीम (बुर्दबार)
34- अल अज़ीम (बहुत बड़ा)
35- अल ग़फ़ूर (बार बार बख़्शने वाला)
36- अश शकूर (बहुत अज्र देने वाला)
37- अल अली (बहुत बुलन्द)
38- अल कबीर (बहुत बड़ा)
39- अल हफ़ीज़ (संभालने वाला)
40- अल मुकीत (रोज़ी देने वाला)
41- अल हसीब (हिसाब लेने वाला)
42- अल जलील (बुज़ुर्गी वाला)
43- अल करीम (बड़ा सख़ी)
44- अर रक़ीब (निगहबान)
45- अल मुजीब (दुआ कुबूल करने वाला)
46- अल वासिअ (कुशादगी वाला)
47- अल हक़ीम (हिकमत वाला)
48- अल वदूद (भलाई चाहने वाला)
49- अल मजीद (बड़ी शान वाला)
50- अल बाइस (उठाने वाला)
51- अश शहीद (गवाह)
52- अल हक़ (सच्चा और साबित)
53- अल वकील (कारसाज़)
54- अल क़वी (ताक़तवर)
55- अल मतीन (ज़बरदस्त क़ुव्वत वाला)
56- अल वली (मददग़ार)
57- अल हमीद (तारीफ़ किया गया)
58- अल मुह्सी (गिनती करने वाला)
59- अल मुब्दी (पहले पहल पैदा करने वाला)
60- अल मुईद (दोबारा पैदा करने वाला)
61- अल मुहयी (ज़िन्दा करने वाला)
62- अल मुमीत (मारने वाला)
63- अल हैय् (हमेशा ज़िन्दा रहने वाला)
64- अल कय्यूम (दुनिया क़ायम रखने वाला)
65- अल वाजिद (हर चीज़ को पालने वाला)
66- अल माजिद (बड़ी इज़्ज़त वाला)
67- अल वाहिद (अकेला)
68- अल अहद (एक)
69- अस समद (जो किसी का मोहताज न हो)
70- अल क़ादिर (क़ुदरत रखने वाला)
71- अल मुक़्तदिर (पूरी क़ुदरत रखने वाला)
72- अल मुक़द्दिम (आगे करने वाला)
73- अल मुअख्खिर (पीछे करने वाला)
74- अल अव्वल (सबसे पहले)
75- अल आख़िर (सब के बाद)
76- अज़्ज़ाहिर (सब पर ज़ाहिर)
77- अल बातिन (सबसे पोशीदा)
78- अल वाली (हक़ीक़ी मालिक)
79- अल मुतआली (बहुत ही बुलन्द)
80- अल बर्र (तमाम नेकी के जरिया)
81- अत तव्वाब (तौबा क़ुबूल करने वाला)
82- अल मुन्तकिम (इन्तिक़ाम लेने वाला)
83- अल अफूव (दरगुज़र करने वाला)
84- अर रऊफ (शफ़क़त करने वाला)
85- मालिकुल मुल्क (बादशाहत का मालिक)
86- जुल जलालि वल इकराम (इज़्ज़त और बुलंदी अता करने वाला)
87- अल मुक़सित (इंसाफ़ करने वाला)
88- अल जामिअ (जमा करने वाला)
89- अल ग़नी (किफ़ायत करने वाला)
90- अल मुग़नी (बेपरवाह करने वाला)
91- अल मानिअ (रोकने वाला)
92- अज़ ज़ार (नुकसान पहुँचाने वाला)
93- अन नाफ़िअ (नफ़ा पहुँचाने वाला)
94- अन नूर (मुनव्वर करने वाला)
95- अल हादी (रास्ता दिखाने वाला)
96- अल बदीअ (बेमिसाल पैदा करने वाला)
97- अल बाक़ी (बाक़ी रहने वाला)
98- अल वारिस (हक़ीक़ी वारिस)
99- अर रशीद (सीधी राह दिखाने वाला)

दुरूद शरीफ की फ़ज़ीलत (Superiority of Darood Sharif)

दुरूद शरीफ की फ़ज़ीलत (Superiority of Darood Sharif)

दुरुद शरीफ पढ़ने के बेशुमार फायदे हैं। दुरुद शरीफ हर मुसीबत, हर बीमारी का इलाज हैं, इसको पढ़ने से आप कामयाबी की बुलंदी हासिल कर सकते हो, दुरुद शरीफ पढ़ने से इंसान के गुनाह बख़्श दिए जाते हैं। दुरुद पढ़ने से दिल ज़िंदा हो जाता हैं। आज हम कुछ दुरुद शरीफ की फ़ज़ीलत और फायदे के बारे में बात करेंगे। जिस पर अमल करके आप कई सारे फायदे हासिल कर सकते हो।

कुछ अफ़ज़ल दुरुद शरीफ और उसके फायदे 


अल्लाहु रब्बू मुहम्मदिन सल्ला अलैहि वसल्ल्मा नहनु इबादु मुहम्मदिन सल्ला अलैहि वसल्ल्मा
यह दुरुद शरीफ काम से काम 100 मर्तबा पढ़ने से दीन व दुनिया के हर काम में कामयाबी आप के कदम चूमेगी नाकामी जैसे हालात दूर हो जायेंगे।

सल्लल्लाहु अलन्नबिय्यिल उम्मिययी व आलिहि सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सालतव व सलामन अलैका या रसूल्लाहि
यह दुरुद शरीफ हर जुमा की नमाज़ के बाद मदीना मुनव्वरा की जानिब मुँह करके 100 मर्तबा पढ़ने से बेशुमार फ़ज़ाइल व बरकात हासिल होते हैं।

अल्लाहुम्मा सल्लि अला सय्यदीना व मौलाना मुहम्मदीव व अला आलिही व सल्लिम
जो शख्स यह दुरुद शरीफ पढ़े अगर खड़ा था तो बैठने से पहले और बैठा था तो खड़े होने से पहले उस के गुनाह माफ़ कर दिए जायेंगे।

अल्लाहुम्मा सल्लि अला सय्यदीना व मौलाना मुहम्मदीव व अला आलि सय्यदीना व मौलाना मुहम्मदिन कमा तुहिब्बु व तर्दा लहू
जो शख्स एक मर्तबा यह दुरुद शरीफ पढता हैं तो सत्तर फ़रिश्ते एक हज़ार दिन तक उसके नाम-ऐ-आमाल में नेकियां लिखते हैं।

अल्लाहुम्मा सल्लि अला सय्यदीना मुहम्मदीव व अला आलिही बि-कदरी हुसनिहि व जमालिहि
जो शख्स किसी मुसीबत या परेशानी में हो तो इस दुरुद शरीफ को एक हज़ार मर्तबा मुहब्बत व शोक से पढ़े अल्लाह तआला उसकी मुसीबत टाल देगा और उसको अपनी मुराद में कामयाब कर देगा।

अल्लाहुम्मा सल्लि अला मुहम्मदीव व आलिहि व असहाबिहि बि-अदा-दी-मा-फी जमीइल क़ुरआनी हरफन हरफव्वा बि-अदा-दि कुल्लि हरफिन अलफ़न अलफ़न
तीन मर्तबा सुबह शाम यह दुरुद शरीफ पढ़ने से ज़बरदस्त दीनी व दुनियावी कामयाबी मिलती हैं।

अल्लाहुम्मा सल्लि व सल्लिम अलन नबीय्यत ताहिरि
यह दुरुद शरीफ एक ही साँस में 11 मर्तबा पढ़ने से मुँह में पैदा होने वाली बदबू दूर हो जाती हैं।

सल्लल्लाहु अलैका या मुहम्मदु नूरम-मिन नुरिल्लाहे
कोई रंज व गम या मुसीबत आ जाये तो दिल से यह दुरुद पाक को पढ़ने से हर किस्म की मुसीबते, तकलीफे और गम ख़त्म हो जाते हैं।

जानिए आयते करीमा पढ़ने के फायदे और इसका महत्व के बारे में

इस्लाम धर्म में कुरआन को विशेष महत्त्व दिया गया है। कुरआन की हर आयत एक दिशा, एक मार्गदर्शन और एक रौशनी है जो हमें सच्चाई की ओर ले जाती है। ऐ...

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