Disabled Copy Paste

बेनमाज़ी की सजा अज़ाब और अंजाम (Benamazi Ki Saza-Azab-Or-Anjam)

बेनमाज़ी की सजा अज़ाब और अंजाम (Benamazi Ki Saza,Azab or Anjam)

अल्लाह के प्यारे रसूल पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाते हैं, मुस्लमान और काफिर के बीच फर्क करने वाली चीज़ नमाज़ हैं। जिसने जान बुझ कर नमाज़ को छोड़ दिया गोया उसने काफिर का काम किया। एक और हदीस में प्यारे रसूल पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम फरमाते हैं, एक रात मेरे पास दो फ़रिश्ते आये और मुझे अपने साथ लेकर गए। मैंने रास्ते में देखा की एक आदमी ज़मीन पर लेटा हुआ हैं, और एक दूसरा आदमी एक बड़े पत्थर से उसे मार रहा हैं। उसका सिर टुकड़े टुकड़े हो जाता हैं। और पत्थर दूर जा गिरता हैं। जब वह पत्थर लेने के लिए जाता और वापिस आता हैं। इतनी देर में उसका सिर फिर सही हो जाता हैं। वह आदमी फिर अपनी पूरी ताकत से उसके सिर पर पत्थर मारता हैं। इसी तरह वह मारता रहता हैं। मैंने फ़रिश्ते से पूछा यह कौन आदमी हैं? इसका जुर्म क्या हैं? फ़रिश्ते ने जवाब दिया, यह आदमी नमाज़ नहीं पढता था। इसको इसकी सज़ा मिल रही हैं।

प्यारे दीनी भाइयो गौर करो, मस्जिदों में अज़ान की आवाज़ हमारे कानो तक पहुँचती हैं, लेकिन हम सारा काम काज छोड़ कर मस्जिद पहुंचने के बजाय आराम से बैठे टेलीविज़न देखते रहते हैं। अज़ान हो रही होती हैं और हमारा टेलीविज़न चल रहा होता हैं। नमाज़ हो रही हैं और हम फिल्मे, गाने, कार्यक्रम देखने में खोये रहते हैं। जमाअत हो रही होती हैं और हम सड़को, होटलो, चौराहों पर बैठे गप्पे मार रहे होते हैं। न तो हमें अज़ान और नमाज़ की परवाह हैं, और न ही मस्जिद का एहतराम होता हैं।

ताज्जुब की बात तो यह की रमज़ान के महीने में तक ऐसा देखना को मिलता हैं। कुछ लोग इस्लामी लिबास पहन कर घर से निकल जाते हैं लेकिन मस्जिद में नमाज़ पढ़ने की बजाय किसी और महफ़िल में लगे रहते हैं, और वहाँ फ़िज़ूल की दुनियावी बातें करते हैं।

हज़रत औबादा सहाबी फरमाते हैं,अल्लाह के रसूल पैगंबर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मुझे 7 चीज़ो की नसीहत फ़रमाई थी। जिसमे से दो चीज़े यह हैं की -शिर्क मत करना नहीं तो तुम्हारे बदन की बोटी बोटी कर दी जाएगी। दूसरा जान बुझ कर नमाज़ न छोड़ना, क्यूंकि ऐसा आदमी इस्लाम से ख़ारिज हो जाता हैं।

ज़रा गौर करो ऐ मुसलमानो जान बुझ कर नमाज़ छोड़ने वाले हम कैसे मुस्लमान कहलाने के हक़दार हो सकते हैं। जब कभी लड़ने की बात आती हैं तो हम पीछे नहीं रहते लेकिन दीन के कामो से दूर क्यों? अल्लाह के वास्ते ऐ मुसलमानो अपना और नमाज़ का रिश्ता मज़बूत कर लो। मस्जिदों को अपने सजदों से आबाद कर दो। अब भी मौका हैं सच्चे दिल से तौबा करके अपने रब को राज़ी कर लो क्यूंकि अगर रब राज़ी हो गया तो दुनिया की कोई भी मुसीबत तुम पर नहीं आ सकती। गरीबी, बेरोज़गारी, मुसीबतो, रंज और गम लाचारी का एक ही इलाज हैं और वो हैं नमाज़ ।

अल्लाह हम सब को पंजवक्ता नमाज़ पढ़ने की तौफीक अता फरमाए आमीन।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

उमराह क्या होता हैं? जानिए उमराह को करने का तरीका

दुनिया भर के लाखो करोड़ो मुस्लिम उमराह करने के लिए सऊदी अरब के शहर मक्का आते हैं। आप उमराह को पवित्र शहर मक्का में काबा की एक छोटी तीर्थयात्र...

Popular Posts