सूरह कौसर क़ुरान की 108 वीं सूरह हैं। यह क़ुरान के 30 वे पारे में मौजूद हैं। ये क़ुरान की सबसे छोटी सूरह हैं। कुछ लोग इसे मक्की सूरह कहते हैं और कुछ लोग इसे मदनी सूरह कहते हैं। ये सूरह हैं बहुत छोटी लेकिन इसको पढ़ने के बेशुमार फायदे हैं।
सूरह कौसर कब नाज़िल हुई थी?
ये सूरह तब नाज़िल हुआ था जब हमारे प्यारे नबी हज़रत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम बहुत बुरे दौर से गुज़र रहे थे। उस वक़्त मुसलमानो पर बहुत ज़ुल्म हो रहे थे और मुसलमानो की तादाद भी बहुत कम हो गयी थी। उसके अलावा जब हमारे प्यारे नबी की दोनों औलादों की मौत हो गयी थी तब किसी दुश्मन ने प्यारे नबी को कहा था की अब तुम्हारे कोई औलाद नहीं बचेगी। दुश्मनो ने हज़रत मोहम्मद मुस्तफा सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम को कहा था की इस्लाम को आगे बढ़ाने के लिए तुम्हारी नस्लें खत्म हो चुकी हैं अब तुम्हारा कोई वंश नहीं बचा हैं क्यूंकि प्यारे नबी के दोनों बेटों की मौत हो चुकी थी। उस वक़्त हमारे प्यारे नबी की 2 से 3 बेटियां भी थी लेकिन उस वक़्त बेटों को ही वंश चलाने वाला माना जाता था। दुश्मनो ने आपका बहुत मज़ाक बनाया ऐसे बुरे और मुश्किल वक़्त में अल्लाह ने सूरह कौसर को नाज़िल किया।
सूरह कौसर में किन बातों का ज़िक्र हैं?
सबसे पहले जो सबसे ज़रूरी बात इसमें बताई गयी हैं की जब किसी को अपनी ज़िन्दगी से खो देते हैं तब अल्लाह उसे किसी और चीज़ में बदल देता हैं उसके अलावा सूरह कौसर में तीन बहुत ज़रूरी आयतें शामिल हैं जिनमे तीन बातें बताई गयी हैं जो इस प्रकार हैं,
पहली आयत में ये बताया गया हैं की जन्नत में कौसर नाम की एक नदी हैं। जो जन्नती लोगो के लिए बनायीं गयी हैं जिसके किनारे सोने के होंगे और ये नदी मोती के ऊपर बहेगी जिसका पानी दूध से भी ज़्यादा सफ़ेद होगा और शहद से भी ज़्यादा मीठा होगा। ये नदी का पानी सभी जन्नती लोगो के लिए होगी जो हर रोज़ इसका पानी पी सकेंगे।
दूसरी आयत में ये बताया गया है की हमें हमेशा अल्लाह से दुआ करना करना चाहिए और उसी के लिए हमें अपनी सारी चीज़े क़ुर्बान कर देना चाहिए चाहे वो वक़्त हो या दौलत। सब कुछ अल्लाह के लिए ही करना चाहिए। इससे ये मतलब है की जब आप आपकी हर चीज़ अल्लाह पर क़ुर्बान करते हो तब अल्लाह आपको और ज़्यादा देता हैं। इस आयत में अल्लाह ने प्यारे नबी को ऊंट की क़ुरबानी करने का भी हुक्म दिया था। उस वक़्त ऊंट की क़ुरबानी अपनी दौलत क़ुर्बान करने जैसा था।
तीसरी आयत में या बताया गया है की प्यारे नबी के सारे दुश्मनो को काट दिया गया गया हैं। कहने का मतलब अल्लाह इस सूरह में ये बताता हैं प्यारे नबी के सारे दुश्मन काट दिए गए हैं।
सूरह कौसर पढ़ने के क्या फायदे हैं?
- जिन लोगो की कमाई कम हैं या उनके पास कमाई के ज़्यादा साधन नहीं हैं उनको सूरह कौसर पाबन्दी से पाबन्दी से पढ़ना चाहिए इंशाअल्लाह इसकी बरकत से कमाई से रास्ते खुल जायेंगे।
- जिनकी औलादें जन्म के बाद ही मर जाती हैं या ज़्यादा वक़्त तक ज़िंदा नहीं रहती उन्हें सूरह कौसर पढ़ना चाहिए। जिसकी फ़ज़ीलत से अल्लाह उन्हें लम्बी ज़िन्दगी अता फरमाएगा।
- जो शख्स पाबन्दी से इस सूरह को पढ़ेगा उसे क़यामत के दिन जन्नत की कौसर नहर का पानी पीने को मिलेगा।
- अपने दुश्मनों से हर वक़्त हिफाज़त के लिए सूरह कौसर पढ़ना चाहिए। जिससे दुश्मनों से हर वक़्त हिफाज़त रहेगी और आप महफूज़ रहेंगे।
- सूरह कौसर की बरकत से आप हर तरह की बीमारी से महफूज़ रहेंगे। अगर पहले से कोई बीमारी होगी वो भी इस सूरह की बरकत से खत्म हो जाएगी।
- सूरह कौसर पाबन्दी से पढ़ने वाले शख्स की हर मुराद पूरी होती हैं। इसलिए हर मुराद को पूरी करने के लिए सूरह कौसर पढ़े।
- अगर किसी की शादी में रुकावट आ रही है या रिश्ता होते होते टूट हो रहे हैं तो चाहिए की सूरह कौसर हर ईशा की नमाज़ के बाद पाबन्दी से पढ़े जिससे रिश्तों में आ रही रुकावट से छुटकारा मिलेगा।
- अगर किसी की याद्दाश्त कमज़ोर हैं यानि उसे कुछ याद नहीं रहता तो उसे इस सूरह को ज़रूर पढ़ना चाहिए जिससे उसकी दिमागी हालत में सुधार होगा और याददाश्त मज़बूत होगी।
- सूरह कौसर गरीबी कम करने और अपने माल की हिफाज़त के लिए पढ़ते रहना चाहिए।
- अगर किसी का व्यापर या बिज़नेस बहुत अच्छा चल रहा हैं और वो चाहता हैं की ये व्यापर ऐसा ही चलता रहे तो उसे पाबन्दी से सूरह कौसर हर दिन पढ़ना चाहिए जिसकी फ़ज़ीलत से बिज़नेस में बहुत मुनाफा होगा।
- इसके अलावा भी इस सूरह को पढ़ने के बेशुमार फायदे हैं हमें चाहिए की हम क़ुरान की हर सूरह को पाबन्दी से पढ़े और उसमे बताये गए रास्तों पर अमल करने की कोशिश करे ताकि हम अल्लाह की अज़ाब से बच सके और एक बेहतर ज़िन्दगी गुज़र सके।
सूरह कौसर कब पढ़ना चाहिए?
बहुत से लोग सोचते हैं की इस सूरह को पढ़ने का सबसे अच्छा वक़्त कौनसा हैं? बहुत से लोग ऐसा कहते हैं की इस सूरह को इतनी मर्तबा पढ़ने से ऐसा होगा यानि कोई 33 मर्तबा पढ़ेगा तो ऐसा होगा कोई 21 मर्तबा पढ़ेगा तो वैसा होगा। ऐसा करने या कहने से फर्क नहीं पड़ता। फर्क ये पड़ता हैं की आप सूरह कौसर को कितनी मोहब्बत से पढ़ रहे हैं? कितना दिल लगा कर कर पढ़ रहे हैं कितना ख़ुशी से पढ़ रहे हैं? अगर आप सिर्फ किसी के कहने पर सूरह कौसर को 21 या 33 मर्तबा पढ़ कर इस काम से निपटने का सोचते हैं तो वो गलत हैं। आप सूरह कौसर को जितना दिल से पढ़ेंगे और अल्लाह से दुआ मांगोगे तो अल्लाह आपकी दुआ को ज़रूर सुनेगा। फिर भी हम आपको बता देते है की इस सूरह को पढ़ने का सबसे बेहतर वक़्त कौनसा हैं?
सूरह कौसर को आप कोशिश करें की फज्र की नमाज़ के बाद पाबन्दी से जितना मर्तबा आप पढ़ना चाहे पढ़े क्यूंकि इस वक़्त पर आपका दिल और दिमाग बहुत शांत रहता हैं और आपका ध्यान सिर्फ अल्लाह की इबादत की तरफ ही रहता हैं। बाकि आप ईशा की नमाज़ के बाद भी इसे पढ़ सकते हैं क्यूंकि ईशा के वक़्त भी आप हर काम से फ्री हो जाते हैं और सोने से पहले अल्लाह की इबादत करके सोते हैं। फिर भी आपको जब वक़्त मिले आप ये सूरह का ज़िक्र करते रहे ताकि आपको इस सूरह को पढ़ने से फायदे मिलते रहे।
सूरह कौसर का वज़ीफ़ा क्या हैं?
सूरह कौसर का इस्तेमाल आप वज़ीफ़े के तौर पर भी कर सकते हैं। बहुत से लोग अलग अलग परेशानियों का वज़ीफ़ा इंटरनेट पर देखते हैं। सूरह कौसर में वो ताकत हैं जो आपको हर परेशानी से निकाल सकती हैं। सूरह कौसर का वज़ीफ़ा करके आप अलग अलग मुसीबतों या परेशानियों से निकाल सकते हैं। हमने देखा हैं की इंटरनेट पर सूरह कौसर के लेकर अलग अलग वज़ीफ़े बताये गए हैं। बेहतर हैं आप इन अपने हिसाब से दिल से इस सूरह को पढ़े जिससे आप हर परेशानी से निकाल सके बाकि अल्लाह से दुआ करते रहे इंशाअल्लाह आपकी हर दुआ क़बूल होगी।
अल्लाह हम सबको क़ुरान की तिलावत करने दीन पर चलने और पांच वक़्त का नमाज़ी बनने की तौफीक अता फरमाए आमीन।