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इस्लाम में ग़ीबत क्या हैं? What is Gheebat in Islam

इस्लाम में ग़ीबत क्या हैं? What is Gheebat in Islam

पीठ पीछे किसी की बुराई बयां करने को ग़ीबत कहा जाता हैं। यह गुनाहे कबीरा हैं। क़ुरान शरीफ में ग़ीबत करने वाले को अपने मुर्दा भाई का गोश्त खाने वाला जैसा कहा गया हैं। यह बीमारी इतनी आम हो चुकी हैं की लोग इस से बिलकुल नहीं डरते न इसके अंजाम की परवाह करते हैं। ग़ीबत की नसुहात से ईमान की हरारत खत्म हो जाती हैं। मरते वक़्त ईमान खतरे में रहता हैं। ग़ीबत करने वाले की दुआ कबूल नहीं होती। ग़ीबत से नमाज़ और दूसरी इबादतों का नूर खत्म हो जाता हैं। ग़ीबत करना तो ज़िना से भी बदतर गुनाह हैं। गीबत करने वाले को जहन्नम में मुर्दार खाना पड़ेगा।

ग़ीबत के बारे में एक दिन अल्लाह के रसूल ने सहाबा से पूछा क्या तुम जानते हो की ग़ीबत क्या हैं? सहाबा ने अर्ज़ किया, या रसूलल्लाह आप ही बेहतर जानते हो। आपने फ़रमाया तुम अपने भाई के बारे में ऐसी बात करो जो उसे पसंद न हो। सहाबा ने अर्ज़ किया या रसूलल्लाह अगर वह बात उसके अंदर हो तो? आपने फ़रमाया इसको ही तो ग़ीबत कहते हैं। अगर वह बुराई उसके अंदर न हो तो उसे इलज़ाम कहा जायेगा।

बहरहाल ग़ीबत बहुत सारी तबहियो की जड़ हैं। इसकी वजह से आज हमारे घर लड़ाई झगड़ो का अखाडा बन गए हैं। आजकल देखा जाता हैं लोगो एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए पीठ पीछे उस शख्स की बुराई करते हैं। हमारे घरो में ही देख लो कोई अपने भाई की बुराई करता हैं तो कोई भाभी की कोई उनके बच्चो की बुराई करता हैं। तो कोई उनके अच्छे रहन सहन की कोई अगर ईमानदारी से ज़्यादा पैसा कमा रहा है तो लोग कहते हैं ये तो हराम का खाता हैं। हर कोई एक दूसरे की बुराई करने में लगा हैं। चाहे वो काम धंधा के मामले में हो या अच्छी नौकरी के मामले में लोग इन हरकतों से बाज़ नहीं आते,क्यूंकि उन्हें अल्लाह का खौफ ही नहीं हैं।

जो लोग ऐसा कर रहे हैं वो मौत के वक़्त बहुत घबराएंगे। उन्हें मौत इतनी आसानी से नसीब नहीं होगी। इस ग़ीबत की वजह से लोग आपस में लड़ रहे हैं। एक दूसरे को मार रहे हैं फिर लोग कहते हैं खुदा हमारी नहीं सुनता। आप जो भी हरकत दिन भर में करते हैं खुदा के पास उन सब हरकतों का हिसाब रहता हैं। आज लोग दूसरे धर्म के लोगो की बुराई करते हैं फलाना इनका धर्म ऐसा हैं वैसा हैं। अगर आप अपने दीन पर ध्यान देंगे तो इंशाल्लाह पूरी कायनात आपके दीन को अपना लेगी।

खुदा के लिए हमे चाहिए की हम अपनी ज़बान पर काबू रखे लोगो की बुराइयाँ करना बंद करे। इस्लाम के उसूलो पर चले ताकि अल्लाह हमें कब्र व जहन्नम के अज़ाब से बचा ले   आमीन।

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