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इस्लाम में औरत की अहमियत (Importance of Women in Islam)

इस्लाम में औरत की अहमियत (Importance of Women in Islam)

जैसा की आपको मालूम होगा की पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दुनिया में तशरीफ़ लाने से पहले अरब के लोग शर्म के मारे लड़कियों को पैदा होते ही ज़िंदा ज़मीन में दफ़्न कर दिया करते थे। क़ुरान शरीफ में भी इसके बारे में यूँ बयान आया हैं की ज़िंदा दरगोर कर दी जाने वाली लड़कियों के बारे में (उन्हें ज़िंदा दफ़न करने वालो से) पूछा जायेगा की किस जुर्म में इन्हे क़त्ल किया गया? पैदा होने वाली बच्ची ने क्या ऐसी खता की थी? खुदा ने जिसे दुनिया में जीने का हक़ देकर भेजा उसे क़त्ल क्यों कर दिया गया ?

अल्लाह के रसूल ने इस लानत को खत्म फरमाने के लिए बड़े ही प्यारे अंदाज़ में लोगो को समझाया की जो आदमी अपनी बेटी को ज़िंदा दफ़्न न करे,उसे अपने लिए तौहीन न समझे, उसे बेटे से कम न समझे, अल्लाह उसे जन्नत में दाखिल फरमाएगा।
    
इस बशारत को सुनने के बाद अरब तबके में काफी तबदीली आयी लोगो ने अपने हाथों से अपनी पैदा हुई लड़कियों को क़त्ल करना छोड़ दिया तो आका ने एक और खुशखबरी सुनाई की जिसके घर 2 लड़कियां पैदा हुई, और घर वालो ने उनकी परवरिश अच्छे ढंग से की उन्हें अच्छी तालीम दी और जवान होने पर उनकी शादी करा दी तो वह मेरे इतने करीब रहेंगे (इतना फरमाते हुए आपने अपनी दो उंगलियों का इशारा फ़रमाया) मतलब बिलकुल करीब।

आका ने फ़रमाया की अगर घर में खाने पीने की कोई चीज़ बच्चो के लिए लाओ तो पहले बेटी को दो, फिर बेटो को, किसी भी हाल में बेटी को बेटे से कम मत समझो जो आदमी इसके खिलाफ करेगा, क़यामत में उसकी ज़बरदस्त पकड़ होगी। मतलब क़यामत के दिन उसके इस काम की सज़ाओ का एलान किया जायेगा जो सज़ाये बहुत ही दिल दहला देने वाली होगी। 

इसी तरह इस्लाम से पहले माँ बाप की जायदाद में औरतो का हिस्सा नहीं था। पैगंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उनके लिए भी हिस्सा मुक़र्रर फ़रमाया। क़ुरान शरीफ में उनके हिस्सों का बयान बड़ी तफ्सील से आया हैं। जिसकी रौशनी में औरते अपने माँ बाप की जायदाद और बीवियाँ अपने शौहरों की जायदाद में हिस्सेदार मुक़र्रर की गयी। इस कानून के नाज़िल होने से पहले लोग व रिश्तेदार मरने वाले का माल दबा लिया करते थे।

इस्लाम ने यह भी तालीम दी की मरने वालो की औलाद अगर नाबालिग हो और अपने हिस्से की जायदाद व माल की हिफाज़त करने के काबिल न हो तो ख़ानदान के लोग उसकी हिफाज़त करे और काबिल हो जाने के बाद उन्हें सौंप दे। इसी तरह लड़कियों की शादी के बारे में उनकी राय व मंज़ूरी को ज़रूरी करार दिया गया। बिना लड़कियों की रज़ामंदी के उनके माँ बाप को भी यह हक़ नहीं की बेटी की शादी उनकी मर्ज़ी के बिना कर दे।

लोग पहले बेवा औरतो से शादी करना पसंद नहीं करते थे, पैगंबरे इस्लाम हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने एक बेवा हज़रत बीबी खदीजा से निकाह फ़रमा कर उस बुरे दस्तूर को भी खत्म कर दिया हालाँकि आप 25 साल के और वह 40 साल की थी। आपने बीवी के साथ अच्छा बर्ताव करने की बार बार ताकीद फ़रमाई और फ़रमाया की तुम में सबसे अच्छा वह हैं जो अपने घर वालो के लिए अच्छा हो। 
आका ने इस्लाम में औरतो पर एक बड़ा एहसान करके उन्हें समाज में बड़ी इज़्ज़त बख्शी और उन्हें क़ाबिले एहतराम करार दिया की जन्नत माँ की कदमो के नीचे हैं की ख़ुशख़बरी सुनाई। बड़े खुशनसीब हैं वह हज़रात जो बेटी, बहन, बीवी, माँ वगैरह जैसी हस्तियों की कद्र करते हैं और उनका हक़ अदा करते हैं। हम सभी को चाहिए की औरतो की इज़्ज़त करे। उन्हें इज़्ज़त की नज़र से देखे। उनका एहतराम करे। अगर उन पर कोई ज़ुल्म हो रहा हैं तो उसके खिलाफ आगे आये ज़रूरी नहीं की औरत किस मज़हब की हैं, अगर कोई मुसीबत में हैं तो हर मुसलमान का ज़िम्मेदारी हैं की उनकी मदद करने के लिए हमेशा आगे रहे।

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