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अच्छी इस्लामी और दीनी बातें (Acchi Islami or Deeni Baatein)

अच्छी इस्लामी और दीनी बातें (Acchi Islami or Deeni Baatein)

आज के आर्टिकल में हम कुछ और अच्छी दीनी और इस्लामी बातों पर नज़र डालेंगे इससे पहले भी हम एक आर्टिकल में कुछ दीनी और इस्लामी बातों को बता चुके हैं आज फिर हम कुछ और इस्लामी बातों के बारें में आप को बताएँगे। आपसे गुज़ारिश हैं की इन सब बातों पर आप गौर करे और जो बताया जा रहा हैं उसे अच्छे से पढ़े और समझे और ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को बताएं। 

  • रमज़ान के रोज़े फ़र्ज़ हैं जो शख्स इसके फ़र्ज़ होने से इंकार करे वह काफिर हैं।
  • रमज़ान का रोज़ा छोड़ देना इतना भारी हैं की सारी उम्र रोज़ा रखने के बाद भी उसका हक़ अदा नहीं होगा। 
  • जो लोग रोज़े में होने के बावजूद झूठ, चुगली और किसी की ग़ीबत करते हैं ऐसे लोग रोज़े के सवाब के हक़दार नहीं होते। 
  • अल्लाह को ऐसे लोग बहुत प्यारे लगते है जो रमज़ान के महीने में ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को रोज़ा इफ्तारी करवाते हैं। 
  • जो शख्स अपने दीनी भाई और बहनो की बख्शीश के लिए दुआ करता हैं। अल्लाह पाक उसे इसके बदले में ढेर सारी नेकी अता फरमाता हैं।
  • रमज़ान के महीने में ज़्यादा से ज़्यादा ज़कात देने वाले लोगों के घरो में कभी पैसो की तंगी नहीं आती हैं। 
  • जब दो मुसलमान मिलते हैं और सलाम व मुसाफहा के बाद दुरूद शरीफ पढ़ते है तो उनके अलग होने से पहले ही उनके गुनाह बख्श दिए जाते हैं। 
  • किसी ज़रूरतमंद दीनी भाई को क़र्ज़ देने वालो को उससे दो गुना खैरात करने जितना सवाब हासिल होता हैं। 
  • किसी का दिल खुश करना भी एक तरह की इबादत हैं। 
  • सलाम का जवाब देना, किसी बीमार की खैरियत मालूम करना, जनाज़े में शरीक होना, किसी की दावत कबूल करना इस्लामी हक़ हैं। 
  • किसी के घर जाओ तो तीन बार उनसे अंदर आने की इजाज़त लो अगर तीनो मर्तबा इजाज़त न मिले तो वापिस चले जाओ। 
  • अपने इलाके या शहर के गरीबो के घरों पर नज़र ज़रूर रखो। ज़रूरत होने पर जो ज़रूरत की चीज़े हैं जितना हो सके उतना उन्हें दे दो। यह भी एक तरह की इबादत हैं।
  • हराम पैसो से ख़रीदे कपड़ो में नमाज़ कबूल नहीं होती। 
  • किसी की तकलीफ दूर करने वाले, नबी को सुन्नत को ज़िंदा रखने वाले और नबी पर दरूद भेजने वाले क़यामत के दिन अर्शे इलाही के साये में रहेंगे। 
  • ऐसे वलिमों में जाना बहुत बुरा हैं जहाँ सिर्फ मालदारों को बुलाया जाता हैं और गरीब को न बुलाया जाये। 
  • अगर किसी शख्स से दीन की कोई बात पूछी जाये और वह जानते हुए भी जान बुझ कर छुपाये तो क़यामत में ऐसे शख्स के मुँह में आग लगा दी जाएगी। 
  • माँ बाप की खिदमत करना, अपने हक़ के लिए लड़ना, कमज़ोर गरीब लोगों के लिए लड़ना और किसी का घर आबाद करना भी जिहाद हैं । 
  • अपने भाई को मुसीबत में होने पर खुश होने वाला शख्स किसी न किसी दिन उससे भी बड़ी मुसीबत में पड़ जायेगा। 
  • जिस घर में सूरह बकर: पढ़ी जाती हैं उस घर में कभी शैतान नहीं आता।
  • बड़े भाई का हक़ छोटे भाई पर वैसा ही हैं जैसा बाप का हक़ अपने बेटे पर। 
  • जिसने किसी यतीम लड़की की अच्छी परवरिश करके उसकी शादी अच्छे घर में कर दी ऐसा शख्स अल्लाह के बहुत करीब रहेगा।
  • झूठी गवाही देना शिर्क के बराबर हैं। 
  • जो लोग अपने रिश्तेदारों के घरों में हो रहे झगड़ो को देखकर खुश होते हैं। ऐसे लोगों का नसीब कभी नहीं चमकता। 
  • शिर्क के बाद सबसे बड़ा गुनाह माँ बाप की नाफरमानी करना हैं। 
  • अमामा (साफा) बांध कर नमाज़ पढ़ने से 25 गुना ज़्यादा सवाब हासिल होता हैं।
  • अगर रोज़ी में बरकत चाहते हो तो माँ बाप और रिश्तेदारों से अच्छा बर्ताव करो।
  • जो आदमी रोज़ाना कलमए तैयबा ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूल्लाह 100 मर्तबा पढ़ेगा उसका चेहरा क़यामत के दिन चाँद की तरह रोशन होगा। 
  • जो आदमी भूक की हालत में यासीन शरीफ पढ़ेगा। अल्लाह पाक उसकी ज़िन्दगी को रोशन कर देगा।

तलाक क्या हैं? क्यों, कब, और कैसे दें? (Talak Kya hain? Kab or Kaise De)

तलाक क्या हैं? क्यों, कब, और कैसे दें?

मिया बीवी या पति पत्नी के बीच किसी वजह से हो रहे मनमुटाव या झगड़े की वजह से उनके बीच के रिश्ते को तोड़ने को तलाक कहा जाता हैं। सीधी ज़बान में कहे तो मिया बीवी के बीच के रिश्ते को ख़त्म करने उसे तोड़ने को तलाक कहा कहा जाता है। इस्लाम में तलाक को जायज़ करार दिया हैं क्यूंकि तलाक एक ऐसा फैसला हैं जिसमें अगर मिया बीवी दोनों आपस में साथ रहने से खुश नहीं हैं तो इस्लाम उन्हें इजाज़त देता हैं की आप तलाक लेकर एक दूसरे के बिना भी ख़ुशी से रह सकते हैं। क़ुरान और हदीस की रौशनी में तलाक का बयान काफी तफ्सील में बताया गया हैं। लेकिन आजकल के दौर में तलाक को मर्दो ने एक दस्तूर सा बना लिया हैं। उन्हें पता ही नहीं की तलाक़ कब देना हैं? और क्यों देना हैं? आजकल के मर्द जब मर्ज़ी चाहे तलाक दे देते हैं, ये भी नहीं सोचते की इससे एक औरत की किस तरह ज़िन्दगी बर्बाद हो सकती हैं। 

क्यों होते हैं इतने तलाक?

तलाक एक ऐसा शब्द बन गया हैं जिससे मर्द इस शब्द का फ़ायदा उठा कर औरत पर ज़ुल्म करता हैं। मर्द को जब औरत पर गुस्सा आता हैं या कहे किसी बात से पर औरत से झगड़ा हो जाता हैं तो वह इस तलाक शब्द का इस्तेमाल करके औरत को डराता हैं। उसे लगता हैं की यह शब्द अगर बोल दिया तो ये चुप हो जाएगी और मुझ से बहस नहीं करेगी। आजकल सुनने में आता हैं की बीवी ने अच्छा खाना नहीं बनाया तो तलाक़ दे दिया। मायके में ज़्यादा रुक गयी तो पोस्ट कार्ड से तलाक भेज दिया और न जाने कैसी कैसी तलाक की वजह सुनने में आती हैं जिसे सुनकर हैरत होती हैं की इतनी छोटी सी बात पर तलाक दे दिया। 

हम मानते हैं की मिया बीवी में कभी कभी मनमुटाव हो जाते हैं। उसकी कुछ भी वजह हो सकती हैं लेकिन इसका मतलब यह नहीं की एकदम से तलाक देकर अपने रिश्ते को ख़त्म कर दिया जाये। जो लोग ऐसे मज़ाक में या छोटी छोटी बातों पर तलाक दे देते हैं उन पर अल्लाह की बहुत लानत बरसती हैं। ऐसे लोग गुस्से में तलाक तो दे देते मगर कुछ देर बाद या कुछ दिनों बाद अपने द्वारा लिए तलाक के फैसले को लेकर पछताते हैं। तलाक कोई मामूली बात नहीं हैं बल्कि यह ज़िन्दगी का एक बहुत भयानक हादसा हैं। जायज़ कामों में अल्लाह को सबसे ज़्यादा नापसंद काम तलाक है। एक बार में ही तीन तलाक देने वालों पर अल्लाह तआला ने लानत फ़रमाई हैं। क़ुरान और हदीस की रौशनी में तलाक के बारे में बड़ा तफ्सील से बयान दिया गया हैं। 

तलाक देने का तरीका 

तलाक का शरई तरीका ये है की अगर किसी बात से शौहर बीवी में झगड़ा हो जाये या शौहर फैसला कर ले की अब बीवी के साथ नहीं रहना है तो एक बार ठन्डे दिमाग से सोचे और आपस में सुलह की कोशिश करे। अगर तलाक ही चाहिए तो उसका तरीका यह है की जब बीवी हैज़ (औरत का मासिक धर्म) से पाक हो जाये तो उसे एक तलाक दे दे, हो सकता हैं बीवी अपनी गलती सुधार ले या आदमी का गुस्सा ठंडा हो जाये और दोनों वापिस एक हो जाना चाहे। 

एक तलाक देने की सूरत में शौहर अगर चाहे तो बिना निकाह किये उसे दोबारा रख सकता हैं। अगर फिर भी तलाक ही चाहते हैं तो दोबारा जब औरत दूसरे मासिक धर्म से पाक हो जाये तो फिर दूसरा तलाक दे दे। अब भी अगर शौहर और बीवी दोनों एक साथ रहना चाहते हैं तो शौहर इद्दत के अंदर या उसके बाद बीवी की मर्ज़ी से उसे वापिस रख सकता हैं। उसके बावजूद भी अगर तलाक ही एक आखरी फैसला हैं तो तीसरे महीने औरत जब महावारी से पाक हो जाये तो आखरी तलाक दे दें तो उस केस में तलाक हो जाती हैं। इस तरह यह तीन तलाकें हो गयी। अब बीवी शौहर के लिए हराम हो गयी। अब अगर वह साथ में रहना चाहते हैं तो इस्लाम में एक रास्ता बताया हैं जिसे हलाला कहते हैं। लेकिन यह इतना शर्मनाक और वाहियात तरीका हैं की कोई भी मर्द उसे सोच कर अपनी बीवी को कभी तलाक देने का ख्याल अपने मन में नहीं लाएगा।

हलाला क्या हैं ?

रसुलल्लाह सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम फरमाते हैं हलाला करने वाले और हलाला कराने वाले दोनों पर अल्लाह की लानत हैं। हलाला यह हैं की तलाक पाने के बाद औरत इद्दत के दिन पुरे करे और फिर किसी और मर्द से निकाह कर ले और उसके साथ रहे। उसका दूसरा शौहर उससे हमबिस्तरी करे। फिर अगर वह चाहे तो अपनी ख़ुशी से उसे तलाक दे सकता हैं। इस तरह औरत दूसरे शौहर की इद्दत गुज़ार कर अब अगर चाहे तो पहले शौहर से फिर से निकाह कर सकती हैं। ज़रा सोचिये कौन गैरत मंद मर्द ऐसा चाहेगा की उसकी बीवी किसी और के साथ हमबिस्तरी करे। ऐसे मर्दो को तलाक से पहले यह भी सोचना चाहिए आपकी बीवी एक पराये मर्द के साथ कैसे वह सब चीज़े करेगी? क्या बीतेगी उस औरत पर? आखिर तलाक जैसा कदम उठाया ही क्यों जाये अगर दोनों आपस में वापिस से रहना चाहते हैं। क्यूंकि हलाला में बिना हमबिस्तरी करे अगर तलाक दे दिया तो वह हलाला नहीं माना जायेगा। इस केस में बीवी अपने पहले शौहर से निकाह नहीं कर सकती। 

तलाक को लेकर हमारी नसीहत 

मिया और बीवी के पाक रिश्ते की कद्र की जाये और गुस्से में या नादानी में तलाक जैसा कदम न उठाये की बाद में पछताना पड़े। यह भी हो सकता है मिया और बीवी दोनों में से कोई एक ख़राब हो। मतलब उसमे काफी बुराई मौजूद हो या फिर दोनों ही एक जैसे हो। दोनों आपस में ही एक दूसरे को पसंद नहीं करते हो या ऐसा हो की औरत के रंग मिज़ाज,अख़लाक़ सही नहीं हो या आदमी शराबी, मवाली या औरत को मारता पीटता हो। इस केस में अगर आपस में रिश्ता नहीं बन रहा हो तो फिर आप तलाक ले सकते हैं। 

लेकिन अगर ऐसा कुछ नहीं हैं तो फिर तलाक का फैसला लेते समय दस बार सोचे और फिर अपना फैसला ले क्यूंकि यह ज़िन्दगी ख़राब करने वाला फैसला हैं। ऐसा फैसला लेने से पहले आपसी रिश्ते सुधारें।आपसी झगडे को ख़त्म करे। रिश्तेदारों से पहले सलाह मशवरा ले तब जाकर तलाक का फैसला लिया जाये। मिया बीवी दोनों को चाहिए की आपस में मिलजुल कर रहे। एक दूसरे से ज़बान दराज़ी से न करे। दोनों में से कोई एक गुस्से में कुछ बोल रहा है तो दूसरा चुप हो जाये क्यूंकि ख़ामोशी ऐसी चीज़ है जो बिगड़ते रिश्तो को वापिस जोड़ सकती है। हमारी हर मर्द और औरत मिया बीवी से यही गुज़ारिश हैं की आपस में प्यार से रहे, ख़ुशी से रहे और ज़िन्दगी भर एक दूसरे के हमसफ़र बने रहे। 


अल्लाह हाफिज

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