कुर्सी स्टूल सोफा वगैरह जैसी ऊँची चीज़ पर बैठ कर नमाज़ पढ़ना जायज़ नहीं। मरीज़ और मजबूर आदमी ज़मीन पर नमाज़ अदा करे क्यूंकि ऊँची चीज़ पर बैठ कर नमाज़ अदा करने को सरकार ने मना फ़रमाया हैं।
हज़रत जाबिर रदियल्लाहो अन्हो का बयान हैं, अल्लाह के रसूल एक मरीज़ को पूछने के लिए तशरीफ़ ले गए। आपने देखा की वह किसी तकिये पर बैठ कर नमाज़ अदा कर रहे हैं। नमाज़ हो जाने पर आपने फ़रमाया ज़मीन पर नमाज़ पढ़ो अगर इसकी ताकत न हो तो इशारे से नमाज़ पढ़ो और सज्दा को रुकू से कुछ नीचा करो। छोटी छोटी तकलीफो वाला मजबूर नहीं। मरीज़ वह हैं जो नमाज़ के अरकान सही तरीके से अदा करने से मजबूर हो। आजकल अक्सर देखने में आता हैं की मामूली सा बुखार आया या कोई मामूली से तकलीफ होने लगी तो बैठ कर नमाज़ शुरू कर दी इस तरह नमाज़ नहीं होती और पढ़ ली तो वह दोबारा पढ़नी चाहिए।
हज़रत इमरान बिन हसीन रदियल्लाहो का बयान हैं मै बीमार था तो सरकार से नमाज़ पढ़ने के बारे में पूछा। आका ने फ़रमाया ! खड़े होकर पढ़ो अगर खड़े होकर पढ़ने की ताकत न हो तो बैठ कर पढ़ो और अगर बैठने की भी हिम्मत न हो तो लेट कर पढ़ो।
अल्लाह पाक किसी बन्दे को उसकी हिम्मत से ज़्यादा तकलीफ नहीं देता। इस हदीस से अंदाज़ा हुआ की किसी ऊँची चीज़ पर जैसे की कुर्सी, स्टूल, सोफा वगैरह पर बैठ कर नमाज़ पढ़ना और रूकु सज्दा इशारे से करना दुरुस्त नहीं। नमाज़ ज़मीन पर ही बैठ कर अदा करे जिस तरह भी हो सके जैसा भी आसान व मुमकिन हो बैठ कर नमाज़ पढ़े।
अगर बैठ नहीं सकते तो दीवार वगैरह से टेका लगा कर पढ़े अगर टेका लगाना भी मुश्किल हो तो फिर लेटे लेटे पढ़े। अगर मरीज़ खड़ा हो सकता हैं लेकिन रूकु सज्दा नहीं कर सकता तो खड़े खड़े नमाज़ अदा करे, अगर रूकु नहीं कर सकता तो इशारे से रूकु करे और ज़मीन पर बैठ जाये और इशारे से सज्दा करे।
नमाज़ के लिए बीच में कुर्सी लगाने से सफ़ भी टूटती हैं। सफ़ सीधी व बराबर नहीं रह पाती कंधे से कंधा नहीं मिलता और सफ़ के बीच जगह खली रह जाती हैं। सफ़े सीधी रखना सुन्नत हैं। सरकार ने फ़रमाया ! सफ़ो को सीधा करो खाली जगह को बंद कर दो, शैतान के लिए बीच में कोई जगह न छोड़ो।जिसने सफ़ो को मिलाया अल्लाह उसे मिलाएगा। जिसने सफ़ को काटा अल्लाह की रहमत उससे अपना रिश्ता तोड़ लेगी।
एक और हदीस पढ़ते चले, हज़रत नोमान बिन बशीर रदियल्लाहो अन्हो फरमाते हैं ! सरकार हमारी सफ़े तीर की तरह सीधी करते हैं। एक दिन की बात हैं सरकार तशरीफ़ लाए तकबीर होने ही वाली थी की आपने एक नमाज़ी का सीना सफ़ से बाहर निकलते देखा। आपने फ़रमाया ! अल्लाह के बन्दों अपनी सफ़े तीर की तरह सीधी और बराबर किया करो वरना अल्लाह पाक तुम्हारे बीच इख़्तेलाफ़ (दरार) दाल देगा।
जुमा हो या ईद, बकरा ईद या आम दिन जो आदमी खड़ा हो सकता हैं अगर कुर्सी पर बैठ कर रूकु सज्दा करेगा तो उसकी नमाज़ नहीं होगी। अफ़सोस हैं की जो लोग गाड़ी चला लेते हैं पैदल चल लेते हैं घंटो खड़े खड़े यार दोस्तों के साथ बातें कर लेते हैं, और मस्जिद में आते ही बीमार मजबूर बन कर कुर्सियों का सहारा लेकर नमाज़ पढ़ने लगते हैं। ऐसे लोगो की नमाज़ नहीं होती। मस्जिद में इस तरह की चीज़ो से बचना चाहिए। अगर आप में हिम्मत हैं खड़े खड़े नमाज़ पढ़ने की तो कोशिश करे की उसी हिम्मत से मस्जिद में नमाज़ अदा करे ।
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