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इस्लाम के पांच प्रमुख स्तम्भ (Five Main Pillars of Islam)

पहला कलमा (First Kalima)

1 कलमा पढ़ना- कलमा एक प्रकार का वाक्य हैं जो इस प्रकार हैं ला इलाहा इलल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह जिसका अर्थ हैं अल्लाह की अलावा कोई और इबादत के लायक नहीं हैं और हज़रत मुहम्मद मुस्तफा सलल्लाहो अलैहि वसल्लम अल्लाह के रसूल हैं।
नमाज़ (Namaz)

2 नमाज़- नमाज़ एक प्रकार की इबादत हैं पवित्र पुस्तक क़ुरान की मुताबिक हर मुसलमान मर्द और औरत को नमाज़ पढ़ने का आदेश दिया गया हैं नमाज़ मुसलमानो पर फ़र्ज़ करार दी गयी हैं मतलब मुस्लमान को नमाज़ हर हाल में पढ़नी चाहिए नमाज़ को छोड़ देना या त्याग देना इस्लाम में एक प्रकार का पाप या कहे गुनाह हैं हर दिन पांच वक़्त की नमाज़ पढ़ने का हुक्म मुसलमानो को दिया गया हैं जो इस प्रकार हैं 

फज़र की नमाज़- यह नमाज़ सूरज की उगने से पहले पढ़ी जाती हैं.
 ज़ोहर की नमाज़- यह नमाज़ दोपहर में करीब 2 बजे के आसपास पढ़ी जाती हैं. 
 असर की नमाज़ -यह नमाज़ शाम को या कहे सूरज के डूबने से कुछ समय पहले पढ़ी जाती हैं.
 मगरिब की नमाज़ -यह नमाज़ सूरज डूबने के तुरंत बाद पढ़ी जाती हैं.
ईशा की नमाज़ - यह नमाज़ रात में पढ़ी जाती हैं या कहे सूरज डूबने के 1 से 2 घंटे बाद.

रोज़ा (Fast)

3 रोज़ा- रोज़ा एक प्रकार की खुदा की इबादत हैं जिसका मतलब हैं अपने आप पर काबू या कहे नियंत्रण रखना रमजान की पाक महीने में पवित्र रोज़े रखे जाते हैं जो की हर मुसलमान पर फ़र्ज़ हैं रोज़े का यह मतलब सिर्फ यह नहीं है की सुबह रोज़े की नियत रखकर कुछ खाले और शाम को रोज़ा खोल ले रोज़ा सिर्फ भूखा प्यासा रहने के लिए नहीं हैं बल्कि रोज़े का मतलब है सूरज उगने से पहले और सूरज के डूबने से कुछ देर पहले तक खाने पीने की चीज़ो तथा सभी बुराइयों जैसे गलत सुनना,गलत बोलना व गलत काम करने बचना हकीकत में रोज़े की हालत में सिर्फ खुदा की इबादत करना जैसे नमाज़ पढ़ना, क़ुरान पढ़ना और अपने गुनाहो की माफ़ी खुदा से मांगना ही रोज़े का मकसद है रोज़ा मुसलमानो पर फ़र्ज़ हैं खुदा ने क़ुरान में कहा हैं की रोज़ा तुम्हारे लिए इसलिए ज़रूरी किया गया हैं की ताकि तुम खुदा से डरो खुदा जो तुम्हे खाने पीने की चीज़े दे रहा हैं उसकी इज़्ज़त करो दिन भर भूखा प्यासा रहकर बुराइयों से बचना और खुदा की इबादत करना ही रोज़े का असली मतलब हैं.रोज़े की हालत में मुसलमानो को भूके इंसान के प्रति हमदर्दी पैदा हो जाती हैं और जिससे वह रमजान के महीने में ज़कात देता हैं।

ज़कात (Zakat)


4 ज़कात- रमजान के पाक महीने में अपनी साल भर की कमाई या कहे अपनी सेविंग का 2.5% हिस्सा गरीब,मिस्कीन और क़र्ज़ में डूबे इंसान को देना ज़कात कहलाता हैं सीधे अल्फाज़ो में ज़कात का मतलब गरीब मजबूर लोगो की मदद करना हैं

कुरआन मजीद में खुदा ने फ़रमाया है की  “ज़कात तुम्हारी कमाई में गरीबों और मिस्कीनों का हक है। 

ज़कात देते वक़्त इस बात का ध्यान रखे की ज़कात उसे ही दी जाये जो वाक़ई में पैसे या खाने से मजबूर इंसान हैं या कहे हकीकत में उसे ज़कात की सबसे ज़्यादा ज़रूरत हैं। ज़कात के बारे में ज़्यादा जानकारी के लिए हमने एक और पोस्ट ज़कात क्या हैं पब्लिश की हैं आप इस लिंक ज़कात क्या हैं पर क्लिक करके उसे पढ़ सकते हैं।

हज (Hajj)


5 हज- हज एक तीर्थ यात्रा हैं जो पवित्र शहर मक्का से जुडी हैं सीधे शब्दों में कहे तो दुनिया के लाखो मुसलमानो का इस्लामी कैलेंडर के आखरी महीने धू अल हिज्जाह में मक्का में एकत्रित होना हज यात्रा कहलाता हैं। जिस मुसलमान की जिस्मानी और माली हालत अच्छी हैं, उसे अपनी ज़िन्दगी में एक बार हज यात्रा ज़रूर करनी चाहिए ये कार्य इस्लाम के 5 ज़रूरी स्तम्भों में से एक हैं। हज के और बारे में हमने आगे की पोस्ट हज और उमराह की फ़ज़ीलत और हज यात्रा से जुडी कुछ ज़रूरी बातें दोनों पोस्टो में में संक्षिप्त में बताया है

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